SC पैनल के सदस्य की किसान मुद्दे पर रिपोर्ट जारी करने की गुहार क्यों?
तीन कृषि क़ानूनों को लेकर किसानों के मुद्दों के समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी के एक सदस्य ने इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की है। उन्होंने इसके लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश को ख़त लिखा है। इसमें रिपोर्ट को जारी करने के साथ ही इसको सरकार को भेजने का भी आग्रह किया गया है। कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे किसानों व सरकार के बीच जारी गतिरोध को ख़त्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इस साल की शुरुआत में ही एक कमेटी का गठन किया था। इस साल मार्च में कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दे दी थी। कमेटी ने क्या सुझाव दिया है, यह अभी सामने नहीं आया है।
कमेटी के एक सदस्य शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल जे घनावत ने उस रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने की दलील तब दी है जब हाल में किसानों का आंदोलन तेज़ हो गया है और बीजेपी पर फिर से ज़बरदस्त दबाव है। घनावत ने 1 सितंबर को सीजेआई को लिखे पत्र में कहा है कि कमेटी की रिपोर्ट ने किसानों की सभी आशंकाओं को दूर कर दिया है। उन्होंने यह भी दावा किया है कि कमेटी की सिफारिशें किसान आंदोलन को हल करने का मार्ग प्रशस्त करेंगी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल की शुरुआत में तब कमेटी गठित की थी जब कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसान ज़बरदस्त प्रदर्शन कर रहे थे। वैसे, इस कमेटी पर तब ज़बरदस्त विवाद हुआ था। तब सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी का गठन करते हुए एक अहम आदेश में तीनों कृषि क़ानूनों पर अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी थी। आन्दोलन कर रहे किसान संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट की प्रस्तावित कमेटी के सामने पेश होने और उनसे बात करने से साफ़ इनकार कर दिया था। किसान संगठनों का मानना था कि सुप्रीम कोर्ट की प्रस्तावित कमेटी के सभी सदस्य इन क़ानूनों के पक्षधर थे, उन्होंने कई बार इन क़ानूनों का समर्थन किया था और इसलिए उनकी निष्पक्षता संदेह से परे नहीं थी।
पंजाब किसान यूनियन के बयान में कहा गया था कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के ज़रिए यह कमेटी गठित कर रही है और इसका मक़सद सिर्फ लोगों का ध्यान भटकाना है।
ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेश कमेटी ने एक बयान में कहा था कि कमेटी का गठन करने में सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया गया। इसने कहा था कि इसमें उन लोगों को रखा गया जो सरकार के समर्थक रहे हैं और उन्होंने इन कृषि क़ानूनों को अब तक उचित ही ठहराया है। किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के सदस्यों पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि वे यह लिखते रहे हैं कि किस तरह ये कृषि क़ानून किसानों के हित में हैं।
यह विवाद कितना ज़बरदस्त हुआ था इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि इसके एक सदस्य कमेटी से अलग हो गए थे।
कमेटी में शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनावत के अलावा इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट में दक्षिण एशिया में पूर्व निदेशक डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, कृषि अर्थशास्त्री और कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट ऐंड प्राइस के पूर्व चेयरमैन अशोक गुलाटी और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान शामिल थे। लेकिन भूपिंदर सिंह मान ने ख़ुद को उस कमेटी से अलग कर लिया था।
तब मान ने बयान जारी कर कहा था कि ताज़ा हालात और किसान संगठनों व जनता की आशंकाओं को देखते हुए वह किसी भी पद को छोड़ने के लिए तैयार हैं। पूर्व राज्यसभा सांसद मान ने कहा था कि वह पंजाब और देश के किसानों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे।
अब उसी कमेटी के सदस्यों में से एक शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनावत की यह चिट्ठी आई है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, उस ख़त में घनावत ने कहा है, 'समिति के सदस्य के रूप में, विशेष रूप से किसान समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हुए, मुझे इस बात का दुख है कि किसानों द्वारा उठाए गए मुद्दे को अभी तक हल नहीं किया गया है और आंदोलन जारी है। मुझे लगता है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिपोर्ट पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।'
उन्होंने कहा, 'मैं माननीय सर्वोच्च न्यायालय से विनम्रतापूर्वक अनुरोध कर रहा हूँ कि किसानों की संतुष्टि व गतिरोध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए अपनी सिफारिशों को लागू करने के लिए कृपया रिपोर्ट जल्द से जल्द जारी करे।'
घनावत ने कहा कि समिति को अपनी रिपोर्ट देने के लिए दो महीने का समय दिया गया था। उन्होंने कहा, 'समिति ने बड़ी संख्या में किसानों और कई हितधारकों से परामर्श करने के बाद 19 मार्च 2021 को निर्धारित समय से पहले अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति ने किसानों को अधिकतम लाभ के उद्देश्य से सभी हितधारकों की राय और सुझावों को शामिल किया।'
उनकी यह चिट्ठी तब आई है जब किसान संगठन फिर से अपना आंदोलन तेज़ कर चुके हैं। पाँच राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले किसान नेताओं ने कहा है कि वे बीजेपी के ख़िलाफ़ प्रचार करेंगे। ऐसा ही किसान नेताओं ने तब भी किया था जब पश्चिम बंगाल का चुनाव था। उस चुनाव में टीएमसी की जबरदस्त जीत हासिल हुई थी।