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उम्मीदवारों का अपराध छुपाने वाले दलों का पंजीकरण रद्द होगा? सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

उम्मीदवारों का अपराध छुपाने वाले दलों का पंजीकरण रद्द होगा? सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

चुनाव में उम्मीदवारों की आपराधिक जानकारी को छुपाना क्या अब राजनीतिक दलों को महंगा पड़ेगा? जानिए, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर क्या मांग की गई है और अदालत ने क्या कहा।

उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि को सार्वजनिक नहीं करने वाले राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। इस मामले में दायर की गई याचिका पर सुनवाई के लिए अदालत तैयार हो गई है।

राजनीति में अपराध रोकने या राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए चुनाव सुधार की मांग लंबे समय से की जाती रही है। चुनाव में अपराधियों को रोकने के लिए समय-समय पर कड़े नियम बनाए भी जाते रहे हैं। लेकिन इसके ठोस नतीजे नहीं निकल पाए हैं। हाल के वर्षों में इस मांग ने जोर पकड़ा है कि जो भी उम्मीदवार खड़ा हो रहा है उसके ख़िलाफ़ लगाए गए सभी आरोपों को मतदाताओं के सामने रखना चाहिए जिससे वोट देने से पहले मतदाता के पास अपने उम्मीदवार के बारे में पूरी जानकारी हो।

बता दें कि फ़रवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामलों का विवरण अपनी वेबसाइटों, स्थानीय और राष्ट्रीय समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर उम्मीदवारों को चुनने के 48 घंटे के भीतर या नामांकन दाखिल करने की पहली तारीख़ से कम से कम दो सप्ताह पहले, इनमें से जो पहले हो उस समय तक प्रकाशित करना चाहिए।

पिछले साल अदालत ने नौ पक्षों को उसके निर्देशों का पालन नहीं करने का दोषी पाया था। अदालत ने अपने पहले के आदेश को भी संशोधित किया और कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में विवरण उम्मीदवार के चयन के 48 घंटों के भीतर प्रकाशित किया जाए, क्योंकि दूसरी शर्त वैधानिक प्रावधानों के कारण लागू करना मुश्किल है।

अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि किसी सांसद या विधायक के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला संबंधित उच्च न्यायालय की सहमति के बाद ही वापस लिया जा सकता है।

चुनाव में अपराधियों को रोकने के प्रयास के तहत ही ताज़ा याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई। भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की पीठ के समक्ष याचिका का उल्लेख करते हुए वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने इस पर चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की है।

जब अश्विनी उपाध्याय ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के लिए चल रही नामांकन प्रक्रिया की ओर इशारा किया तो भारत के मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, 'क्या हम उन लोगों को नामांकन दाखिल करने से रोक सकते हैं जिनके ख़िलाफ़ मामले हैं?' फिर अदालत ने कहा कि 'आपने उल्लेख किया है तो हम विचार करेंगे।' हालाँकि, अदालत की पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए कोई तारीख तय नहीं की।

याचिका में चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की गई है कि सभी पार्टियाँ अपने उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामलों और उनके चयन के कारणों के बारे में अपनी वेबसाइट पर विवरण प्रकाशित करें।

याचिका में यह भी मांग की गई है कि प्रत्येक राजनेता अपने ख़िलाफ़ मामलों का विवरण इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया में सार्वजनिक करे। याचिका में इन निर्देशों का उल्लंघन करने वाले पार्टी अध्यक्ष के ख़िलाफ़ अवमानना ​​के मामले भी दर्ज करने की मांग की गई है।

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