+
सीएए को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई 6 दिसंबर तक टली

सीएए को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई 6 दिसंबर तक टली

नागरिकता संशोधन अधिनियम पर सरकार को झटका लगेगा या फिर इसको चुनौती देने वालों को? सुप्रीम कोर्ट इस पर आज फ़ैसला नहीं कर पाया। जानिए कोर्ट ने क्या कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 6 दिसंबर तक के लिए टाल दिया। सीएए के मुद्दे पर 200 से ज़्यादा याचिकाएँ दायर की गईं जिनमें से ज़्यादातर जनहित याचिकाएँ हैं। इन्हीं मामलों में सुनवाई होनी है।

इससे पहले 12 सितंबर को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सैकड़ों याचिकाओं की छँटनी करने और जवाब देने के लिए चार हफ्ते का समय दिया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सीएए को चुनौती देने वाली याचिकाओं को तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाएगा। सोमवार को इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, न्यायमूर्ति रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने की।

क्या है सीएए

नागरिकता संशोधन क़ानून के तहत अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, पारसी, सिख, जैन और ईसाई प्रवासियों को 12 साल के बजाए 6 साल भारत में रहने पर ही यहाँ की नागरिकता मिल जाएगी। इसके लिए उन्हें किसी दस्तावेज़ को दिखाने की ज़रूरत भी नहीं होगी।

2019 में संशोधित सीएए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदाय के गैर-मुसलिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रयास करता है, जो 2014 तक देश में आए हैं। मुसलिमों के बहिष्कार को लेकर विपक्षी दलों, नेताओं और अन्य संस्थाओं द्वारा कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है। इस मुद्दे पर मुख्य याचिका इंडियन यूनियन मुसलिम लीग ने दायर की थी।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इंडियन यूनियन मुसलिम लीग द्वारा दायर याचिका को प्रमुख मामला मानने का फ़ैसला किया है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने दो वकीलों को नोडल काउंसल के रूप में भी नियुक्त किया है जो यह सुनिश्चित करेंगे कि अगली तारीख तक याचिकाओं का संकलन तैयार हो जाए।

अदालत ने कहा कि चूँकि कई कई मामले पेश किए जाने हैं, हमारे विचार में तत्काल विवाद का समाधान तब मिल सकता है जब 2-3 मामलों को प्रमुख मामलों के रूप में लिया जाए और सुविधा के लिए इसका संकलन पहले से तैयार किया जाए। ऐसी प्रक्रिया से कार्यवाही का संचालन आसान होगा। कोर्ट ने कहा, 'हमें अवगत कराया गया है कि इंडियन यूनियन मुसलिम लीग द्वारा दायर रिट याचिका पूरी हो गई है। याचिका एडवोकेट पल्लवी प्रताप द्वारा दायर की गई है। इसलिए हम उन्हें और कानू अग्रवाल को नोडल काउंसल नियुक्त करते हैं।'

नोडल काउंसलों को सलाह दी गई थी कि वे अन्य बातों के अलावा भौगोलिक और धार्मिक वर्गीकरण के आधार को ध्यान में रखते हुए कुछ अन्य मामलों को प्रमुख मामलों के रूप में रखने पर विचार करें। असम और उत्तर-पूर्व से संबंधित मुद्दों को उठाने वाली याचिकाओं को अलग-अलग वर्गीकृत किया जा सकता है। कोर्ट ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के मुद्दों के संबंध में केंद्र सरकार द्वारा दायर ताजा हलफनामे पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने के लिए असम और त्रिपुरा राज्यों को भी समय दिया। सीएए को चुनौती देने वाली 200 से अधिक याचिकाओं में से क़रीब 50 याचिकाएँ असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के लिए विशिष्ट मुद्दों को उठाती हैं।

सीएए का विरोध क्यों?

इंडियन यूनियन मुसलिम लीग द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि वे प्रवासियों को नागरिकता देने का विरोध नहीं करते हैं, लेकिन वे धर्म के आधार पर भेदभाव और अवैध वर्गीकरण से आहत हैं। इस अधिनियम से मुसलमानों का बहिष्कार धर्म आधारित भेदभाव है। याचिका में कहा गया है कि यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। भारतीय संविधान केवल नागरिकता को जन्म, वंश या वास्तविक निवास द्वारा अधिग्रहण द्वारा मान्यता देता है। यह अधिनियम धर्म को नागरिकता का मानदंड बनाता है। धर्म को नागरिकता से जोड़ना धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, जो संविधान के मूल ढांचे का एक हिस्सा है।

याचिका में आशंका जताई गई है कि इस अधिनियम के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के लागू होने से मुसलमानों को नुक़सान होगा, जिसे देश भर में लागू करने का प्रस्ताव है।

केंद्र की सफाई

केंद्र ने एक हलफनामे के माध्यम से कहा है कि सीएए किसी भी मौजूदा अधिकार पर लागू नहीं होता है जो संशोधन के अधिनियमन से पहले मौजूद हो सकता है और आगे किसी भी तरह से नागरिकों के कानूनी, लोकतांत्रिक या धर्मनिरपेक्ष अधिकारों को प्रभावित करने की मांग नहीं करता है।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें