अनिल अंबानी की कंपनियों के खाते 'फ़्रॉड', क्या सीबीआई जाँच होगी?
अनिल अंबानी की कंपनियाँ फिर मुश्किल में हैं। अब स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने जो कहा है उससे अनिल अंबानी की कंपनियों के ख़िलाफ़ सीबीआई जाँच की संभावना भी बन सकती है। यह इसलिए कि उन कंपनियों पर धोखाधड़ी के आरोप लगे हैं। ख़बर लिखे जाने तक कंपनी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
दरअसल, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया यानी एसबीआई ने हाल ही दिल्ली हाई कोर्ट से कहा है कि अनिल अंबानी की कंपनियों रिलायंस कम्युनिकेशन, रिलायंस टेलीकॉम और रिलायंस इंफ्राटेल के खातों को 'फ़्रॉड' यानी धोखाधड़ी घोषित किया गया है। इस पर कोर्ट ने बैंक से उन खातों की यथास्थिति बरकरार रखने को कहा है।
एसबीआई और कोर्ट की यह प्रतिक्रिया तब आई है जब रिलायंस कम्युनिकेशन के पूर्व निदेशक पुनित गर्ग ने रिजर्व बैंक यानी आरबीआई के 2016 के एक परिपत्र के ख़िलाफ़ हाई कोर्ट का रुख किया था। आरबीआई के वह परिपत्र खातों को फ्रॉड घोषित करने के संदर्भ में था। गर्ग ने तर्क दिया था कि परिपत्र प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के ख़िलाफ़ है, क्योंकि पार्टियों को सुने बिना खातों को धोखाधड़ी के रूप में घोषित किया जा सकता है।
इसी मामले में बैंक ने कहा है कि उसके ऑडिट डिवीजन ने पाया है कि धन के डावर्जन यानी इसको कहीं और ले जाने व अन्य अनियमितताओं के प्रमाण मिले हैं।
बता दें कि रिज़र्व बैंक के नियम के तहत एक अवधि के लिए भुगतान के डिफ़ॉल्ट होने पर एक खाता नॉन परफॉर्मिंग एसेट में बदल सकता है। इसके बाद बैंक इन खातों पर फ़ोरेंसिक ऑडिट करते हैं और अगर ऑडिट में धन के ग़लत इस्तेमाल, धन के डायवर्जन, धन की निकासी आदि का पता चलता है, जो कि सभी ग़ैरक़ानूनी गतिविधियाँ हैं, तो खाते को 'फ्रॉड' के रूप में रखा जा सकता है।
नियमों में यह भी कहा गया है कि यदि धोखाधड़ी में शामिल राशि 1 करोड़ से ऊपर है तो बैंक को सीबीआई के पास शिकायत दर्ज करानी चाहिए। यदि राशि एक करोड़ से कम है तो स्थानीय पुलिस इस मुद्दे की जाँच करती है।
लेकिन जाँच तभी हो सकती है जब इसकी शिकायत की जाए। इसके लिए बैंक को पहले खाते को फ़्रॉड बताए जाने की जानकारी आरबीआई को देनी होगी और 30 दिनों के भीतर सीबीआई से शिकायत करनी होगी।
बता दें कि पिछले साल फ़रवरी में रिलायंस कम्युनिकेशन्स ने ख़ुद को दिवालिया घोषित करने की न्यायिक प्रक्रिया शुरू करने का फ़ैसला किया था। दिवालियापन के लिए आवेदन देते समय लेनदारों ने दावा किया था कि रिलायंस कम्युनिकेशंस पर 49,000 करोड़, रिलायंस इंफ्राटेल पर 12,000 करोड़ और रिलायंस टेलीकॉम पर 24,000 करोड़ रुपये का बकाया है। हालाँकि, एबीपी की एक रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस कम्युनिकेशंस ने इस मामले में एक बयान जारी कर अपना पक्ष रखा है। कंपनी ने कहा है कि 'लेनदारों के नियुक्त किए पेशेवर की तरफ से सत्यापित किए गए आँकड़ों के अनुसार एनसीएलटी में मामला जाने के समय ग्रुप पर 26 हजार करोड़ रुपए ही बकाया थे।
अब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक द्वारा आरकॉम, रिलायंस टेलीकॉम और रिलायंस इन्फ्राटेल के खातों को पिछले हफ्ते फ्रॉड बताए जाने के बाद रिलायंस कम्युनिकेशंस की दिवालिया प्रक्रिया में एक और अड़चन आ सकती है।
रिपोर्टों में कहा गया है कि इन बैंकों समेत वेंडर्स और दूसरे कर्जदाताओं ने कंपनी पर क़रीब 86,000 करोड़ रुपये के बकाया का दावा किया है। अंग्रेजी वेबसाइड बिजनेस इनसाइडर डॉट इन ने भी अपनी रिपोर्ट में यही दावा किया है। इसको जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया था।
"The accounts of 3 Anil Ambani-led Reliance Group entities have reportedly been flagged as fraudulent by three banks, including India’s largest lender, SBI. RCom, Reliance Infratel & Reliance Telecom owe lenders 86,188 Cr." Yet no action by our watchman!https://t.co/SMU5yDX2l1
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) December 30, 2020
वैसे, इससे पहले भी अनिल अंबानी की कंपनियाँ लेनदेन को लेकर विवादों में रही हैं। हाल में अनिल अंबानी अपने गिरते व्यावसायिक कारोबार की वजह से सुर्खियों में हैं। पर वे इसके पहले कई बार गैर-व्यावसायिक कारणों से भी चर्चा में रह चुके हैं। कभी अमर सिंह के नज़दीक समझे जाने वाले अनिल उनकी मदद से ही समाजवादी पार्टी में आए थे और उसकी ओर से ही राज्यसभा सांसद भी बने थे। बाद में अनिल अंबानी ने पार्टी छोड़ दी और राज्यसभा की सदस्यता भी। इस तरह वे राजनीति से दूर होकर व्यवसाय पर ध्यान देने की कोशिश करने लगे।
लेकिन अनिल एक बार फिर राजनीतिक बहस के केंद्र में आ गए थे जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने रफ़ाल सौदे पर सवाल उठाया। उन्होंने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर ही तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने रफ़ाल बनाने के लिए दसॉ के भारतीय पार्टनर के रूप में रिलायंस डिफ़ेन्स को चुना। आरोप यह लगाया गया कि रिलायंस डिफ़ेन्स को विमानन या हवाई जहाज या उसके कल-पुर्जे बनाने का कोई अनुभव नहीं है तो उसे ऑफ़सेट पार्टनर कैसे चुना गया। हालाँकि अनिल अंबानी इन सभी आरोपों को खारिज करते रहे हैं। अब तो रफाल की खेप भी भारत में आ चुकी है।