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क्यों लटकाया जा रहा है मुस्लिम, ईसाई बने एससी कन्वर्ट का मुद्दा 

क्यों लटकाया जा रहा है मुस्लिम, ईसाई बने एससी कन्वर्ट का मुद्दा 

दलित से मुस्लिम और ईसाई बने लोगों को एससी का लाभ देने का मुद्दा केंद्र की मोदी सरकार ने बहुत चालाकी से फिर दो साल के लिए लटका दिया है। 2024 में आम चुनाव होंगे। हो सकता है कि उस मौके पर मुद्दे को भुनाने के लिए इसकी घोषणा कर दी जा। लेकिन जिस तरह से यह मामला लंबे समय से लटकाया जा रहा है, वो पूरी राजनीति है। जानिए इस पूरे मामले को। 

अनुसूचित जाति (एससी) के वो लोग जिन्होंने इस्लाम, ईसाइयत, बौद्ध धर्म स्वीकार किया, उनको एससी का दर्जा दिलाने के लिए केंद्र सरकार ने तीन सदस्यीय कमीशन नियुक्त किया है। इसका नेतृत्व भारत के पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्ण करेंगे। लेकिन इस तरह के दर्जे की मांग करने वाले संगठनों, एक्टिविस्टों का कहना है कि यह केंद्र सरकार की मामले को लटकाने की कोशिश है। यह मामला इतने लंबे अर्से से लटका है लेकिन केंद्र सरकार जानबूझकर इसका हल नहीं निकाल रही है।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में शनिवार को बताया गया है कि केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने इस संबंध में गुरुवार को अधिसूचना भी जारी कर दी है। आयोग में रिटायर्ड आईएएस अधिकारी डॉ आर के जैन और यूजीसी सदस्य प्रो (डॉ) सुषमा यादव भी सदस्य के रूप में शामिल हैं। आयोग को दो वर्षों में गहन अध्ययन के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को देनी है।

इंडियन एक्सप्रेस ने ही पहली बार 19 सितंबर को एससी के सदस्यों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए एक राष्ट्रीय आयोग बनाने के सरकार के कदम के बारे में बताया था। ये वो लोग हैं जो खासतौर पर इस्लाम और ईसाई धर्म में चले गए हैं।

संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950, यह तय करता है कि हिंदू धर्म, सिख धर्म या बौद्ध धर्म से अलग धर्म को मानने वाले किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है। मूल आदेश जिसके तहत सिर्फ हिंदुओं को वर्गीकृत किया गया था, बाद में सिखों और बौद्धों को शामिल करने के लिए संशोधित किया गया था। यानी ऐसे एससी हिन्दू जो सिख और बौद्ध बन गए, उनका एससी दर्ज बरकरार रहेगा। लेकिन जो दलित मुस्लिम या ईसाई बन गए, उन्हें न तो एससी का दर्जा मिलेगा और न ही इसके तहत मिलने वाली सुविधाएं या छूट मिलेंगी।   

अब मोदी सरकार ने दो दिन पहले जो नया आयोग गठित किया है, वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर करना पड़ा है। सुप्रीम कोर्ट में दलित ईसाइयों की राष्ट्रीय परिषद (एनसीडीसी) की जनहित याचिका पर सुनवाई हो रही है, जो 2020 से एससी स्टेटस के लिए लड़ रही है। दरअसल, 2004 से इससे जुड़े कई मामले सुप्रीम कोर्ट में चल रहे हैं। अगस्त 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मुद्दे पर अपनी स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था।

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक दलित ईसाई और मुस्लिम संगठनों का तर्क यह है कि इन समुदायों को भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। गुरुवार को जब केंद्र सरकार की अधिसूचना सामने आई तो इन संगठनों ने इस कदम को लटकाने की साजिश करार दिया। सरकार समस्या हल करने की बजाय कुछ न कुछ साजिश करके उसे लटका देती है।

