वहाबी इसलाम के झंडाबरदार उइगुर मुसलमानों पर अत्याचार को बुरा नहीं मानते
वहाबी इसलाम के झंडाबरदार, मुसलमानों के पवित्र स्थलों के संरक्षक और पूरी दुनिया के मुसलमानों के नेता समझे जाने वाले सऊदी अरब के शहज़ादे ने उइगुर मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों को वाजिब ठहराया है। शहज़ादा मुहम्मद-बिन-सलमान ने चीन दौरे पर वहां के कैंपों में बंद हज़ारों उइगुर मुसलमानों पर होने वाले अत्याचार पर कहा, 'चीन को यह अधिकार है कि वह अपनी राष्ट्रीय सुरक्षाा और उग्रवाद दूर करने के लिए कार्रवाई करे।'
Saudi Crown Prince Mohammed said during meeting with Xi Jinping "China has the right to carry out anti-terrorism and de-extremization work for its national security." -reported CCTV 7PM News. pic.twitter.com/TitJN1eIjM
— Luz Ding (@luzdingyu) February 22, 2019
सामान्य दिखने वाला यह बयान साधारण बिल्कुल नहीं है। यह बदलती हुई विश्व राजनीति में अपनी जगह तलाशते परेशान सऊदी अरब की मजबूरी दिखाता है और चीन का बढ़ता प्रभाव भी। लेकिन इसके साथ ही यह भी साफ़ करता है कि किस तरह सऊदी अरब का यह युवराज ज़रूरतों के मुताबिक़ अपना स्टैंड बदलता है, नीतियाँ छोड़ता है और उन मूल्यों की तिलांजलि देता है, जिसकी अपेक्षा वह दूसरों से करता है।
सऊदी शाहज़ादा: कमाल की कूटनीति
इसलाम के नाम पर राजनीति करने वाले और इसलामी दुनिया में ईरान को पटकनी देकर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश में लगे इस इसलामी देश को इसलाम मानने वालों की दुर्दशा से कोई मतलब नहीं।
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कौन हैं उइगुर मुसलमान
पूरा मामला समझने के लिए हमें पहले यह समझना होगा कि उइगुर कौन हैं और क्यों चर्चा मे हैं। चीन के पश्चिम-उत्तर इलाक़े में शिनजियांग में रहने वाले ये मुसलमान ख़ुद को तुर्की मूल के मानते हैं। उनकी भाषा तुर्की से मिलती जुलती है, उनके नीति रिवाज तुर्की के रहने वालों से मिलते जुलते हैं। उनका कहना है कि वे चीनी नहीं है, क्योंकि उनका खाना-पीना, रीति-रिवाज, भाषा-संस्कृति, कुछ भी ऐसा नहीं है जो उन्हें चीन से जोड़े। उनका यह भी कहना है कि चीन में क्रांति के ठीक पहले तक वे अलग थे, क्रांति के बाद उन्हें चीन में ज़बरन मिला लिया गया। वे अलग होना चाहते हैं। इसके उलट चीन उइगुर मुसलमानों को अपने देश का जनजातीय अल्पसंख्यक समुदाय मानता है, उसने शिनजियांग को स्वायत्त क्षेत्र का दर्जा दे दिया है, उनकी सुरक्षा की कसमें खाता है। पर चीन शिनजियांग को किसी कीमत पर अलग नहीं होने देना चाहता और उइगुरों को राष्ट्रीय मुख्य धारा में लाने की कोशिश में है।
चीन शिनजियांग के अलगाववादी आंदोलन को तोड़ने के लिए उइगुर राष्ट्रीयता को तोड़ना चाहता है और इसके लिए उइगुर पहचान को मिटाना चाहता है। इसी कोशिश के तहत उइगुरों के धर्म सुन्नी इसलाम पर भी वह चोट कर रहा है।
ख़बरें हैं कि उइगुरों को बड़े-बड़े कैम्पों में रखा गया है, जहां उन्हें कम्युनिस्ट विचारधारा और चीनी राष्ट्रीयता का पाठ ज़बरन पढाया जा रहा है। खबरें तो यहाँ तक आईं कि कुछ इलाक़ों में रोज़ा रखने पर रोक लगा दी गई, कुछ लोगों को दाढ़ी रखने से मना किया गया और कुछ मसजिदों को बंद कर दिया गया। चीन प्रशासन इन तमाम बातों से इनकार करता है। लेकिन यह सच है कि शिनजियांग के कैम्पों में हज़ारों उइगुर हैं, जिनकी स्थिति क़ैदियों से बहुत बेहतर नहीं है।
