देशद्रोह कानूनः केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा - पुनर्विचार करेंगे, तब तक आप रुकें
राजद्रोह कानून पर केंद्र सरकार का रुख बदल रहा है। पहले वो इस कानून को हटाने के समर्थन में रही है लेकिन वो अब न सिर्फ इसका बचाव कर रही है बल्कि इस पर पुनर्विचार की बात कह रही है। चीफ जस्टिस रमना की बेंच ने जब इसे पांच जजों की संवैधानिक पीठ को भेजने की बात कही तो सरकार ने उसका भी विरोध किया।केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने राजद्रोह (देशद्रोह) कानून के प्रावधानों की फिर से जांच करने और पुनर्विचार करने का फैसला किया है और अनुरोध किया है कि जब तक सरकार इस मामले की जांच नहीं कर लेती, तब तक वह राजद्रोह का मामला नहीं उठाए। केंद्र सरकार ने एक हलफनामे कहा कि उसने धारा 124 ए आईपीसी (देशद्रोह) के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार करने का फैसला किया है।
दो दिन पहले शनिवार को, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में देशद्रोह पर दंडात्मक कानून का बचाव किया था और कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के 1962 के फैसले की संवैधानिक पीठ ने इसकी वैधता को बरकरार रखा था। अब इसे एक और बड़ी बेंच में भेजने की जरूरत नहीं है। केंद्र ने कहा था कि इसके दुरुपयोग के उदाहरण इसके पुनर्विचार के लिए औचित्य नहीं हो सकते हैं।
चीफ जस्टिस एन वी रमना की तीन जजों की बेंच ने इस सवाल पर कि क्या धारा 124 ए (देशद्रोह) को चुनौती देने वाली याचिकाओं को केदार नाथ सिंह बनाम केदार नाथ सिंह बनाम में 1962 के फैसले के आलोक में पांच जजों की संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि उक्त निर्णय एक संविधान पीठ का निर्णय है और तीन जजों की पीठ पर बाध्यकारी है।
देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा सहित पांच पक्षों ने दायर की थीं। मोदी सरकार पर इस कानून के नाजायज इस्तेमाल का आऱोप लगता रहा है। छात्र नेता रहे उमर खालिद, कन्हैया कुमार समेत कई युवा आंदोलनकारियों पर राजद्रोह कानून में केस दर्ज किया गया। अभी हाल ही में मुंबई पुलिस ने सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा पर भी राजद्रोह कानून की धारा लगाई थी।