सीबीआई FIR के ख़िलाफ़ याचिका खारिज, जानें डीके शिवकुमार क्या बोले
डीके शिवकुमार के ख़िलाफ़ दर्ज सीबीआई की एफ़आईआर को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को खारिज कर दी। आय से अधिक संपत्ति मामले में कांग्रेस नेता के खिलाफ यह एफ़आईआर दर्ज है। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि वह कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने के पक्ष में नहीं है।
डीके शिवकुमार ने सीबीआई की एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने को 'अनुचित' बताया है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने एनडीटीवी से कहा, 'यह एक झटका है। क्या करें? यह अनुचित है। मैं सभी कानूनी पहलुओं पर विचार करूंगा और देखूंगा कि मैं कैसे अपील दायर कर सकता हूं। हर कोई जानता है कि यह कितना राजनीतिक और प्रतिशोधात्मक है... मेरे मामले चल रहे हैं। जब भाजपा की सरकार थी, तो उन्होंने एफआईआर दर्ज करने की अनुमति दी थी। मैंने इसे रद्द करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने कहा कि वे ऐसा नहीं कर सकते...'।
कांग्रेस नेता ने आगे कहा, 'उसी समय कर्नाटक सरकार ने सीबीआई को दी गई अनुमति वापस ले ली और मामले को लोकायुक्त को सौंप दिया... इसलिए अब सीबीआई जांच जारी रखे हुए है। यह सब सरकार की सहमति वापस लेने के बावजूद हो रहा है।'
इससे पहले आज यानी सोमवार को ही जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका में कोई दम नहीं है और मामले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है। बेंच ने कहा, 'माफ कीजिए, इस याचिका को खारिज किया जाता है।'
सुनवाई शुरू होते ही शिवकुमार की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि मामले की जांच भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत मंजूरी प्राप्त किए बिना शुरू की गई। जब इनकम टैक्स पहले से ही मामले की जांच कर रहा है, तो उसी ट्रांजैक्शन के लिए सीबीआई की एफआईआर नहीं हो सकती। लेकिन पीठ ने इस दलील को मानने से इनकार कर दिया।
कांग्रेस ने पिछले साल सीबीआई की जाँच के लिए सहमति वापस ले ली थी। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने दावा किया कि उनके पूर्ववर्ती, भाजपा के बीएस येदियुरप्पा ने अवैध रूप से जांच को हरी झंडी दी थी।
सीबीआई ने आरोप लगाया है कि शिवकुमार ने 2013 और 2018 के बीच अपनी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित की। वह उस समय भाजपा से पहले की कांग्रेस सरकार में मंत्री थे। माना जा रहा है कि 74 करोड़ रुपये को लेकर वह सवालों के घेरे में हैं। सीबीआई ने 2020 में अपना मामला दर्ज किया। एफआईआर को 2021 में चुनौती दी गई और उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया।
आईटी डिपार्टमेंट ने साल 2017 में शिवकुमार के कार्यालयों और आवास पर तलाशी ली थी। इसी के आधार पर ईडी ने शिवकुमार के खिलाफ जांच शुरू की थी। ईडी की जांच के आधार पर सीबीआई ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए राज्य सरकार से मंजूरी मांगी थी। राज्य सरकार ने 25 सितंबर, 2019 को मंजूरी दी थी और एक साल बाद एफआईआर दर्ज की गई थी।
नवंबर में राज्य सरकार द्वारा डीके शिवकुमार की जांच के लिए संघीय एजेंसी को दी गई अनुमति वापस लेने के प्रस्ताव को मंजूरी दिए जाने के बाद सीबीआई ने भी उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की रोक हटा दी थी और एजेंसी को तीन महीने के भीतर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था।