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सनातन संस्था की किताब की सीख, 'दुर्जनों' की हत्या ठीक

सनातन संस्था की किताब की सीख, 'दुर्जनों' की हत्या ठीक

गौरी लंकेश, कलबुर्गी, पानसरे और डाभोलकर की हत्या में जिस सनातन संस्था का नाम सामने आया है, यह संस्था हिंदूवाद की बात करती है और हत्या का प्रचार रखती है।

 - Satya Hindi

यह किताब हिंसा को सही ठहराती है और उसे धर्म और समाज की रक्षा के नाम से जोड़ती है और एक तरह से मान कर चलती है कि कलियुग में कोई युद्ध चल रहा है। ‘क्षात्र धर्म साधना’ किताब में दुर्जन की परिभाषा दी गई है। यह कहा गया है कि धन और सेक्स की वजह से समाज का नाश हो रहा है, स्थापित मूल्य ख़त्म हो रहे हैं जिससे लोगों में सघन निराशा घर कर रही है। आज इस बात की आवश्यकता है कि समाज को बचाया जाए। किताब में यह साफ़ कहा गया है कि अब समाज में राक्षस नहीं होते बल्कि वे दुर्जन के रूप में मिलते हैं। ये दुर्जन कीड़े-मकोड़ों की तरह से समाज को नष्ट कर रहे हैं। अगर इन कीड़ों को नहीं मारा गया तो पूरा समाज ही ख़त्म हो जाएगा। इसलिए खुद को बचाने के लिए इन दुर्जनों को मारना ज़रूरी है। वे दुर्जनों की हत्या को पाप नहीं मानते।किताब मौजूदा हालात की तुलना फ़्रांसीसी क्रांति के समय से करती है। वह कहती है इस समय देश में वैसे ही हालात हैं। जैसे फ़्रांसीसी क्रांति के समय दुर्जनों का कत्ल किया गया, वैसे ही आज यह ज़रूरी है। जो दुर्जनों के सहमतिकार हैं, वे भी दुर्जन है और उन्हें भी नहीं बख़्शना चाहिये। धर्मयुद्ध में यह जायज़ है। तत्व और धर्म की स्थापना के लिए यह करना पड़ता है।

किताब में कहा गया है कि हमारा धर्मयुद्ध 65% भाग आध्यात्मिक और 30% भाग मनोवैज्ञानिक लड़ाई से जीता जाएगा लेकिन 5% हिस्सा शारीरिक विधि से जीतना होगा। 

किताब बेहिचक कहती है कि 100 में से 5 लोगों को शारीरिक हिंसा करने की ट्रेनिंग दी जाएगी। यह भी कहा गया है कि धर्म की स्थापना के लिए हिंसा, हिंसा नहीं होती बल्कि वह अहिंसा होती है।

क्यों नहीं लगाया जाता प्रतिबंध

ऐसे में, अब सवाल यह है कि जब इस संस्था के बारे में इतनी जानकारी उपलब्ध है तो फिर इस पर प्रतिबंध क्यों नही लगता इनके नेता कैसे खुलेआम घूम रहे हैं यह किताब ऑनलाइन उपलब्ध है तो इसे रोका क्यों नहीं जा रहा है यह संभव ही नहीं है कि ऐसे संगठन बिना किसी प्रश्रय के फले-फूलें। यह बड़े ख़तरे का संकेत है। सभ्य समाज में किसी को भी क़त्ल करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। और अगर ऐसे विचारों पर रोक न लगे तो फिर देश को तालिबान बनने में देर नहीं लगती। ऐसी संस्थाओं पर अंकुश न लगने के कारण ही अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान आज धार्मिक कठमुल्लों की चपेट में हैं, और ये मुल्क आतंकवादियों के अड्डे बन गए हैं जहाँ सभ्य समाज ने दम तोड़ दिया है।

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