दिल्ली, गोवा से भी ज़्यादा गाँवों में लोगों के सेक्सुअल पार्टनर!
शहरों की आबोहवा और फ़िल्में देखकर आपने यदि यह मान लिया है कि गांवों की अपेक्षा शहरों में पुरुषों या महिलाओं के ज़्यादा सेक्सुअल पार्टनर होते हैं तो यह अंदाज़ा आपका ग़लत है! भले ही गांवों में लोगों को और ख़ासकर महिलाओं को रूढ़िवादी माना जाता है, लेकिन सेक्सुअल पार्टनर यानी यौन साथी के मामले में कई राज्यों में ग्रामीण क्षेत्र शहरों से कहीं आगे हैं। पूरे देश की बात की जाए तो काफी ज़्यादा रूढ़िवादी माने जाने वाले राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में तो स्थिति चौंकाने वाली है।
ये चौंकाने वाले आँकड़े भी कहीं किसी ऐसे-वैसे संगठन ने जारी नहीं किए हैं, बल्कि ये आँकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण यानी एनएफएचएस के माध्यम से 2019-21 में जुटाए गए। दो लाख से ज़्यादा महिलाओं और पुरुषों की प्रतिक्रिया के आधार पर इस आँकड़े को तैयार किया गया है।
एनएफ़एचएस के आँकड़े में कहा गया है कि शहरी महिलाओं के सेक्सुअल पार्टनर (1.5) की तुलना में ग्रामीण महिलाओं के अपने जीवनकाल में औसतन 1.8 से अधिक सेक्सुअल पार्टनर थे। इसका मतलब है कि ग्रामीण क्षेत्रों में औसत रूप से महिलाओं के दो पुरुष पार्टनर थे। ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों के सेक्सुअल पार्टनर भी क़रीब इतने ही थे।
सेक्सुअल पार्टनर के मामले में शहरी भारत में भी महिलाएँ बहुत पीछे नहीं हैं। टीओआई की रिपोर्ट में एनएफ़एचएस के आँकड़ों के हवाले से कहा गया है कि पुरुषों के लिए 1.7 की तुलना में महिलाओं के जीवनकाल में औसतन 1.5 यौन साथी हैं।
सेक्सुअल पार्टनर के मामले में ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों में अंतर समझना है तो दिल्ली, गोवा जैसे राज्यों और राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों की स्थिति से बेहतर तरीक़े से समझा जा सकता है।
एनएफ़एचएस के आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली में महिलाएँ जहाँ अपने जीवनकाल में 1.1 और गोवा में 1.0 सेक्सुअल पार्टनर रखती हैं वहीं, रूढ़िवादी व ग्रामीण क्षेत्र वाले राज्य राजस्थान में महिलाएँ 3.1 सेक्सुअल पार्टनर रखती हैं।
इसका मतलब है कि दिल्ली में जहाँ एक महिला औसत रूप से एक से कुछ ज़्यादा सेक्सुअल पार्टनर रखती है वहीं राजस्थान में तीन से कुछ ज़्यादा। इसी तरह मध्य प्रदेश में महिलाएँ 2.5, उत्तर प्रदेश में 2.2, तमिलनाडु में 2.4, असम में 2.1, हरियाणा में 1.8 सेक्सुअल पार्टनर रखती हैं।
पुरुषों के मामले में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में पुरुष अपने जीवन काल में जहाँ 1.6, गोवा में 1.1 सेक्सुअल पार्टनर रखते हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में यह 3.0, उत्तराखंड में 4.7, तेलंगाना में 3.0, राजस्थान में 1.8, मध्य प्रदेश में 1.6, असम में 1.8, हरियाणा में 1.5 है।
हालाँकि, औसत रूप से पूरे देश भर के स्तर पर देखा जाए तो महिलाएँ 1.7 सेक्सुअल पार्टनर रखती हैं, जबकि पुरुष 2.1। वास्तव में कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में महिलाओं ने अपने जीवनकाल में पुरुषों की तुलना में अधिक यौन साथी बनाए। इनमें उत्तर और मध्य भारत में राजस्थान, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और मध्य प्रदेश, पूर्व में असम और दक्षिण में तमिलनाडु और केरल शामिल हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने ये आँकड़े स्वास्थ्य सुधारने के मक़सद से तैयार किए हैं। आँकड़ों को इस तरह के शारीरिक संबंध के दौरान उच्च जोखिम और कंडोम के उपयोग के प्रसार को मापने के प्रयास के रूप में जुटाया गया था। कम कंडोम का उपयोग लोगों को एचआईवी, एड्स के अधिक जोखिम में डाल सकता है।
इन आँकड़ों में गौर करने वाली बात यह भी है कि गांवों में और आम तौर पर महिलाओं को ऐसी गुप्त जानकारी साझा करने में हिचक ज़्यादा होती है। लेकिन आँकड़े बताते हैं कि विशेष रूप से महिलाएँ यौन साझेदारों के बारे में बात करने को तैयार थीं, जिसमें शादी से परे शारीरिक संबंध बनाना भी शामिल था। लेकिन इसमें यह भी आशंका जताई जा रही है कि ऐसे मामलों में महिलाओं के बीच कम रिपोर्टिंग हो सकती है।
सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि पिछले 12 महीनों में कितने प्रतिशत महिलाओं ने दो या दो से अधिक लोगों के साथ शारीरिक संबंध बनाए हैं। शहरी महिलाओं और वर्तमान में विवाहित महिलाओं की तुलना में ग्रामीण महिलाओं का थोड़ा बड़े हिस्से ने कहा है कि सर्वेक्षण से पहले के 12 महीनों में उन्होंने दो या दो से अधिक लोगों के साथ संबंध बनाए।