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हिरासत में मौत के मामले में 30 साल बाद संजीव भट्ट को उम्रक़ैद

हिरासत में मौत के मामले में 30 साल बाद संजीव भट्ट को उम्रक़ैद

जामनगर की एक स्थानीय अदालत ने 1990 में हिरासत में मौत के मामले में गुजरात कैडर के बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। 

जामनगर की एक स्थानीय अदालत ने 1990 में हिरासत में मौत के मामले में गुजरात कैडर के बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। पुलिस कांस्टेबल प्रवीण सिंह झाला को भी यही सजा दी गई है। जामनगर ज़िला और सत्र न्यायाधीश डीएम व्यास ने सजा सुनाई। अभियोजन पक्ष के अनुसार भट्ट ने एक सांप्रदायिक दंगे के दौरान सौ से ज़्यादा लोगों को हिरासत में लिया था और इनमें से एक व्यक्ति की रिहा किए जाने के एक दिन बाद मौत हो गई थी। बता दें कि संजीव भट्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ खुलकर बोलने के लिए चर्चा में रहे हैं। उन्होंने गुजरात दंगों में हाथ होने का आरोप लगाते हुए नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा तक दे दिया था। मोदी के ख़िलाफ़ कोई आरोप साबित नहीं हो पाए। लेकिन इसके बाद संजीव भट्ट के बुरे दिन शुरू हो गए। उनको पहले निलंबित किया गया था और बाद में 2015 में नौकरी से ही बर्खास्त कर दिया गया। अब एक ऐसे केस में उन्हें सजा हुई है जो क़रीब 30 साल पहले दर्ज की गई थी।

संजीव भट्ट को राहत मिलने की उम्मीदों को पिछले हफ़्ते ही तब झटका लगा था जब सुप्रीम कोर्ट ने मामले में 11 अतिरिक्त गवाहों से पूछताछ की उनकी याचिका ख़ारिज़ कर दी थी। गुजरात पुलिस ने इसे समय बर्बाद करने वाली रणनीति के रूप में क़रार दिया था।

1990 में भट्ट को जामनागर में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात किया गया था। यह घटना एक प्रभुदास वैष्णवी की मौत से संबंधित है, जिसे भट्ट के लोगों ने एक बंद के दौरान दंगा करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। वह नौ दिनों के लिए हिरासत में था और रिहा होने के एक दिन बाद ही उसकी मौत हो गई थी। उस समय गुर्दे का काम करना बंद कर देना मौत का कारण बताया गया था। लेकिन जल्द ही हिरासत में यातना देने के कारण मौत होने की एफ़आईआर दायर की गई।

इस मामले में अभियोजन पक्ष ने पाँच हजार पेज की चार्जशीट पेश की थी। संजीव भट्ट के साथ, दो पुलिस अधिकारी और चार कांस्टेबल भी इस मामले में आरोपी थे। उनके ख़िलाफ़ लाए गए आरोप धारा 302, 323, 506, 34, 114 के तहत थे। फ़ैसला देने से पहले अदालत ने कुल 32 गवाहों को सुना था। बता दें कि यह अभी निचली अदालत का फ़ैसला है, यानी इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ वह ऊपरी अदलतों में अपील कर सकते हैं। 

भट्ट के ख़िलाफ़ कितने मामले?

हिरासत में मौत का मामला 1995 में उठाया गया था, लेकिन लंबे समय तक गुजरात हाई कोर्ट के स्टे के कारण कारण मुक़दमा नहीं चला। जब 2011 में स्टे हटा तो कार्यवाही शुरू हुई। भट्ट फ़िलहाल ड्रग प्लांटिंग के एक मामले में जेल में हैं। विवादों में रहे भट्ट को अगस्त 2015 में बर्खास्त कर दिया गया था, हालाँकि उन्हें 2011 में ड्यूटी से अनुपस्थित रहने और आधिकारिक वाहनों के दुरुपयोग के आरोप में निलंबित कर दिया गया था। इससे पहले 1998 के मादक पदार्थ से जुडे़ एक मामले में भी भट्ट गिरफ्तार किए गए थे। तब संजीव भट्ट को पालनपुर में मादक पदार्थों की खेती के एक मामले में छह अन्य लोगों के साथ अरेस्‍ट किया गया था। 1998 में संजीव भट्ट बनासकांठा के डीसीपी थे।

संजीव भट्ट क्यों हमलावर रहे हैं मोदी पर?

बता दें कि संजीव भट्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच बनती नहीं है। संजीव भट्ट नरेंद्र मोदी को निशाने पर लेते रहे हैं। भट्ट चंद गिने-चुने आईपीएस अधिकारी थे जिन्होंने गोधरा कांड के बाद हुए 2002 के गुजरात दंगों के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर गंभीर आरोप लगाए थे। भट्ट ने 14 अप्रैल 2011 को बाकायदा सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा देकर आरोप लगाया था, 'मोदी ने 27 फ़रवरी 2002 को बैठक में पुलिस के शीर्ष अधिकारियों से कहा कि वे मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंदुओं को अपना गुस्सा बाहर निकालने दें।' बता दें कि गुजरात के तब के गृहमंत्री हिरेन पंड्या ने भी ऐसे ही आरोप लगाए थे और उन्होंने बैठक में शामिल कई अधिकारियों के नाम भी बताए थे। हालाँकि, इनमें संजीव भट्ट का नाम शामिल नहीं था। बाद में हिरेन पंड्या की हत्या कर दी गई थी। 

बता दें कि संजीव भट्ट के आरोपों को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज़ कर दिया था।

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