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संदेशखाली: सीबीआई जाँच के हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ याचिका खारिज

संदेशखाली: सीबीआई जाँच के हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ याचिका खारिज

संदेशखाली मामले में पश्चिम बंगाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने क्यों फटकार लगाई? जानिए, इसने आख़िर क्यों कहा कि व्यक्तिगत सुरक्षा में दिलचस्पी क्यों ली जा रही है?

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें सीबीआई जाँच की सिफारिश की गई है। इसके साथ ही अदालत ने सीबीआई जाँच के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। संदेशखाली में निलंबित तृणमूल कांग्रेस नेता शेख शाहजहां के ख़िलाफ़ ज़मीन हड़पने और यौन उत्पीड़न के आरोपों की जाँच करने का निर्देश दिया गया था। 

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर सुनवाई की और राज्य सरकार की कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा कि शेख शाहजहां का जिक्र करते हुए उसे 'एक व्यक्ति की सुरक्षा में दिलचस्पी क्यों है'। उन्होंने कहा कि सुनवाई की पिछली तारीख पर राज्य की ओर से पेश वकील ने कहा था कि शीर्ष अदालत द्वारा यह ख़ास प्रश्न पूछे जाने के बाद मामले को स्थगित कर दिया जाना चाहिए।

पश्चिम बंगाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि संदेशखाली मुद्दे को राजनीतिक कारणों से तूल नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश में न केवल यौन उत्पीड़न और भूमि हड़पने की घटनाओं को शामिल किया गया है, बल्कि राशन वितरण घोटाले जैसे अन्य मामलों को भी शामिल किया गया है। इस पर न्यायमूर्ति गवई ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राज्य सरकार ने महीनों तक कुछ नहीं किया।

अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने तर्क दिया कि राशन वितरण घोटाले के सिलसिले में शेख शाहजहां के परिसर में छापेमारी करने जा रही प्रवर्तन निदेशालय की टीम पर 5 जनवरी को किया गया हमला पूर्व नियोजित था।

इससे पहले 10 अप्रैल के अपने आदेश में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने संदेशखाली मामले की अदालत की निगरानी में सीबीआई जाँच की मांग करते हुए कहा था कि निष्पक्ष जांच ज़रूरी है।

डिवीजन बेंच ने एजेंसी को एक 'समर्पित पोर्टल' बनाने का भी निर्देश दिया था, जहाँ गोपनीयता सुनिश्चित करने और पीड़ितों और गवाहों को सुरक्षा देने के लिए शिकायतें दर्ज की जा सकें।

29 अप्रैल को याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार से पूछा कि राज्य को कुछ निजी व्यक्तियों के हितों की रक्षा के लिए याचिकाकर्ता के रूप में क्यों आना चाहिए। राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपनी याचिका में उच्च न्यायालय के आदेश को विकृत, अवैध और मनमाना बताया था, जिसे निरस्त किया जाना चाहिए।

उच्च न्यायालय का यह आदेश संदेशखाली की महिलाओं द्वारा दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान आया, जिन्होंने ज़मीन हड़पने और हिंसा की शिकायतों के अलावा, निलंबित पार्टी के कद्दावर नेता शेख शाहजहां के करीबी स्थानीय तृणमूल कांग्रेस नेताओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं।

सीबीआई पहले से ही संदेशखाली में ईडी के अधिकारियों पर हमले के मामले की जांच कर रही है और उसने 5 जनवरी की घटनाओं से संबंधित तीन प्राथमिकी दर्ज की हैं।

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