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प्लीज, बता दो और कितना गिरोगे वत्स, किस चौराहे पर चलें?

प्लीज, बता दो और कितना गिरोगे वत्स, किस चौराहे पर चलें?

उस शख्स ने कभी चौराहे पर जूते लगाए जाने की पेशकश की थी। लेकिन आज वो इतना गिर चुका है कि उसके बाद उसके गिरावट को मापने का कोई तरीका ही नहीं बचा है। वरिष्ठ पत्रकार-लेखक विष्णु नागर ने उसके गिरने की सीमा नापने की कोशिश की, लेकिन वो नाप नहीं पाए और अंत में उन्हें भी कहना पड़ा- कायर कहीं के। जरा आप भी गिरने की सीमा नापने की कोशिश करेंः

देखना तुम,अभी ये और गिरेगा। जब तुम सोचोगे कि अब गिरने के लिए और बचा ही क्या है, ठीक उसी समय यह तुम्हारी सारी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए और भी नीचे गिर कर दिखा देगा। फिर व्यंग्य से तुम्हारी ओर देख कर मुस्कुराएगा।अतल में पहुंच जाएगा तो वहां से अतल के भी अतल में गिर कर दिखाएगा।तुम सोचोगे, इससे ज्यादा तो यह चाहकर भी नहीं गिर सकता। वह तुम्हें फिर से गलत साबित करेगा। इसके भी नीचे और भी नीचे और भी नीचे गिर कर दिखाएगा। पाताल के भी  पाताल के भी पाताल के भी पाताल में गिर जाएगा और पूछेगा कि और भी नीचे गिर कर दिखाऊं क्या? आप बर्दाश्त नहीं कर पाओगे, वहां से उदास और हताश होकर चल दोगे।जी उल्टी करने को होने लगेगा तो वह अट्‌टहास करते हुए कहेगा-  ' कायर कहीं के ' !

उसे इस बात से डर लगता है कि अगर उसने निरंतर, प्रतिक्षण गिरना जारी नहीं रखा, जरा सी ढील दी, थकने का थोड़ा सा भी संकेत दिया तो आटोमेटिकली वह ऊपर उठता चला जाएगा।उसके मनुष्य बनने का खतरा पैदा हो जाएगा और मनुष्य बनने से अधिक घातक उसके तथा उसके धंधे के लिए कुछ नहीं है। मनुष्य बन गया तो फिर वह किसी काम का नहीं रहेगा।उसकी अभी तक की सारी सफलताएं ,सारे अभियान धरे की धरे रह जाएंगे।अब तक की उसकी नफ़रत की सारी कमाई चौपट हो जाएगी। उसका दिल बैठ जाएगा। उसका संकरा दिमाग  काम करना बंद कर देगा।

जुबान जो अभी तक उसके बहुत काम आई है, वह चलने से मना कर देगी। आंखें जो बटन की मानिंद हैं, उनमें हरकत होना बंद हो जाएगी।सीना जो छप्पन इंची है, 16 इंची रह जाएगा। हाथ- पांव जो दिन -रात दांये- बांये , इस- उस पर चलते रहते हैं, सुन्न हो जाएंगे। वह ' दिव्यांग ' हो जाएगा‌। इस डर से वह फिर और फिर और फिर गिरता चला जाता है। गिरना ही उसके स्वास्थ्य का मूल रहस्य है। उसके जीवन का असली ध्येय गिरना और गिरते चले जाना है, उसकी आज तक की कुल पूंजी यही है।

यह गिरते हुए सोचता है कि मेरे गिरने से हिंदू ऊपर उठ जाएंगे तो अपनी समझ से बेचारा वह हिंदुओं के उत्थान के लिए गिरता है।वह मुसलमानों को डराने - टपकाने के लिए गिरता है। वह अडानी- अंबानी को उठाने और उठाने और भी उठाने, उन्हें सातवें आसमान तक पहुंचाने के लिए गिरता है।


वह अधमों के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने के लिए गिरता है।वह इसलिए भी गिरता है कि भविष्य में इस पद पर कोई आया तो कहीं वह उसे हटाकर अधम होने का रिकार्ड अपने नाम न करवा ले!इसलिए वह गिरता है और गिरता चला जाता है। वह अपने अज्ञात शत्रु से प्रतिद्वंद्विता करने के लिए गिरता है। कुछ लोग गिर कर संभलते हैं,वह संभल कर गिरता है।

उसने एक अलग विभाग बना रखा है,जिसका काम है कि कहां- कहां,कैसे- कैसे और भी अधिक गिरने की संभावनाएं हैं। वह उस विभाग की उम्मीदों पर न केवल खरा उतरता है बल्कि उसकी कल्पनाशक्ति को अधिक विस्तार देते हुए गिरने की और अनेक नई संभावनाओं से उनका परिचय करवाता है।

पद पर  रहते हुए गिरने का उसे करीब एक चौथाई सदी का अनुभव है। उसने पहली बार पद पर बैठने के चार महीने के भीतर ही गिरने की ऐसी निचाई दिखाई थी कि दुनिया चकित रह गई थी। इसकी देखा-देखी  दूसरे भी उस निचाई तक गिरने का प्रयास करने लगे तो अनुभव के अभाव में वे अपने हाथ- पैर तुड़वा बैठे।

उन्हें इस स्थिति में देख वह मन ही मन हर्षित हुआ। उसने अपने आप से कहा कि गिरने के मामले में ये अभी बच्चे हैं।उसने उन्हें वह तरकीब कभी नहीं बताई कि जिससे वह गिर कर भी बचा और बना रहा।वह अपने गुर अपने पास रखता है। गिरने की प्रतियोगिता करनेवाले गिरते जाते हैं और दिव्यांगता प्राप्त करते जाते हैं। यह  उनकी दिव्यांगता पर अकेले में ताली बजाता है।अपना डंका बजाकर आप सुनता है और मगन रहता है।

यूं तो यह कायर है मगर गिरने में उस जैसा कोई साहसी आज तक इस देश में हुआ नहीं। वह संकोची भी है। उसे यह पसंद नहीं कि कोई उसके गिरने की तारीफ में कसीदे पढ़ना शुरू कर दे! 

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