मुहम्मद-बिन-सलमान जब कहते हैं कि चीन को उग्रवाद दूर करने के उपाय करने का हक है तो वह यही संकेत देते हैं कि चीन इन कैम्पों में उइगुरों को बंद रखे हुए है तो उसे ऐसा करने का हक है। लेकिन सऊदी शहज़ादे ने जो नहीं कहा, वह यह है कि
क्या चीन को यह हक है कि वह किसी मुसलमान को रोज़ा या दाढ़ी रखने से रोके, मसजिद बंद करा दे, भले ही वह अलगाववादी ही क्यों न हो लेकिन यदि सऊदी अरब का शहज़ादा मुसलमानों के साथ हो रहे इस तरह के व्यवहार का समर्थन करता है।
मुहम्मद-बिन-सलमान की चीन यात्राा के पहले उइगुर मुसलमानों ने उम्मीद की थी कि मुसलमानों के नेता होने के नाते सऊदी शहज़ादा चीन से उनकी समस्याओं पर बात करेंगे, दबाव डालेंगे ताकि कम से कम उन पर हो रहे अत्याचार रुक जाएँ। उन्हें तुर्की से प्रेरणा मिली थी। तुर्की के राष्ट्रपति रीचप तैयप अर्दोवान ने चीन की कड़ी निंदा की थी और कहा था कि वे इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाएँगे। लेकिन मुहम्मद-बिन-सलमान ने इसके उलट उन पर हो रहे अत्याचार को वाजिब ही ठहरा दिया।
Mohammad Bin Salman is in #China - Will he bring up the plight of #Uyghur #Muslims in East #Turkistan .
— Abdugheni Sabit (@AbdugheniSabit) February 21, 2019
Møre than two million #Uyghurs have been sent to concentration camps where they are forced to denounce #Islam and pledge allegiance to the #Chinese communist party. pic.twitter.com/Dfytd4Q5QM
सऊदी अरब के इस व्यवहार के पीछे की वजह तलाशना मुश्किल नही है। शहज़ादे ने चीन में 10 अरब डॉलर के निवेश की परियोजनाओं को हरी झंडी दी और समझौते पर दस्तख़त भी हो गए। चीन जिस तरह अपने 'रोड एंड बेल्ट इनीशिएटिव' के ज़रिए एशिया से निकल कर मध्य पूर्व होते हुए यूरोप तक पहुँचना चाहता है और बहुत तेज़ी से अमेरिका को पीछे छोड़ कर दुनिया का बादशाह बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, रियाद उसका फ़ायदा उठाना चाहता है। उसकी रणनीति है कि अमेरिका का पिछलग्गू बने रहने के बजाय नए दोस्तों की तलाश करे। तीसरा कारण है ईरान। ईरान और सऊदी अरब की प्रतिद्वंद्वता सिर्फ शिया-सुन्नी लड़ाई नहीं है, यह मुसलिम राजनीति में पकड़ बनाने की होड़ है और चीन से तेहरान की बढती नज़दीकी को सऊदी अरब थोड़ा बहुत कम भी करना चाहता है। ज़ाहिर है, वह चीन को नाराज़ करना नहीं चाहता है।
मुहम्मद-बिन-सलमान का निजी स्वभाव भी चीन के स्वभाव से मेल खाता है। अपने ही देश के पत्रकार जमाल खाशोज़ी की हत्या करवाने का आरोप उन पर लग चुका है। पहले खाशोज़ी उनके नज़दीक थे, बाद में उन्होंने जब प्रशासन की आलोचना शुरू की तो शहज़ादे की आँखों में खटकने लगे। ऐसा व्यक्ति क्यों भला चीनी मुसलमानों के मानवाधिकारों को लेकर चिंतित हो।
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मुहम्मद-बिन-सलमान बदलती विश्व व्यवस्था के प्रतीक है, सऊदी अरब के रणनीतिक और आर्थिक फ़ायदे के लिए यदि मुसलमानों के हितों की बलि देनी पड़े तो वह इसके लिए तैयार हैं।