संदेशखाली: महिलाओं को अपनी-अपनी राजनीति का दास न बनाएं
भारत के प्रधानमंत्री, तृणमूल कॉंग्रेस द्वारा शासित राज्य पश्चिम बंगाल गए हैं। वे वहाँ इसलिए गए हैं जिससे वे संदेशखाली की महिलाओं की पीड़ा को समझ सकें। वहीं दूसरी तरफ उत्तरप्रदेश के घाटमपुर में दो दलित बहनों का पहले बलात्कार किया गया फिर उन्हे मारकर पेड़ पर लटका दिया गया। पुरुषों द्वारा महिलाओं के खिलाफ किए जा रहे अपराधों और हिंसा का स्तर बढ़ता जा रहा है, समझ में नहीं आता कि इसका अंत कैसे होगा? कनाडियन साहित्यकार और ‘द हैन्डमेड्स टेल’ की लेखक मार्गरेट एटवुड महिलाओं और पुरुषों की सामाजिक स्थिति और वर्चस्व विभाजन को लेकर कहती हैं कि-
“पुरुष डरते हैं कि महिलाएँ उन पर हँसेंगी। महिलाओं को डर है कि पुरुष उन्हें मार डालेंगे।”
लेखक की चिंता जायज है लेकिन मेरी नजर में उन्हे यह कहना चाहिए था कि- महिलाओं को डर है कि पुरुष पहले उनका बलात्कार करेंगे, फिर अपनी कायरता छिपाने के लिए उन्हे मार देंगे और देश का नेतृत्व ऐक्शन लेने से पहले यह सोचेगा कि जहां अपराध हुआ है वहाँ किस पार्टी का शासन है।
मार्गरेट एटवुड ने यह विचार अपनी ‘दृष्टि’ के हिसाब से दिया है। शायद आज का भारत उनकी दृष्टि में आया ही न हो।उन्हे क्या पता था कि पूरी दुनिया में ‘संस्कृति और सभ्यता का प्राचार्य’ बना घूम रहा भारत कभी महिलाओं के साथ ऐसाभेदभाव करेगा।
पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में महिलाओं के यौन उत्पीड़न की खबर है, इस मामले का आरोपी न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद गिरफ्तार कर लिया गया है। इस मामले को पूरे देश में उठाया जाना चाहिए। राज्य की ममता बनर्जी सरकार द्वारा की गई हीलाहवाली के लिए आलोचना भी की जानी चाहिए। बंगाल ही नहीं पूरे देश की महिलाओं को ममता बनर्जी से सवाल पूछना चाहिए कि क्यों उनकी ही पार्टी का एक नेता, जिसकी छवि एक गुंडे जैसी है, उनकी नाक के नीचे महिलाओं का यौन उत्पीड़न करता रहा? गाँव वालों की जमीन हड़पता रहा? और उन्हे धमकाता रहा? उसे कानून का डर क्यों नहीं था?
सवाल पूछने चाहिए, सवालों को नेताओं के सामने रखा जाना चाहिए। लेकिन सवालों के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि वो अपने स्वभाव में बड़े ‘निष्ठुर’ और निर्मम होते हैं। सवालों को अगर पंख लग जाएँ तो वो किसी के भी सामने आकर खड़े हो जाते हैं। क्या पश्चिम बंगाल में उठ रहे सवालों में इतनी ऊर्जा आ गई है कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने आ खड़े हों?
