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धर्मांतरण क़ानूनन सही; जबरन करना बेहद गंभीर मुद्दा: सुप्रीम कोर्ट

धर्मांतरण क़ानूनन सही; जबरन करना बेहद गंभीर मुद्दा: सुप्रीम कोर्ट

लालच देकर या जबरन धर्मांतरण का मुद्दा क्या देश में बढ़ता जा रहा है? सरकार ने ऐसे मामलों को रोकने के लिए क्या क़दम उठाए हैं? जानिए, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा।

देश में जबरन धर्मांतरण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है और इसने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। अदालत ने सोमवार को कहा कि जबरन धर्म परिवर्तन एक बेहद गंभीर मुद्दा है। इसने केंद्र सरकार से कहा है कि ऐसे मामलों को रोकने का क़दम उठाया जाए। इसके साथ ही इसने हलफनामा दाखिल करने को भी कहा है।

सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में केंद्र और राज्यों को निर्देश देने की मांग की गई थी कि धमकाकर या लोगों को उपहार और पैसे का लालच देकर जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

जस्टिस एम आर शाह और हिमा कोहली की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वे प्रलोभन के ज़रिए की जा रही इस तरह की प्रथा को रोकने के उपाय बताएँ। इसने केंद्र सरकार से हलफनामा में यह भी बताने को कहा है कि इस तरह के जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए क्या क़दम उठाए जा सकते हैं।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस एमआर शाह ने कहा, 'जबरन धर्मांतरण देश की सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए बेहतर है कि केंद्र अपना रुख साफ़ करे कि वह जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए क्या क़दम उठा रही है।'

बहस के दौरान इस मामले में याचिकाकर्ता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि या तो इस तरह के धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए एक अलग क़ानून बनाया जाना चाहिए या अपराध को मौजूदा भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी में जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा क्षेत्र विशेष का नहीं है और एक पूरे देश की समस्या है जिसमें तत्काल दखल दिए जाने की ज़रूरत है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि पूरे देश में हर हफ्ते प्रलोभन-धमकी, काले जादू आदि के ज़रिए जबरन धर्मांतरण की घटनाएँ सामने आती हैं।

याचिका में कहा गया है कि वास्तव में इस तरह के जबरन धर्मांतरण के शिकार अक्सर सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोग होते हैं, ख़ासकर, अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग। याचिका में कहा गया है कि यह न केवल संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 25 का उल्लंघन करता है, बल्कि धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के भी खिलाफ है।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने उपाध्याय की दलीलों से सहमति जताई। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा, 'यह एक बहुत ही गंभीर मामला है, और हर किसी को धर्म चुनने का अधिकार है, लेकिन जबरन धर्मांतरण से नहीं। यह बहुत ख़तरनाक बात है। आप बताएँ कि आप क्या कार्रवाई करेंगे.... आपको दखल देना ही होगा।'

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को आश्वासन दिया कि इस मुद्दे पर संविधान सभा में चर्चा हुई थी और सरकार स्थिति से अवगत है। उन्होंने कहा कि सरकार अपना जवाब दाखिल करेगी। शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि वह इस पर अपना रुख पूरी तरह साफ़ करे जो वह करने का प्रस्ताव करता है। कोर्ट ने साफ़ कह दिया कि धर्म परिवर्तन संविधान के तहत क़ानूनी है लेकिन जबरन धर्मांतरण नहीं।

अदालत ने केंद्र से 22 नवंबर से पहले इस मामले में अपना जवाब और हलफनामा दाखिल करने को कहा है। मामले में अब अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी।

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