रहस्यमयी 'योगी' कौन जिसकी सलाह से फ़ैसले लेती थीं एनएसई की पूर्व एमडी?
'एक था राजा। एक थी रानी। ख़तम कहानी।' यह कहानी तो आपने दादा-दादी से सुनी ही होगी! यही कहानी भारत के सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज एनएसई में दोहराने की कोशिश हुई! एक, एनएसई की पूर्व प्रमुख चित्रा रामकृष्ण थीं। एक रहस्यमयी 'हिमालय के योगी'। इस अज्ञात 'योगी' को चित्रा एनएसई की पूरी गोपनीय जानकारी साझा करती रहीं। उसकी सलाह से फ़ैसले लेती रहीं। जब यह खुलासा हुआ तो एनएसई बोर्ड ने कोई कार्रवाई नहीं की बल्कि धीरे से एनएसई से उनका इस्तीफ़ा लेकर एक तरह से मामला रफा-दफा करने की कोशिश की! लेकिन यह कहानी ख़त्म नहीं हुई। स्टॉक एक्सचेंज की नियामक संस्था सेबी के एक आदेश से कहानी तो अब शुरू हुई है।
दरअसल, यह एक विचित्र कहानी है। यह कहानी है उस नेशनल स्टॉक एक्सचेंज यानी एनएनई की जहाँ शेयर की ख़रीद-फरोख्त होती है और मिनटों में लाखों करोड़ का कारोबार होता है। इसी एक्सचेंज की पूर्व प्रमुख चित्रा रामकृष्ण ई-मेल पर एक रहस्यमी 'योगी' से मिले निर्देश या सलाह के आधार पर फ़ैसले लेती रहीं। चित्रा का कहना है कि वह उनसे 20 साल से गाइड लेती रही थीं, एनएसई की गोपनीय जानकारी भी साझा करती रहीं। तो सवाल है कि आखिर वह 'योगी' कौन है?
इस योगी के बारे में जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर पूरा मामला क्या है। शेयर बाजार नियामक सेबी ने कुछ दिन पहले एक बड़ा खुलासा किया है कि चित्रा रामकृष्ण हिमालय के एक 'योगी' की सलाह पर फ़ैसला लेती थीं। सेबी ने यह भी कहा है कि इस अज्ञात 'योगी' की सलाह पर उन्होंने आनंद सुब्रमण्यम को एक्सचेंज में समूह परिचालन अधिकारी एवं प्रबंध निदेशक का सलाहकार नियुक्ति किया था। उन्होंने एनएसई की गोपनीय जानकारियाँ साझा कीं। तो सवाल यह भी है कि उस 'योगी' ने उन गोपनीय जानकारियों का क्या किया?
वैसे तो यह सवाल ही नहीं उठना चाहिए। भला आध्यात्मिक 'योगी' का सांसारिक मोह-माया से क्या लेना-देना! वह भी ख़ासकर उस मामले में जहाँ धन-कुबेर बसते हैं! ये कैसे 'योगी' थे जो एनएसई जैसे शेयर बाज़ार में लीन हो रहे थे जहाँ मिनटों-घंटों में लाखों करोड़ का कारोबार होता है?
एनएसई क्या एक वाट्सऐप ग्रुप की तरह चलाया जा रहा था जहाँ कुछ भी 'हिमालयी बाबा' के नुस्खा वाले मैसेज को चिपका दिया जाता है?
ये सवाल छोड़ भी दें तो यह सवाल तो उठता ही है कि ऐसी अहम संस्था की प्रमुख भला ऐसे अज्ञात योगी पर इतना भरोसा कैसे करती थीं? यह कम विचित्र बात नहीं है!
खैर, एक और अहम सवाल है- क्या उस 'योगी' के बारे में अब तक कोई पुख्ता जानकारी नहीं है?
इस पर भी दो राय है और 'हिमालयी योगी' का रहस्य अनसुलझा है। एक्सचेंज ने कहा है कि यह 'योगी' मुख्य परिचालन अधिकारी आनंद सुब्रमण्यम के अलावा अन्य कोई नहीं था। इस दावे की भी ईवाई द्वारा पुष्टि की गई जिसने फ़ोरेंसिक ऑडिट किया। जबकि शेयर बाज़ार नियामक सेबी ने इसके लिए पर्याप्त सबूत नहीं पाया और वह इससे आश्वस्त नहीं है।
लाइव मिन्ट की रिपोर्ट के अनुसार, जाँच के दौरान प्रबंध निदेशक रामकृष्ण ने कहा है कि तीसरे पक्ष जो 'ऋग्याजुरसामा' के रूप में थे, वह ई-मेल से 20 वर्षों से अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक 'सिद्ध-पुरुष' या 'परमहंस' से मार्गदर्शन ले रही थीं। उन्होंने जोर देकर कहा है कि वह व्यक्ति सुब्रमण्यम नहीं था।
सेबी ने अपने आदेश में कहा है, "रामकृष्ण ने कहा कि तीसरा व्यक्ति सुब्रमण्यम नहीं था; (लेकिन) ईवाई की फोरेंसिक जांच के परिणाम ने निष्कर्ष निकाला कि ईमेल आईडी 'rigyajursama@outlook.com' का उपयोग करने वाला व्यक्ति स्वयं सुब्रमण्यम था।"
एनएसई ने सेबी को विस्तृत जानकारी मई और जुलाई 2018 में भेजी कि 'योगी' सुब्रमण्यम ही थे।
सेबी ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि इसके सवालों के जवाब एनएसई ने दिया है। इसके अनुसार, 'एनएसई की गोपनीय जानकारी का खुलासा किसी अज्ञात संस्था को नहीं, बल्कि ग्रुप ऑपरेटिंग ऑफिसर (जीओओ) को किया गया था। वह वैसे भी एनएसई के बारे में वित्तीय, परिचालन और मानव संसाधन से संबंधित जानकारी तक पहुंच रखते थे। इसके अलावा, एनएसई ने पुष्टि की कि इस तरह के पत्राचार के कारण किसी भी तरह से बाजार को कोई नुक़सान नहीं हुआ और रामकृष्ण ने पुष्टि की कि तीसरे पक्ष ने किसी भी व्यक्तिगत या मौद्रिक लाभ के लिए गोपनीय जानकारी का उपयोग नहीं किया था।'
सेबी ने अपने 190 पन्नों के आदेश में पाया कि 'योगी' ने उन्हें सुब्रमण्यम को नियुक्त करने के लिए निर्देशित किया। इस मामले में कार्रवाई करते हुए सेबी ने रामकृष्ण और सुब्रमण्यन के साथ ही एनएसई और उसके पूर्व प्रबंध निदेशक तथा मुख्य कार्यपालक अधिकारी रवि नारायण तथा अन्य पर भी जुर्माना लगाया। रामकृष्ण और सुब्रमण्यन को तीन साल की अवधि के लिए किसी भी बाजार ढांचागत संस्थान या सेबी के साथ पंजीकृत किसी भी मध्यस्थ के साथ जुड़ने को लेकर रोक लगायी गयी है। नारायण के लिये यह पाबंदी दो साल के लिए है। सेबी ने एनएसई बोर्ड पर और इसके काम करने के तौर-तरीक़ों पर भी सवाल उठाए हैं। लेकिन सवाल है कि जब अब तक ऐसे रहस्यमयी 'योगी' का पता नहीं चल पाया है तो एनएसई में भविष्य में ऐसा कोई मामला आने से कैसे रुक सकेगा?