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उद्धव Vs शिंदे: इस्तीफा दे दिया तो सीएम को बहाल कैसे करें: सुप्रीम कोर्ट

उद्धव Vs शिंदे: इस्तीफा दे दिया तो सीएम को बहाल कैसे करें: सुप्रीम कोर्ट

उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जानिए किस आधार पर उद्धव टाकरे को सीएम पद पर बहाल करने के ख़िलाफ़ टिप्पणी की।

पिछले साल उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार को बेदखल करने के मामले में उद्धव खेमे को झटका लगा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को सुनवाई पूरी कर ली है और इसके साथ ही इसने फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है। लेकिन सुनवाई के दौरान अदालत ने साफ़ कर दिया कि वह पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बहाल करने के पक्ष में नहीं है।

भले ही सुप्रीम कोर्ट को विश्वास मत हासिल करने की राज्यपाल की कार्रवाई अवैध लगती है, लेकिन इसने गुरुवार को आश्चर्य जताया कि वह महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार को कैसे बहाल कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया कि पूर्व मुख्यमंत्री ने शक्ति परीक्षण का सामना किए बिना ही इस्तीफा दे दिया था और उन्होंने यह स्वीकार कर लिया था कि वह अल्पमत में थे। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'सरकार को बहाल करना एक तार्किक बात होती, बशर्ते आप विधानसभा के पटल पर विश्वास मत खो देते।' अदालत की यह टिप्पणी तब आई जब ठाकरे समूह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने पीठ से यथास्थिति बहाल करने का आग्रह किया। सुनवाई करने वाली बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस एम आर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, हेमा कोहली और पी एस नरसिम्हा भी शामिल थे।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे खेमे के बीच विवाद मामलों पर फ़ैसला सुरक्षित रख लिया। इस मामले में कई याचिकाएँ दायर की गई हैं।

इनमें कई मुद्दों पर शिंदे और ठाकरे के समूहों के सदस्यों द्वारा दायर याचिकाएं भी शामिल हैं। पहली याचिका एकनाथ शिंदे ने जून 2022 में कथित दल-बदल को लेकर संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत बागियों के खिलाफ तत्कालीन डिप्टी स्पीकर द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देते हुए दायर की थी। बाद में ठाकरे समूह ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसमें महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा विश्वास मत के लिए बुलाए जाने, बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाने और सीएम के रूप में शपथ ग्रहण व नये अध्यक्ष के चुनाव के फ़ैसले को चुनौती दी गई।

अगस्त 2022 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना के नेतृत्व वाली 3-न्यायाधीशों की पीठ ने कई मुद्दों को उठाते हुए याचिकाओं को संविधान पीठ को भेज दिया था।

 - Satya Hindi

इसी मामले में लगातार सुनवाई चल रही थी। सुनवाई के दौरान ही संविधान पीठ ने कहा, 'ऐसा नहीं है कि आपको विश्वास मत के कारण सत्ता से बेदखल किया गया है, जिसे राज्यपाल ने गलत तरीके से तलब किया था। आपने चाहे किसी भी कारण से नहीं चुना हो, आप विश्वास मत का सामना नहीं करना चाहते थे …'। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार सीजेआई ने सिंघवी से पूछा, 'क्या होगा अगर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि राज्यपाल द्वारा विश्वास मत बुलाने के लिए शक्ति का कोई वैध प्रयोग नहीं किया गया था?' वकील ने कहा कि 'फिर सब कुछ ध्वस्त हो जाएगा।'

सीजेआई ने कहा कि ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना किए बिना इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि यह ऐसा है जैसे अदालत को उस सरकार को वापस बहाल करने के लिए कहा जा रहा है जिसने स्वीकार किया है कि वह अल्पमत में है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से तीखे सवाल किए थे। विश्वास मत के राज्यपाल के आह्वान पर सवाल उठाते हुए अदालत ने कहा था कि उनको किसी भी ऐसे क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए जो सरकार के गिरने का कारण बनता है। अदालत ने पूछा था कि सवाल यह है कि क्या राज्यपाल सिर्फ इसलिए सरकार गिरा सकते हैं क्योंकि किसी विधायक ने कहा कि उनके जीवन और संपत्ति को खतरा है? इसने कहा कि फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए पार्टी में असंतोष ही पर्याप्त कारण नहीं है।

संविधान पीठ ने बुधवार को कहा था कि एक राज्यपाल को सावधानी से शक्ति का प्रयोग करना चाहिए और इस बात से अवगत होना चाहिए कि विश्वास मत के लिए बुलाने से सरकार गिर सकती है।

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