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जब तक पश्चिम बंगाल और देश की महिलायें प्रधानमंत्री से सवाल पूछने की आदत नहीं डालेंगी तब तक न्याय नहीं मिल सकेगा। प्रधानमंत्री ने संदेशखाली पहुंचकर कहा कि ‘संदेशखाली में महिलाओं पर अत्याचार से देश गुस्से में है’। महिलाओं के यौन उत्पीड़न पर पूरे देश को गुस्सा होना भी चाहिए। पर जब महिलाओं के उत्पीड़न को राजनैतिक टूल की तरह इस्तेमाल किया जाने लगे तब चिंता बहुत ही गंभीर हो जाती है। जिस राज्य में भाजपा की सरकार हो और वहाँ कोई यौन उत्पीड़न हो जाए तो प्रधानमंत्री एक शब्द नहीं बोलते, उस राज्य की यात्रा करना तो बहुत दूर की बात है। मैं इसे महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक व्यवहार मानती हूँ।
मुद्दा यह नहीं कि प्रधानमंत्री संदेशखाली क्यों गए या उन्होंने वहाँ जाकर क्या कहा, मुद्दा यह है कि प्रधानमंत्री अपने दल द्वारा शासित राज्यों में हो रहे अपराधों पर चुप्पी क्यों साध जाते हैं? क्या संदेशखाली की महिलाओं और मणिपुर की महिलाओं में अंतर है? क्या ‘संदेशखाली’ और उत्तराखंड की ‘अंकिता भंडारी’ में अंतर है? क्या संदेशखाली और कठुआ व हाथरस की महिलाओं में अंतर है? अगर अंतर नहीं है तो पीएम मोदी की अंतरात्मा संदेशखाली के अतिरिक्त और कहीं क्यों नहीं जागती?
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महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर देश तो हमेशा गुस्से में रहता है, लेकिन प्रधानमंत्री चुपचाप रहते हैं, उनका दुख, उनकी पीड़ा के द्वार भाजपा शासित राज्यों में जाकर बंद क्यों हो जाते हैं?
मुझे आश्चर्य है कि मणिपुर में घट रही घटनाओं, और दिल्ली में महिला पहलवानों के साथ खुलेआम किए गए दुर्व्यवहार पर अपनी खामोशी और तमाम लोगों द्वारा की गई आलोचनाओं के बाद भी पीएम कैसे और किस मुँह से संदेशखाली की महिलाओं के सामने चले जाते हैं? क्या होगा अगर संदेशखाली की किसी महिला ने पीएम मोदी से पूछ लिया कि आपने महिला पहलवानों के मामले में क्या किया? आपने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ क्या किया? आपने मणिपुर के मुख्यमंत्री के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की? आपने कठुआ में बलात्कारी के समर्थन में रैली निकालने वाले अपने ही दल के नेताओं के खिलाफ क्या किया?
अंकिता भण्डारी मामले में अपने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से जवाब तलब क्यों नहीं किया? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से क्यों नहीं पूछा कि हाथरस मामले में बलात्कार पीड़िता की लाश क्यों जल्दबाजी में जला दी गई थी, क्यों उसके परिवार के लोगों को परेशान किया गया? गुजरात सरकार ने बड़े चुपके से बिलकिस बानो के अपराधियों को छोड़ दिया था, वहाँ पर जाकर पीएम मोदी ने अपनी सरकार और प्रशासन से जवाब तलब क्यों नहीं किया। चाहे संदेशखाली हो या मणिपुर या फिर बिलकिस बानों मामला। ये लगातार सिर्फ इसलिए बनते जा रहे हैं क्योंकि प्रधानमंत्री में महिला अपराधों पर लगाम लगाने वाली नेतृत्व क्षमता नहीं है।
कोई कह सकता है कि यह राज्य का विषय है प्रधानमंत्री का नहीं तो मैं कहूँगी कि देश का हर विषय प्रधानमंत्री का विषय है। अगर प्रधानमंत्री बिलकिस, मणिपुर और पहलवानों के मामले में सख्त संदेश दे पाते तो अन्य पार्टियों की राज्य सरकारों में अपराधियों को बचाने का साहस न आ पाता। हर राज्य सरकार अपने यहाँ अपने-अपने लोगों को बचाने में लगी है, क्योंकि महिला अपराध पर पीएम कुछ नहीं बोलते या फिर बड़ा सोच समझकर प्लान करके बोलते हैं, इसीलिए महिला अपराधों पर लगाम कसना मुश्किल होता जा रहा है।
