समलैंगिक के जज बनाने पर केंद्र को आपत्ति क्यों? SC ने किया खुलासा
सुप्रीम कोर्ट ने संभवत: पहली बार जज नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिश पर केंद्र की आपत्ति को सार्वजनिक किया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने दिल्ली हाई कोर्ट के समलैंगिक वकील को जज बनाने की अपनी सिफारिश को फिर से केंद्र के पास भेजा है। सौरभ किरपाल की पदोन्नति पाँच साल से लंबित है और यह तीसरी बार है जब शीर्ष अदालत ने सिफारिश की है। इस बार सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने वो तथ्य भी सामने रख दिए हैं कि वह सौरभ किरपाल के नाम सिफारिश क्यों कर रहा है और केंद्र किन बातों को लेकर आपत्ति जता रहा है।
केंद्र ने समलैंगिक वकील सौरभ किरपाल को उनके यौन झुकाव के बारे में खुलेपन के आधार पर दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने का प्रस्ताव वापस कर दिया था। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र को आशंका है कि समलैंगिक अधिकारों के लिए उनके 'लगाव' को देखते हुए यह किरपाल के पूर्वाग्रह की संभावना से इंकार नहीं कर सकता है। इसलिए उसने प्रस्ताव को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया था।
किरपाल को नियुक्त करने का प्रस्ताव पांच साल से अधिक समय से लंबित है। 13 अक्टूबर 2017 को दिल्ली उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा सर्वसम्मति से सिफारिश की गई और 11 नवंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुमोदित किया गया।
किरपाल की जज के रूप में नियुक्ति की सिफारिश का मुद्दा इसलिए भी चर्चा में रहा है कि वह सिफारिश पाँच साल से अटकी हुई है। सवाल उठता रहा है कि क्या इसमें इस वजह से देरी हुई क्योंकि वह समलैंगिक हैं और इसको वह खुलेआम स्वीकार करते हैं?
यह अजीब बात है कि ख़ुद को प्रगतिशील समाज कहने और दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का तमगा दिए जाने पर गौरवान्वित महसूस करने वाले लोग समलैंगिकता पर ‘दकियानूसी’ हो जाते हैं। अपने देश में प्रचलित लोकतंत्र की तुलना अमेरिका से तो करते हैं लेकिन यह नहीं देखते कि अमेरिका में आज से 20 साल पहले ही यानी 2003 में ही ख़ुद को खुलेआम समलैंगिक घोषित करने वाले राइव्स किस्टलर को जज बना दिया गया था। अमेरिका में अब तक कम से कम 12 जज हुए हैं जो ख़ुद को खुलेआम समलैंगिक कहते हैं।ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ़्रीका जैसे देशों में भी समलैंगिक जज हैं।
यदि दक्ष हो, योग्यता पूरी हो, सभी मापदंडों पर ख़रा उतरता हो तो क्या व्यक्तिगत सेक्सुअल पसंद को किसी पद पर नियुक्ति में बाधक माना जाना चाहिए? यदि फ़ैसले इससे प्रभावित होते हैं तो हम कितने प्रगतिशील समाज हैं और समानता में कितना विश्वास रखते हैं?
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम भी कुछ ऐसे ही तर्क रखता है। 18 जनवरी के एक प्रस्ताव में किरपाल के नाम को दोहराते हुए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल और केएम जोसेफ वाले कॉलेजियम ने कहा, 'तथ्य यह है कि श्री सौरभ किरपाल अपने झुकाव के बारे में खुले हैं, यह एक ऐसा मामला है जिसका श्रेय उनको जाता है। न्यायपालिका के लिए एक संभावित उम्मीदवार के रूप में, वह अपने झुकाव के बारे में गुप्त नहीं रहे हैं। संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त अधिकारों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा उस आधार पर उनकी उम्मीदवारी को खारिज करना साफ़ तौर पर निर्धारित संवैधानिक सिद्धांतों के विपरीत होगा।'
प्रस्ताव वापस करने के लिए केंद्र ने एक अन्य कारण यह दिया है कि किरपाल का साथी स्विस नागरिक है। एससी कॉलेजियम ने हालांकि कहा कि इस बात की कोई आशंका नहीं है कि किरपाल के साथी के व्यवहार का राष्ट्रीय सुरक्षा पर कोई असर पड़ता है।
कॉलेजियम ने कहा, 'पहले से यह मानने का कोई कारण नहीं है कि उम्मीदवार का साथी, जो एक स्विस नागरिक है, हमारे देश के लिए शत्रुतापूर्ण व्यवहार करेगा, ऐसा इसलिए क्योंकि उसका मूल देश एक मित्र राष्ट्र है। वर्तमान और अतीत में भी उच्च पदों पर संवैधानिक पद पर रहने वालों के पति-पत्नी विदेशी नागरिक हैं और रहे हैं। इसलिए सिद्धांत के रूप में श्री सौरभ किरपाल की उम्मीदवारी पर इस आधार पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती है कि उनका साथी विदेशी नागरिक है।'
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार प्रस्ताव को दोहराते हुए कॉलेजियम ने कहा, 'इसलिए, श्री सौरभ किरपाल की उम्मीदवारी के अत्यधिक सकारात्मक पहलुओं को अधर में तौलना चाहिए।' कॉलेजियम ने कहा कि इसी के मद्देनज़र कॉलेजियम दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में श्री सौरभ किरपाल की नियुक्ति के लिए दिनांक 11 नवंबर, 2021 की अपनी सिफारिश को दोहराता है। इसने यह भी कहा है कि इस पर शीघ्रता से कार्यवाही करने की ज़रूरत है।