समझौता ब्लास्ट, किस्त 3: असीमानंद : भागवत का था आशीर्वाद
समझौता कांड के सिलसिले में अपनी गिरफ़्तारी के तुरंत बाद असीमानंद ने सीबीआई को जो जानकारियाँ दी थीं और मजिस्ट्रेट के सामने जो बयान दिया था, उसमें आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार का भी ज़िक्र था। इस कारण इंद्रेश कुमार उनसे नाराज़ भी थे।
बाद में असीमानंद भले ही अपने बयान से पलट गए लेकिन इंद्रेश कुमार का इन आतंकवादी हमलों में क्या रोल था, इसके बारे में उन्होंने कैरवैन की पत्रकार लीना गीता रघुनाथ के साथ बातचीत में काफ़ी विस्तार से बताया है। और इंद्रेश कुमार ही नहीं, बल्कि संघ प्रमुख मोहन भागवत का भी नाम लेते हुए असीमानंद ने कहा कि इन दोनों को पता था कि वे और उनके साथी क्या कर रहे हैं। दोनों ने उनके काम को सही और ज़रूरी बताया, लेकिन यह भी स्पष्ट कह दिया कि इस काम में संघ किसी तरह से जुड़ा नहीं रहेगा।
असीमानंद ने इस इंटरव्यू में सुनील जोशी के हवाले से, जिनकी बाद में हत्या हो गई, यह भी कहा कि अजमेर ब्लास्ट के लिए दो मुसलमान लड़के इंद्रेश कुमार ने ही सुनील जोशी की मदद के लिए दिए थे।
आइए, आज जानते हैं कि इंद्रेश कुमार और मोहन भागवत के बारे में असीमानंद ने क्या कहा।
पहला इंटरव्यू : भागवत-इंद्रेश का नाम बुलवाने के लिए मुझे यातना दी गई
समझौता मामले में अपना क़बूलनामा वापस लेने के साथ-साथ असीमानंद ने दिसंबर 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि उनको यातनाएँ देकर वह अपराध क़बूलवाया गया जो उन्होंने किया ही नहीं। कैरवैन की पत्रकार लीना ने इसके एक महीने के बाद यानी जनवरी 2012 में जब असीमानंद से बातचीत की तो उन्होंने उस पत्र का ज़िक्र करते हुए उनसे सवाल पूछे।
लीना : आपने राष्ट्रपति जी को जो पत्र लिखा है, उसके बारे में आपका क्या विचार है क्या आपको लगता है कि उसका कुछ असर होगा
असीमानंद : आप जानते हैं। इस बारे में ख़ुलासा कर देते हैं कि मेरे साथ किस तरह का बिहेव किया है। टॉर्चर की बात रहने दीजिए। वे तो इंद्रेश जी, भागवत (के नाम) बुलवाने के लिए करना चाहते थे।
असीमानंद साफ़-साफ़ आरोप लगा रहे थे कि जाँच अधिकारी उनके मुँह से इंद्रेश और भागवत का नाम निकलवाना चाहते थे और इसीलिए उनको यातना दे रहे थे। यह वही लाइन थी जो उनके वकीलों की टीम अदालत में ले रही थी ताकि असीमानंद के क़बूलनामे को बेअसर किया जा सके। लेकिन उनका यह आरोप कितना झूठा था, यह ख़ुद असीमानंद ने लीना रघुनाथ के साथ अपनी बाद की बातचीत में माना कि उनको कोई यातना नहीं दी गई थी (पढ़ें - समझौता ब्लास्ट - किस्त 2)।
बाद की बातचीत में असीमानंद ने यह भी बताया कि उन्होंने तथा उनके साथियों ने मंदिरों पर हुए धमाकों का बदला लेने के लिए देश में कई जगहों पर जो धमाके किए, उनकी जानकारी मोहन भागवत और वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार को भी थी।