यदि मणिपुर के समय कुछ बड़े निर्णय कर लिए जाते तो देश में संदेशखाली न बनता! लेकिन महिला अपराधों को अपनी पार्टी की सुविधा से, चुनावों के मद्देनजर उठाना लगातार यह सुनिश्चित करता है कि कहीं न कहीं मणिपुर और संदेशखाली होता रहे। भारत के प्रधानमंत्री की चिंता देश की हर महिला के लिए होनी चाहिए वरना प्रधानमंत्री की ‘राज्य आधारित’ सिलेक्टिव महिला चिंताओं से कुछ नहीं होगा बल्कि यह देश लगातार महिलाओं के लिए असुरक्षित होता जाएगा। चुनाव आते जाते रहेंगे और सरकारें आएंगी जाएंगी लेकिन बिलकिस बानो जैसे धब्बे को मिटाना बहुत मुश्किल होगा।
बलात्कार जैसे अपराधों को भी राजनीति करने का अड्डा बना देने का ही कारण है कि महिला अपराध रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। पीएम के संदेशखाली की यात्रा से अपराध कम करने में मदद मिलती तो मुझे बहुत खुशी होती। NCRB अर्थात नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो, यह भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाली संस्था है। NCRB की रिपोर्ट ‘क्राइम इन इंडिया-2022’ के अनुसार, सिर्फ 2022 में ही महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 4,45,256 है जो कि 2020 व 2021 के मुकाबले बहुत ज्यादा है। आंकड़ा यह बता रहा है कि प्रत्येक 51 मिनट में एक महिला अपराध घटित हो रहा है।
महिलाओं के खिलाफ अपराधों में उत्तर प्रदेश की हालत सबसे ज्यादा खराब है। हाल में घटी घाटमपुर की घटना तो सिर्फ एक उदाहरण मात्र है। NCRB के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक साल में महिला अपराधों की संख्या 65 हजार से भी ज्यादा है। क्या कभी पीएम मोदी उत्तर प्रदेश आकर यह कहने का साहस करेंगे कि घाटमपुर की घटना से उत्तर प्रदेश की महिलायें नाराज हैं? या यूपी के मुख्यमंत्री से पूछेंगे कि इस राज्य में महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध क्यों हो रहे हैं? मुझे तो मुश्किल लग रहा है, लेकिन यदि ऐसा हो सका तो यह महिला सुरक्षा की दृष्टि से अहम होगा।
यौन अपराधों के अतिरिक्त और भी मामले हैं जिनसे यह पता चलता है कि पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा महिलाओं को लेकर बिल्कुल गंभीर नहीं है। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनते ही वहाँ ‘समान नागरिक संहिता’ के नाम पर ‘स्वतंत्रता’ और राजस्थान सरकार ने महिलाओं से चाइल्ड केयर लीव’ तक छीन लिया। वे आंदोलन करेंगी, विरोध प्रदर्शन करेंगी तो उनकी मांगों पर किसी किस्म का ध्यान नहीं दिया जाएगा। यह किस तरह का प्रशासन है?
महादेवी वर्मा ने स्त्री-विमर्श पर आधारित अपने निबंध संग्रह ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ में लिखा है -
“दासत्व बहुत काल के उपरान्त एक अद्भुत संहारक शक्ति को जन्म देते रहे हैं, जिसकी बाढ़ रोकने में बड़े शक्तिशाली भी समर्थ नहीं हो सके।”
महिलाओं को अपनी अपनी राजनीति का दास बनाने से बचना चाहिए। महिलाओं और उनके मुद्दों व उनके खिलाफ होने वाले अपराधों पर ढीला ढाला रवैया उनमें उस शक्ति को जन्म दे सकता है जिसकी चर्चा महादेवी वर्मा ने की है। यदि यह बाढ़ अपने अस्तित्व में आ गई तो न मणिपुर को पीएम की जरूरत होगी और न ही संदेशखाली को। मुझे लगता है कि सरकार, समाज और नीति निर्माताओं को सावधान रहना चाहिए अन्यथा महिलायें जिस रूप में सामने आएंगी उससे निपटने के लिए कोई ‘कार्यालय’, ‘संगठन’ व विचारधारा काम नहीं आएगी।