सीजेआई गोगोई को क्लीन चिट मिलना नाइंसाफ़ी, महिला ने कहा
यौन उत्पीड़न के मामले में देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई को क्लीन चिट मिलने के बाद आरोप लगाने वाली महिला ने कहा है कि उसके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफ़ी हुई है और वह इससे बेहद निराश है। बता दें कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की इन हाउस कमेटी ने कहा था कि वह इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि सीजेआई रंजन गोगोई पर जो आरोप लगाए गए हैं, वे निराधार हैं और उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिले हैं। आरोप लगाने वाली महिला सीजेआई के दफ़्तर में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के पद पर काम कर चुकी थी।
सीजेआई रंजन गोगोई को क्लीन चिट मिलने की ख़बर सामने आने के बाद महिला ने कहा, ‘मुझे जिस बात का डर था वही हुआ और मैं इससे बुरी तरह टूट चुकी हूँ कि कमेटी को सीजेआई गोगोई के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला। मैं बुरी तरह डरी हुई हूँ क्योंकि कमेटी के सामने सारी बातों को रखे जाने के बावजूद मुझे न तो न्याय मिला और न ही सुरक्षा।’ महिला ने यह भी कहा, ‘कमेटी की ओर से उसे नौकरी से बर्खास्त किये जाने, निलंबन और मेरे और मेरे परिवार के द्वारा सहे गए अपमान के बारे में भी कुछ नहीं कहा गया है। मैं और मेरे परिवार के लोग इससे बेहद चिंतित हैं।’
मामले की जाँच कर रही कमेटी में जस्टिस एसए बोबडे, इंदु मल्होत्रा और इंदिरा बनर्जी शामिल थीं। कमेटी ने चार दिन तक इस मामले में सुनवाई की। इसमें तीन दिन तक सवाल पूछे गए और महिला के बयान दर्ज किए गए। बता दें कि महिला ने कुछ दिन पहले इस जाँच प्रक्रिया से ख़ुद को अलग कर लिया था। महिला ने कहा था कि उसे समिति से डर लगता है और वह इसके कामकाज के तौर-तरीक़ों से सहमत नहीं है। इसके बाद जाँच समिति ने उसकी अनुपस्थिति में ही जाँच को आगे बढ़ाने का फ़ैसला किया था।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने जाँच प्रक्रिया को लेकर आपत्ति दर्ज कराई थी। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कमेटी से कहा था कि आरोप लगाने वाली महिला की अनुपस्थिति में जाँच को आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।
मामले में सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेट्री जनरल की ओर से जारी किए गए नोटिस में कहा गया है कि कमेटी ने सीजेआई गोगोई के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न मामले में 5 मई को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी और इसकी एक कॉपी सीजेआई रंजन गोगोई को भी भेजी गई थी। इसमें इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट (2003) 5 एससीसी 494 मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि आंतरिक प्रक्रिया के तहत गठित समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक करना अनिवार्य नहीं है। कमेटी की रिपोर्ट जस्टिस अरुण मिश्रा को सौंप दी गई है, जो वरिष्ठता में गोगोई के बाद चौथे नंबर के न्यायाधीश हैं।
लेकिन वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने ट्वीट कर जनहित में कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की माँग की है। उन्होंने इस मामले को घोटाला करार दिया है।
#NotInMyName
— indira jaising (@IJaising) May 6, 2019
This is a scandal
Indira Jaising v Supreme Court of India was also a case of sexual harassment by a sitting High Court of Karnataka.
It is a pre RTI case and is bad in law
Demand the disclosure of the findings of the enquiry committee in public interest https://t.co/Saw07mBPhV
बता दें कि सीजेआई गोगोई पर लगे पर यौन उत्पीड़न के आरोपों की जाँच करने के लिए तीन जजों की एक इन-हाउस कमेटी बनाई गई थी। लेकिन आरोप लगाने वाली महिला ने कहा था कि कमेटी के एक जज एन. वी. रमण जस्टिस गोगोई के क़रीबी हैं और सीजेआई के घर उनका आना-जाना लगा रहता है, लिहाज़ा, उसे न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है। इसके बाद जस्टिस रमण ने ख़ुद को इस कमेटी से अलग कर लिया था।
आरोप लगाने वाली महिला ने समिति में एक ही महिला के होने पर भी आपत्ति जताई थी। जस्टिस रमण के हटने के बाद जस्टिस इन्दु मलहोत्रा को उनकी जगह कमेटी में लाया गया था।
बता दें कि भारत की न्यायपालिका के इतिहास में यह पहली घटना थी जिसमें किसी सीजेआई पर यौन शोषण का आरोप लगा था। महिला ने आरोप लगाया था कि सीजेआई गोगोई ने अपने निवास कार्यालय पर उसके साथ शारीरिक छेड़छाड़ की और जब उसने इसका विरोध किया तो उसे कई तरह से परेशान किया गया और अंत में उसे नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया।
यौन उत्पीड़न के आरोपों के सामने आने के बाद सीजेआई गोगोई ने कहा था, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बेहद, बेहद, बेहद गंभीर ख़तरा है और यह न्यायपालिका को अस्थिर करने का एक बड़ा षड्यंत्र है।’
सीजेआई गोगोई ने कहा था कि वह इन आरोपों से बेहद दुखी हैं। उन्होंने कहा था कि उन्हें नहीं लगता है कि उन्हें निचले स्तर तक जाकर इसका जवाब देना चाहिए। सीजेआई ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए इसे उन्हें कुछ अहम सुनवाइयों से रोकने की साज़िश क़रार दिया था।