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भारत में गिने-चुने दिनों में कोरोना वैक्सीन हो जाएगी मंजूर!

भारत में गिने-चुने दिनों में कोरोना वैक्सीन हो जाएगी मंजूर!

भारत में कुछ दिनों में ही कोरोना वैक्सीन के इस्तेमाल की मंजूरी मिल सकती है। यह इसलिए कि वैक्सीन की मंजूरी के रास्ते अब साफ़ नज़र आने लगे हैं। एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने भी ऐसा ही कहा है। 

भारत में कुछ दिनों में ही कोरोना वैक्सीन के इस्तेमाल की मंजूरी मिल सकती है। यह इसलिए कि वैक्सीन की मंजूरी के रास्ते अब साफ़ नज़र आने लगे हैं। इसी महीने आपात इस्तेमाल की मंजूरी के लिए जिन तीन वैक्सीन के लिए और आँकड़े माँगे गए थे उनमें से एक वैक्सीन को मंजूरी मिलने की संभावनाएँ तब बढ़ गईं जब ब्रिटेन में ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन को मंजूरी मिल गई। इस ख़बर के बाद एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने भी कहा है कि गिने-चुने दिनों में ही इस वैक्सीन को भारत में मंजूरी मिल सकती है। 

कोरोनो वायरस वैक्सीन के लिए आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी के लिए आए आवेदनों पर बुधवार को सरकार द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के पैनल ने विचार-विमर्श किया। एक सरकारी बयान में कहा गया है कि आँकड़ों का विश्लेषण जारी है और पैनल शुक्रवार को फिर से बैठक करेगा। एक बार जब विशेषज्ञ पैनल द्वारा वैक्सीन को हरी झंडी मिल जाएगी तो अंतिम मंजूरी के लिए ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया यानी डीसीजीआई में आवेदन भेजा जाएगा। 

वैक्सीन को इस्तेमाल की मंजूरी मिलने की उम्मीद एम्स निदेशक रणदीप गुलेरिया को भी है। उन्होंने एक इंटरव्यू में एएनआई से कहा, 'यह बहुत अच्छी ख़बर है कि एस्ट्राज़ेनेका को ब्रिटेन के नियामक अधिकारियों द्वारा अपने टीके के लिए मंजूरी मिल गई है। उनके पास मज़बूत डेटा है और भारत में वही वैक्सीन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया द्वारा विकसित की जा रही है। यह न केवल भारत के लिए एक बड़ा क़दम है, बल्कि दुनिया के कई हिस्सों के लिए।'

बता दें कि इस महीने की शुरुआत में जिन तीन कंपनियों ने वैक्सीन के आपात इस्तेमाल की मंजूरी के लिए आवेदन किया था उन्होंने वैक्सीन से जुड़ी पूरी जानकारी मुहैया नहीं कराई थी। इसीलिए किसी को भी तब मंजूरी नहीं मिली। उन कंपनियों से कहा गया था कि वे वैक्सीन के ट्रायल से जुड़े पूरे आँकड़े लेकर फिर से आएँ और तब इस पर विचार किया जाएगा।

आवेदन करने वाली तीनों कंपनियों में से एक सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया है जिसने इंग्लैंड की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी व फ़ार्मा कंपनी एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन के साथ क़रार किया है।

दूसरी कंपनी देश में कोरोना वैक्सीन निर्मित करने वाली भारत बायोटेक है। विशेष कमेटी ने इन दोनों को कहा है कि वे आख़िरी चरण के ट्रायल में आए सुरक्षा और प्रभाविकता के आँकड़े लेकर आएँ। तीसरी अमेरिका की कंपनी फ़ाइज़र है जिसने आँकड़े जमा करने के लिए और समय माँगा। 

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इसी संदर्भ में सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन को मंजूरी मिलने की उम्मीद बढ़ी है। कोरोना पर नियंत्रण के लिए गठित नेशनल टास्क फ़ोर्स के सदस्य डॉ. गुलेरिया ने कहा, 'अब हमारे पास डेटा है और यूके, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में अध्ययनों के आधार पर ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन को मंजूरी दी गई है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया (एसआईआई) के भी आँकड़े हैं। मुझे लगता है, एक बार डेटा को नियामक प्राधिकरण को दिखाया गया तो हमें कुछ दिनों के भीतर देश में वैक्सीन के लिए मंजूरी मिलनी चाहिए। मैं हफ्तों या महीनों के बजाय दिन कहूँगा।' 

शायद सकारात्मक संकेतों को देखकर ही सीरम इंस्टीट्यूट ने पहले से ही बड़ी संख्या में वैक्सीन बनानी शुरू कर दी है। दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका शॉट की लगभग 5 करोड़ खुराक पहले ही तैयार कर ली गई है और अगले साल मार्च तक इसे 10 करोड़ तक बढ़ाने की योजना है।

वैसे, इस वैक्सीन से भारत की काफ़ी ज़्यादा उम्मीदें हैं। यह इसलिए कि ऑक्सफ़ोर्ड की इस वैक्सीन को स्टोर करना और देश के दूर-दराज के इलाकों में ले जाना आसान है।

जहाँ फाइज़र जैसी वैक्सीन के लिए -70 डिग्री सेल्सियस यानी ज़ीरो से भी इतने नीचे के तापमान पर रखना होगा वहीं ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन के लिए सामान्य रेफ़्रिजरेटर का तापमान पर्याप्त है। इसीलिए कहा जा रहा है कि भारत के लिए ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन ज़्यादा सही और दूर-दराज के क्षेत्रों में पहुँचाने के लिए आसान होगी।

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रणदीप गुलेरिया ने भी कहा, 'इस टीके (ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन) को 2 से 8 डिग्री सेंटीग्रेड पर स्टोर किया जा सकता है। इसलिए इसे स्टोर करना और परिवहन करना आसान होगा। फाइजर वैक्सीन के लिए माइनस 70 डिग्री सेंटीग्रेड की आवश्यकता के बजाय ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन के लिए एक साधारण फ्रिज का उपयोग करके भंडारण किया जा सकता है।'

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