सेबी प्रमुख पर फिर गंभीर आरोप, कांग्रेस ने पूछा- सैलरी से ज्यादा पेंशन कैसे
सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच पर गंभीर आरोप लगने के बावजूद अभी तक उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया। कांग्रेस ने सेबी प्रमुख पर दो-दो जगह वेतन लेने का आरोप लगाया था। इस मुद्दे पर प्राइवेट बैंक आईसीआईसीआई ने अपनी सफाई पेश की। लेकिन उससे आरोप और गंभीर हो गए। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने मंगलवार को फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और आईसीआईसीआई बैंक से सवाल किया कि सैलरी से ज्यादा पेंशन कैसे हो गई। कांग्रेस ने कहा कि बैंक ने जवाब देने की बजाय चिंताओं को बढ़ा दिया है।
माधबी पुरी बुच पर सबसे बड़ा आरोप है कि बतौर सेबी चीफ वो अडानी मामले की जांच से भी जुड़ी हुई हैं। जबकि उन्होंने और उनके पति ने स्वीकार किया कि उन्होंने अडानी समूह की कंपनियों में निवेश किया था। यह मामला सामने आने के बाद भी सेबी चीफ ने खुद को अडानी समूह की जांच से खुद को अलग नहीं किया। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कल सोमवार को कहा था कि माधबी पुरी बुच सेबी से वेतन लेने के अलावा आईसीआईसीआई बैंक से भी वेतन ले रही थीं। इस पर बैंक ने अपनी सफाई पेश की।
बैंक के मुताबिक जब माधबी पुरी बुच ICICI से रिटायर हुईं तो 2013-14 में उन्हें 71.90 लाख रुपए की ग्रेच्युटी मिली। 2014-15 में उन्हें 5.36 करोड़ रुपए रिटायरमेंट कम्यूटेड पेंशन मिली। इस पर कांग्रेस ने मंगलवार 3 सितंबर को सवाल किया कि लेकिन अगर 2014-15 में माधबी पुरी बुच और ICICI के बीच सेटलमेंट हो गया था और 2015-16 में उन्हें ICICI से कुछ नहीं मिला तो फिर 2016-17 में पेंशन फिर से क्यों शुरू हो गई? यानी पेंशन शुरू होने में दो साल का गैप कैसे है। क्या वो जब सेबी चीफ बन गईं तो बैंक ने पेंशन देना शुरू कर दिया। सेबी के पास आईसीआईसीआई बैंक की भी जांच है।
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— Congress (@INCIndia) September 3, 2024
कांग्रेस ने मंगलवार को नए आरोपों के तहत पूछा कि अब अगर साल 2007-2008 से 2013-14 तक की माधबी पुरी बुच की औसत सैलरी निकाली जाए, जब वो ICICI में थीं, तो वो करीब 1.30 करोड़ रुपये थी। लेकिन माधबी पुरी बुच की पेंशन का औसत 2.77 करोड़ रुपए है। ऐसी कौन सी नौकरी है, जिसमें पेंशन सैलरी से ज्यादा होती है। कांग्रेस ने कहा कि उम्मीद है कि माधबी पुरी बुच जवाब देंगी कि 2016-17 में तथाकथित पेंशन फिर से क्यों शुरू हो गई थी? ध्यान रहे कि 2016-17 में माधबी पुरी बुच की 2.77 करोड़ रुपए की पेंशन तब फिर से शुरू हुई, जब वो SEBI में पूर्णकालिक सदस्य बन चुकी थीं।
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने मंगलवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा- आईसीआईसीआई बैंक कहता है कि हमारे कर्मचारियों और रिटायर्ड कर्मचारियों के पास अपना ईएसओपी (employee stock ownership plan) करने की छूट होती है। अमेरिका की एक वेबसाइट पर इसी बैंक ने लिखा है कि अगर आईसीआईसीआई बैंक से खुद इस्तीफा दिया जाए तो, उसके तीन महीने के अंदर ही ईएसओपी किया जा सकता है। लेकिन माधबी बुच तो इस्तीफा देने के 8 साल बाद भी ईएसओपी चला रही हैं। आखिर इस तरह का लाभ आईसीआईसीआई बैंक के हर एम्पलाई को क्यों नहीं मिलता?