तीसरा इंटरव्यू : भागवत-इंद्रेश दोनों ने कहा, आप करो, आशीर्वाद है
असीमानंद के साथ दूसरे इंटरव्यू में भागवत या इंद्रेश कुमार की कोई बात नहीं निकली। तीसरे इंटरव्यू में इन दोनों की चर्चा निकली जब लीना ने सुनील जोशी की हत्या से जुड़ा एक सवाल पूछा। आपको याद होगा कि इन सभी धमाकों में सुनील जोशी का नाम ख़ुद असीमानंद ने लिया था और समझौता धमाकों के कुछ महीनों के बाद ही उनकी हत्या कर दी गई थी।
लीना : आपको ऐसा क्यों लगता है कि सुनील को इंद्रेश जी से कोई ख़तरा था
असीमानंद : नहीं, नहीं। मैंने यह कभी नहीं कहा कि सुनील को इंद्रेश से कोई ख़तरा था।
लीना : लेकिन आपने कहा था कि इंद्रेश जी ने आपसे आग्रह किया था कि इन सब कामों में न पड़ें। यह सब सुनील जोशी का काम है।
असीमानंद : इंद्रेश ने कभी नहीं कहा कि मैं इस काम से दूर रहूँ। वो तो इंद्रेश जी को बचाने के लिए मैंने कहा था। उलटा इंद्रेश जी हमको कहते थे… (इस बीच किसी बात पर ठहाका लगता है और असीमानंद जेल कर्मचारी से कुछ बतियाने के बाद पुनः विषय पर लौटते हैं।) हाँ, तो हम क्या बात कर रहे थे
लीना : इंद्रेश जी के बारे में।
असीमानंद : आप यह सब लिखिएगा नहीं। संघ के लोगों में मेरा नाम हिंसावादियों में आता है। डांग, अंडमान, छत्तीसगढ़, नगालैंड - इन सब जगहों पर हिंदुत्व की स्थापना के लिए हिंसा का सहारा लिया। लेकिन कृपया ये सब बातें लिखिएगा नहीं। मोहन भागवत, इंद्रेश और सुनील, ये सब मुझसे मिलने के लिए शबरी धाम आते थे। एक बार हम चारों बैठे थे।
तभी बातचीत के दौरान सुनील ने भागवत जी से कहा - देखिए, थोड़ा हिंदू का आक्रमण होना है। संघ से जुड़े हुए लोग हैं, जो ये विचार रखते हैं। जो भी होगा, हम तक ही रखेंगे। संघ से इनको जोड़ेंगे भी नहीं। आपसे कोई मदद नहीं लेंगे। आप अधिकारी हैं इसलिए आपको बता रहे हैं कि हम लोग (कुछ) सोच रहे हैं।
तब भागवत जी और इंद्रेश, दोनों ने कहा - यह बहुत अच्छा है। ज़रूरी है। संघ से नहीं जोड़ना। संघ नहीं करेगा। (अस्पष्ट) … हिंदुत्व के लिए भी कोई है। (लेकिन) संघ का यह विचार नहीं है।
उसके बाद दोनों ने मुझसे कहा - स्वामीजी, आप यह करेंगे तो हम निश्चिंत होंगे। कुछ ग़लत नहीं होगा। क्रिमिनलाइज़ेशन नहीं होगा। आप करेंगे तो क्राइम के लिए कर रहे हैं, ऐसा नहीं लगेगा। आइडियॉलजी के साथ जुड़ा रहेगा। (अस्पष्ट) बहुत ज़रूरी है यह हिंदू के लिए। आप लोग करो। आशीर्वाद है। इससे आगे कुछ नहीं।
मैंने उनसे कहा कि मैं इस काम के लिए कल्याण आश्रम छोड़ दूँगा और आप लोग भी शबरी धाम आना कम कर दें। लेकिन मुझे समझ में नहीं आता कि ये सारी बातें सीबीआई तक कैसे पहुँच गईं।
लीना : सीबीआई को सबसे पहले यह किसने बताया
