ईडी के गिरफ्तारी के अधिकार पर नकेल कसेगी? बड़ी बेंच लेगी फैसला
क्या ईडी द्वारा की गई दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी सही नहीं थी? केजरीवाल की ओर से इस गिरफ़्तारी को 'अवैध' होने का दावा किया जाता रहा है। ईडी की गिरफ़्तारी को चुनौती देने के इस मामले को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने बड़ी बेंच के पास भेज दिया है। हालाँकि, इसके साथ ही इसने केजरीवाल को अंतरिम जमानत दे दी है। अब शीर्ष अदालत की बड़ी बेंच तय करेगी कि आख़िर ईडी के पास किसी को गिरफ़्तार करने के क्या अधिकार होंगे। क्या ईडी मौजूदा तौर तरीकों के अनुसार ही गिरफ़्तारी जारी रखेगा या फिर उसको भी पहले कुछ शर्तें पूरी करनी होंगी?
केजरीवाल मामले की सुनावाई करती हुई सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कुछ ऐसे ही सवाल के साथ बड़ी बेंच के पास मामला भेजा है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि हमने गिरफ्तारी की ज़रूरत और अनिवार्यता का अतिरिक्त आधार उठाया है। जस्टिस खन्ना ने कहा, 'तो गिरफ्तारी की नीति क्या है, इसका आधार क्या है, हमने उल्लेख किया है। हमने 3 सवाल तैयार किए हैं। क्या गिरफ्तारी की ज़रूरत, अनिवार्यता, गिरफ्तारी के औपचारिक मापदंडों को पूरा करती है...हमने स्पष्ट रूप से माना है कि केवल पूछताछ से गिरफ्तारी की अनुमति नहीं मिलती है।'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'गिरफ़्तारी, आखिरकार, मनमाने ढंग से और अधिकारियों की मर्जी और मिजाज पर नहीं की जा सकती। इसे कानून द्वारा निर्धारित मापदंडों को पूरा करते हुए वैध 'विश्वास करने के कारणों' के आधार पर किया जाना चाहिए।'
पीएमएलए की धारा 19, जो गिरफ्तारी से संबंधित है, कहती है कि ईडी अधिकारी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है, यदि उसके पास मौजूद सामग्री के आधार पर उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध का दोषी है।
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि चूंकि पीएमएलए के तहत जमानत के लिए मानदंड सख़्त हैं, इसलिए गिरफ्तारी का अधिकार भी सख़्त और नियंत्रित होना चाहिए।
विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ मामले में 2022 के ऐतिहासिक फ़ैसले के बाद, जहां सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की लगभग सभी शक्तियों को बरकरार रखा, यह पहला बड़ा उदाहरण है जहां अदालत ने केंद्रीय एजेंसी की शक्तियों को सीमित कर दिया है।
इस पीठ ने केजरीवाल की याचिका को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया ताकि इस सवाल पर विचार किया जा सके कि क्या गिरफ्तारी की आवश्यकता को धन शोधन निवारण अधिनियम की धारा 19 की एक शर्त के रूप में पढ़ा जाना चाहिए।
लाइव ला की रिपोर्ट के अनुसार खुली अदालत में फैसले के अंश पढ़ते हुए जस्टिस खन्ना ने कहा कि गिरफ्तारी के लिए 'विश्वास करने के कारण' पीएमएलए की धारा 19 के मापदंडों से मेल खाते हैं। यह धारा 19 ही ईडी अधिकारियों को गिरफ्तारी की शक्ति देती है। इसी धारा की विस्तृत व्याख्या सुप्रीम कोर्ट की मौजूदा बेंच ने की।
जस्टिस खन्ना ने कहा, 'हालाँकि, ऐसा कहने के बाद हमने एक अतिरिक्त आधार उठाया है जो गिरफ्तारी की ज़रूरत और अनिवार्यता से संबंधित है... हमें लगा कि गिरफ्तारी की ज़रूरत और अनिवार्यता के आधार को धारा 19 में पढ़ा जाना चाहिए, खासकर आनुपातिकता के सिद्धांत के मद्देनजर। हमने उन सवालों को बड़ी पीठ के पास भेज दिया है।' जस्टिस खन्ना ने कहा,
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हमने यह भी माना है कि केवल पूछताछ से आपको गिरफ्तार करने की अनुमति नहीं मिलती है। यह धारा 19 के तहत कोई आधार नहीं है।
जस्टिस खन्ना, सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच इस सवाल पर विचार करने के बाद जो भी फ़ैसला देगी, इससे कई बड़े मामले प्रभावित होंगे। ख़ासकर, ईडी द्वारा की गई विपक्षी नेताओं की गिरफ़्तारी के मामले में। कई ऐसे मामले हैं जिनमें ईडी ने कई विपक्षी नेताओं की गिरप़्तारी की है और विपक्षी दल ईडी पर मनमाना कार्रवाई का आरोप लगा रहे हैं।
विपक्षी दल लगातार आरोप लगा रहे हैं कि सरकार के इशारे पर बदले की कार्रवाई कर नेताओं को डराया-धमकाया जा रहा है। चुनाव से पहले ऐसे मामले बड़े पैमाने पर सामने आये थे और अब चुनाव ख़त्म होते ही वैसे मामले अब फ़िलहाल कम आ रहे हैं।
बहरहाल, मामले को बड़ी पीठ को भेजते समय वर्तमान पीठ ने अब तक उनकी कैद को देखते हुए उन्हें अंतरिम जमानत देने का फैसला किया। पीठ ने साफ़ किया कि अंतरिम जमानत के सवाल को बड़ी पीठ द्वारा संशोधित किया जा सकता है। पीठ ने कहा, 'चूंकि हम मामले को बड़ी पीठ के पास भेज रहे हैं, ...हम इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत दी जानी चाहिए, इस तथ्य को देखते हुए कि जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार पवित्र है और अरविंद केजरीवाल ने 90 दिनों तक कारावास की सजा भुगती है और इन सवालों पर बड़ी पीठ द्वारा गहन विचार की आवश्यकता है। हम निर्देश देते हैं कि अरविंद केजरीवाल को मामले के संबंध में अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाए।'
जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने 17 मई, 2024 को मामले में फैसला सुरक्षित रखने के बाद यह फ़ैसला सुनाया।
केजरीवाल को 21 मार्च को ईडी ने गिरफ्तार किया था, जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें अंतरिम संरक्षण देने से इनकार कर दिया था। उसके बाद वे तब तक हिरासत में रहे, जब तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र उन्हें 10 मई को अंतरिम रिहाई का लाभ नहीं दिया। यह अवधि 2 जून को समाप्त हो गई।'
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने शुरू में ईडी की गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि, 9 अप्रैल को उनकी याचिका खारिज कर दी गई। इससे व्यथित होकर उन्होंने शीर्ष न्यायालय का रुख किया, जिसने 15 अप्रैल को उनकी याचिका पर नोटिस जारी किया था।
मामले की सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने केजरीवाल की ओर से दलीलें पेश कीं। ईडी की ओर से एएसजी एसवी राजू पेश हुए।