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ओमिक्रॉन वैरिएंट ही कोरोना महामारी को ख़त्म कर देगा!

ओमिक्रॉन वैरिएंट ही कोरोना महामारी को ख़त्म कर देगा!

जो काम कोरोना वैक्सीन नहीं कर पाई वह काम अब ओमिक्रॉन वैरिएंट कर देगा? क्या कोरोना महामारी अब ख़त्म हो जाएगी? जानिए, वैज्ञानिकों ने क्या कहा है।

कोरोना के सबसे तेज़ी से फैलने वाला ओमिक्रॉन वैरिएंट ही क्या अब कोरोना महामारी को ख़त्म कर देगा? कुछ ऐसा ही संकेत वैज्ञानिकों ने दिया है। उनको उम्मीद है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट से लोगों के शरीर में इतनी मात्रा में एंटीबॉडी बनेगी कि यह महामारी को ख़त्म कर देगी। उन्हें उम्मीद है कि इस नये वैरिएंट के आने के बाद कोरोना वायरस कमजोर होने लगेगा।

उनका मानना है कि हम कोविड -19 को पूरी तरह से ख़त्म नहीं करने जा रहे हैं, लेकिन हम इस महामारी के चरण से बाहर निकलेंगे और एंडेमिक यानी इसके ख़त्म होने के चरण में जाते हुए देखेंगे। वैसे, एंडेमिक का मतलब मोटे तौर पर यह होता है कि वायरस वर्षों तक वैश्विक आबादी के कुछ हिस्सों में मौजूद रहेगा, लेकिन इसका प्रसार और प्रभाव अपेक्षाकृत इतना कम हो जाएगा कि इसको नियंत्रित किया जा सके। इसे यूं भी कह सकते हैं कि यह एक आम फ्लू की तरह हो जाएगा।

नए अध्ययनों की एक शृंखला में कहा गया है कि भले ही मामलों की संख्या रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ गई है, लेकिन गंभीर मामलों और अस्पताल में भर्ती होने की संख्या नहीं बढ़ी है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन फ्रांसिस्को में इम्यूनोलॉजिस्ट मोनिका गांधी ने कहा, 'हम अब पूरी तरह से अलग चरण में हैं। वायरस हमेशा हमारे साथ रहेगा, लेकिन मुझे उम्मीद है कि यह वैरिएंट इतनी इम्युनिटी का कारण बनता है कि यह महामारी को ख़त्म कर देगा।'

ओमिक्रॉन वैरिएंट की पुष्टि सबसे पहली बार दक्षिण अफ्रीका में 24 नवंबर को हुई थी। भारत में सबसे पहली बार 2 दिसंबर को दो मामलों की पुष्टि की गई। इस बीच यह वैरिएंट दुनिया भर में फैल गया। 

पिछले सप्ताह के आंकड़ों से पता चलता है कि बड़े पैमाने पर लोगों में फैली प्रतिरक्षा यानी इम्युनिटी और वायरस के म्यूटेशन के संयोजन के कारण एक ऐसा वायरस या वैरिएंट आया है जो पहले की तुलना में बहुत कम गंभीर है।

दक्षिण अफ्रीका के एक अध्ययन में पाया गया है कि ओमिक्रॉन के वक़्त अस्पताल में भर्ती मरीजों में डेल्टा के वक़्त भर्ती मरीजों की तुलना में गंभीर बीमारी होने की संभावना 73% कम थी। रिपोर्ट के अनुसार, केप टाउन विश्वविद्यालय में एक इम्यूनोलॉजिस्ट वेंडी बर्गर ने कहा कि डेटा अब काफ़ी ठोस है कि अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या बेहद कम है।

ऐसा लगता है कि कुछ वजहों से ओमिक्रॉन वैरिएंट पिछले वैरिएंट की तुलना में कम गंभीर बन गया है। उनमें से एक बेहद अहम तथ्य यह है कि फेफड़ों को संक्रमित करने की वायरस की क्षमता कम है। कोविड संक्रमण आमतौर पर नाक में शुरू होते हैं और गले तक फैलते हैं। अगर वायरस फेफड़ों तक पहुंचता है तो आमतौर पर अधिक गंभीर लक्षण होते हैं।

इस मामले में पाँच शोध के नतीजे आए हैं। इनमें कहा गया है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट फेफड़ों को उतनी आसानी से संक्रमित नहीं करता है जितना कि दूसरे वैरिएंट कर रहे थे। 

एक शोध में कहा गया है कि जापान और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने चूहों पर इसके प्रभाव जानने की कोशिश की। इसमें पता चला कि ओमिक्रॉन वैरिएंट फेफड़ों को कम प्रभावित करने वाला था और उसके मरने की संभावना भी कम थी। बेल्जियम के शोध कर्ताओं को भी ऐसे ही नतीजे मिले। हॉन्ग कॉन्ग के वैज्ञानिकों ने पाया कि ओमिक्रॉन वैरिएंट ओमिक्रॉन शरीर में धीरे-धीरे फैलता है। इसी वजह से यह कमजोर होता है। 

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