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पत्रकार व वकीलों के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई न करे त्रिपुरा पुलिस: सुप्रीम कोर्ट

पत्रकार व वकीलों के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई न करे त्रिपुरा पुलिस: सुप्रीम कोर्ट

त्रिपुरा पुलिस अब हिंसा को लेकर ट्वीट और फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के लिए यूएपीए का सामना कर रहे पत्रकार और वकीलों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं कर सकती है? जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा।  

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को त्रिपुरा पुलिस से कहा है कि वह उन वकीलों और एक पत्रकार के ख़िलाफ़ कोई दंडात्मक कार्रवाई न करे, जिन पर राज्य में सांप्रदायिक हिंसा को लेकर टिप्पणी करने के लिए कार्रवाई की जा रही है। उनके ख़िलाफ़ त्रिपुरा पुलिस ने ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट इस मामले में दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के सदस्य व अधिवक्ता मुकेश, राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन के सचिव व अधिवक्ता अंसार इंदौरी और न्यूज़क्लिक के पत्रकार श्याम मीरा सिंह ने याचिका दायर की है। 

याचिका में कहा गया है कि वकीलों के ख़िलाफ़ यूएपीए उनकी 'फैक्ट फाइंडिंग' रिपोर्ट को दबाने के लिए लगाया गया है। उन्होंने 'त्रिपुरा में मानवता पर हमला #मुसलिम लाइव्स मैटर' शीर्षक से वह रिपोर्ट जारी की थी। याचिका में यह भी कहा गया है कि श्याम मीरा सिंह ने केवल 'त्रिपुरा जल रहा है' ट्वीट किया था और इसके लिए यूएपीए लगाया गया।

याचिका में उन्होंने उनके ख़िलाफ़ दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की और यूएपीए के कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती दी है। 

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्य कांत की पीठ ने उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए त्रिपुरा सरकार को नोटिस जारी किया। 

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि राज्य का प्रयास 'प्रभावित क्षेत्रों से सूचना और तथ्यों के प्रवाह पर एकाधिकार करने' का था।

उन्होंने यह भी कहा कि यूएपीए उन अधिवक्ताओं और पत्रकारों सहित नागरिक समाज के सदस्यों के ख़िलाफ़ है जिन्होंने लक्षित हिंसा के संबंध में तथ्यों को लोगों के सामने लाने का प्रयास किया है।

उन्होंने कहा, 'अगर राज्य को तथ्य खोजने और रिपोर्टिंग के काम को अपराधी बताने की अनुमति दी जाती है- और वह भी यूएपीए के कड़े प्रावधानों के तहत जिसमें अग्रिम जमानत पर रोक है और जमानत का विचार भी एक दूर की संभावना है- तो केवल वे तथ्य आएंगे जो सार्वजनिक डोमेन में हैं और जो राज्य के लिए सुविधाजनक हैं।'

दरअसल, यूएपीए को लेकर काफ़ी विवाद रहा है। ऐसा इसलिए कि इस क़ानून को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। इसकी संवैधानिक वैधता को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई है। यह क़ानून अधिकारियों को छह महीने के लिए बिना किसी आरोप के लोगों को हिरासत में रखने की अनुमति देता है। 

बता दें कि एफ़आईआर में श्याम मीरा सिंह और अन्य पर 'फेक न्यूज़' और 'आपत्तिजनक' सामग्री फैलाने का आरोप लगाया गया है। हिंसा की ख़बरों के बाद राज्य सरकार ने मसजिदों में तोड़फोड़ करने और स्थानीय मुसलिम समुदायों पर हमला करने के आरोपों को खारिज कर दिया था।

इस महीने की शुरुआत में त्रिपुरा पुलिस ने 100 से अधिक सोशल मीडिया एकाउंट के विवरण के लिए ट्विटर, फ़ेसबुक और यूट्यूब से भी संपर्क किया था। उनका दावा है कि उनका उपयोग 'फर्जी' और 'भड़काऊ' पोस्ट करने के लिए किया गया था। इसके बाद उन्होंने श्याम मीरा सिंह सहित 70 से अधिक लोगों के ख़िलाफ़ एक दर्जन से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए।

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