ईएसओपी क्या हैः कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना (ईएसओपी) एक कर्मचारी लाभ योजना है जो कर्मचारियों को स्टॉक के शेयरों के रूप में कंपनी में मालिकाना हित देती है। ईएसओपी में कर्मचारी अपने वेतन का पैसा लगाते हैं। क्योंकि कंपनी जब वित्तीय लाभ कमाती है तो कर्मचारी को भी उस वित्तीय लाभ का हिस्सा मिलता है।
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सवाल किया कि ICICI ने माधबी पुरी बुच की ओर से ईएसओपी पर टीडीएस दिया। अब सवाल है कि क्या ऐसी नीति ICICI के तमाम अधिकारी/कर्मचारी के लिए है? लेकिन अगर ICICI ने माधबी पुरी बुच की ओर से ESOP पर TDS दे दिया, तो क्या वो माधबी पुरी बुच की इनकम में न गिना जाए। अगर इनकम में है तो फिर टैक्स दिया जाना चाहिए, तो ICICI ने इस TDS रकम को आयकर में क्यों नहीं दिखाया? ये इनकम टैक्स एक्ट का उल्लंघन है।
खेड़ा ने मांग की कि आईसीआईसीआई बैंक इस "संशोधित नीति" का दस्तावेज उपलब्ध कराए और सवाल किया कि इसे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध क्यों नहीं कराया गया है। उन्होंने बुच के ईएसओपी के समय के बारे में भी चिंता जताई, जो कंपनी के शेयर मूल्य में पर्याप्त वृद्धि के साथ मेल खाता था। खेड़ा ने पूछा "क्या यह समय बुच के लिए फायदेमंद नहीं था?"
कांग्रेस ने आगे कहा कि "माधाबी पुरी बुच को उस समय ईएसओपी का उपयोग करने की अनुमति क्यों दी गई जब इस कंपनी के शेयर की कीमत में काफी वृद्धि हुई जिससे उन्हें लाभ हुआ। और अजीब बात यह है कि उन्हें मिला यह लाभ सेबी में उनके कार्यकाल के साथ मेल खाता था। क्या बाजार मूल्य उनके लिए फायदेमंद नहीं था? क्या माधाबी को दिए गए ईएसओपी कर्मचारी ईएसओपी ट्रस्ट से प्राप्त किए गए थे, तो क्या यह आईसीआईसीआई के अन्य कर्मचारियों के हितों के लिए हानिकारक नहीं है?"
माधबी पुरी बुच तब से विवादों में हैं जब से अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने उन पर सेबी की अडानी समूह की चल रही जांच में हितों के टकराव का आरोप लगाया था। सोमवार को कांग्रेस ने यह आरोप लगाकर उन पर नया हमला बोला कि उन्होंने सेबी के पूर्णकालिक सदस्य के रूप में कार्य करते हुए आईसीआईसीआई बैंक से वेतन प्राप्त करके सेबी की धारा 54 का उल्लंघन किया है।
खेड़ा ने इन आरोपों को दोहराते हुए बताया कि बुच अप्रैल 2017 से अक्टूबर 2021 तक सेबी के पूर्णकालिक सदस्य थीं और इस अवधि के दौरान आईसीआईसीआई बैंक से भुगतान प्राप्त करती रही। खेड़ा ने पूछा कि "सेबी की पूर्णकालिक सदस्य होने के बावजूद वह आईसीआईसीआई बैंक से वेतन क्यों ले रही थीं?" खेड़ा के इन्हीं आरोपों के जवाब में आईसीआईसीआई बैंक ने सोमवार शाम को लीपापोती करने वाला बयान दिया था। लेकिन सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच जो आरोपों के घेरे में हैं, उन्होंने चुप्पी साध रखी है। मोदी सरकार ने इतने गंभीर आरोपों के बावजूद उन्हें हटाया तक नहीं। बुच को लैटरल एंट्री के जरिए मोदी सरकार ने सेबी में पहले सदस्य बनाया, फिर चेयरमैन बनाया।