बहरहाल, सरकार ने इस आयोग का जो दायरा तय किया है वो इस्लाम या ईसाई में कन्वर्ट हुए दलितों के रीति-रिवाजों, परंपराओं, सामाजिक और अन्य नजरिए के संदर्भ में अन्य धर्मों में परिवर्तित होने पर होने वाले परिवर्तनों का भी अध्ययन करेगा। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक मंत्रालय ने कहा कि कुछ ग्रुपों ने अन्य धर्मों में कन्वर्ट हुए व्यक्तियों की स्थिति के अनुसार अनुसूचित जाति की मौजूदा परिभाषा पर फिर से विचार करने को कहा है। लेकिन मंत्रालय ने यह भी कहा कि लेकिन मौजूदा अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधियों ने नए व्यक्तियों यानी इस्लाम या ईसाई में कन्वर्ट हुए लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का विरोध किया है।

इंडियन एक्सप्रेस ने सरकार की अधिसूचना को कोट करते हुए दर्ज किया है कि "... यह एक मौलिक और ऐतिहासिक रूप से जटिल सामाजिक और संवैधानिक प्रश्न है, और सार्वजनिक महत्व का मामला है ... इसके महत्व, संवेदनशीलता और संभावित प्रभाव को देखते हुए, इस संबंध में परिभाषा में कोई भी बदलाव बिना विस्तृत अध्ययन के आधार पर नहीं होना चाहिए। सभी हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श किया जाना चाहिए। ... जांच आयोग अधिनियम, 1952 के तहत किसी भी आयोग ने अब तक इस मामले की जांच नहीं की है।

इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है कि सरकार के इस कदम का विरोध करते हुए, एनसीडीसी के अध्यक्ष विजय जॉर्ज कोट किया है- यह सरकार की देरी की रणनीति है, जो स्पष्ट रूप से इस मामले का नतीजा नहीं देखना चाहती है। एक और आयोग की क्या जरूरत थी जब अतीत में कई आयोग और समितियां सरकार को रिपोर्ट सौंप चुकी हैं, जिसमें रंगनाथ मिश्रा आयोग भी शामिल है जिसने इस तरह का दर्जा देने के पक्ष में फैसला सुनाया है। जब बौद्धों और सिखों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया गया था, तब कोई कमीशन नहीं था। यह कदम राजनीति से प्रेरित और जाति और धर्म के आधार पर भेदभावपूर्ण है। 

एनसीडीसी की राय का अनुमोदन करते हुए अखिल भारतीय पसमांदा मुस्लिम महाज़ के संस्थापक और बिहार के पूर्व राज्यसभा सांसद, अली अनवर अंसारी ने सरकार पर निर्णय में देरी करने का आरोप लगाया ताकि वह 2024 के चुनावों को पार कर सके।

पिछले एक साल में, बीजेपी ने पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने के लिए ठोस प्रयास किए हैं। लेकिन हमने उन्हें यह साफ कर दिया था कि हमारा समर्थन दो मुद्दों के समाधान पर टिका है। पहला यह कि मॉब लिंचिंग, गौरक्षा के नाम पर अत्याचार, जहां पसमांदा मुसलमानों को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है, को तुरंत रोका जाना चाहिए। दूसरा मुद्दा एससी का दर्जा देने का था। मैं आने वाले सप्ताह में अपने समुदाय की रैली इस मुद्दे पर करूंगा।


-अली अनवर अंसारी, बिहार के पूर्व राज्यसभा सांसद, संस्थापक अखिल भारतीय पसमांदा मुस्लिम महाज़

नेशनल दलित क्रिश्चियन वॉच गवर्निंग बोर्ड के सदस्य रिचर्ड देवदास ने कहा कि ईसाई और इस्लाम में कन्वर्ट होने वाले दलित अभी भी भेदभाव और अत्याचारों का शिकार हैं। जबकि बाकी लोग हमें दलितों के रूप में जानते हैं और हमें छुआछूत का सामना करना पड़ता है। हमें आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है और एससी / एसटी (अत्याचार निवारण) एक्ट की सुरक्षा भी नहीं मिलती है।

हालांकि, पंजाब के बीजेपी नेता और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला ने कहा कि नए अध्ययन के बिना एससी सूची में कन्वर्ट लोगों को शामिल करना संभव नहीं है। हमें इन समुदायों के आरक्षण के मानकों को देखने की जरूरत है। हमें यह पता लगाने की जरूरत है कि क्या वे वास्तव में उस भेदभाव का सामना करते हैं, जैसा कि वो दावा करते हैं।

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