असीमानंद : पता नहीं। उनको मालूम था कि इंद्रेश और भागवत मुझसे आकर मिलते थे। सो जब उन्होंने पूछा तो मैंने कह दिया कि इंद्रेश जी ने मुझे यह काम करने से मना किया था। जबकि सच्चाई यह है कि इंद्रेश जी ने ही मुझे यह काम करने के लिए कहा था। मैं नहीं चाहता था कि इंद्रेश जी का नाम इन सबमें आए। सही भी है। आशीर्वाद दिया। इससे आगे कुछ नहीं कहा। बस यही कहा कि आप इस काम में आगे रहेंगे तो हम निश्चिंत रहेंगे।
चौथा इंटरव्यू : मैंने इंद्रेश को बचाने की पूरी कोशिश की
इस बातचीत के आठ दिन के बाद ही लीना असीमानंद से फिर मिली। यह उनकी आख़िरी मुलाक़ात थी। इस बातचीत में भागवत और इंद्रेश की चर्चा फिर से छिड़ी।
लीना : आपको पता है जब आप जेल में थे, जब यह सब चल रहा था तो भागवत जी सबसे ज़्यादा आपके लिए बात कर रहे थे।
असीमानंद : मेरे जेल जाने के बाद पता नहीं।
लीना : नहीं
असीमानंद : क्या बोलने वाले थे
लीना : आपको परेशान न करने के लिए बोले।
असीमानंद : किससे बात की
लीना : मनीष तिवारी से।
असीमानंद : अच्छा मोहन जी और इंद्रेश जी
लीना : इंद्रेश जी का मुझे पता नहीं है। इंद्रेश जी से मैं एक बार मिली। मुझे ऐसा लगता है कि आपसे गुस्सा हैं क्या इंद्रेश जी
असीमानंद : हमसे ग़ुस्सा हैं ग़लती यह हुई कि आपको सब बता दिया था न (कुछ देर का मौन) मैंने भरतभाई को बताया था कि मैं शबरी धाम में कैसे भागवत जी और इंद्रेश जी से मिला था और भरतभाई ने सीबीआई को सबकुछ बता दिया था। भरतभाई यह भी जानते थे कि इंद्रेश जी नागपुर में सुनील से मिले थे और उसको पचास हज़ार रुपये दिए थे।
लीना : लेकिन तब आपने अपने बयान में कहा था कि जब इंद्रेश जी ने पैसे दिए तब भरतभाई वहाँ थे।
असीमानंद : भरतभाई ने ऐसा बताया था।
लीना : ओह, यानी भरतभाई ने आपको यह बताया था
असीमानंद : भरतभाई ने उनको पहले ही सबकुछ बता दिया था, मैं एक भी शब्द नया नहीं बोला। भरतभाई ने सबकुछ पहले से बोल दिया था। सीबीआई ने मुझको पूछा था। मैंने देखा तो सब बात उनको मालूम है। यह तो बाद में पता चला कि सीबीआई वाले उनके (भरतभाई के) घर में 2-3 महीनों से बैठे हुए हुए थे और उनसे सबकुछ पता कर लिया था। मैंने देखा तो सभी बात जानते थे।
लीना : लेकिन भरतभाई वहाँ ख़ुद नहीं गए थे ना आपने भरतभाई को इसके बारे में बताया
असीमानंद : किसके बारे में
लीना : कि इंद्रेश जी ने पैसा दिया। भरतभाई ने उनको ऐसा करते नहीं देखा
असीमानंद : भरतभाई ने मुझे इसके बारे में बताया था। सुनील, प्रज्ञा के साथ नागपुर गया हुआ था। सुनील अपने साथ भरतभाई को भी लेकर गए थे और उनके सामने ही इंद्रेश ने सुनील को पैसा दिया - उनके सामने। भरतभाई ने लौटने के बाद मुझे यह बताया। वही बात उन्होंने सीबीआई को भी बता दी। सीबीआई ने तब मुझसे बोला कि भरतभाई ने आपको बताया है कि जब वे दोनों वहाँ गए थे तभी इंद्रेश जी ने पैसा दिया। तो जब वे सबकुछ जानते ही थे तो मैं क्या कर सकता था
फिर क्या हुआ कि भागवत जी ने बोला कि ‘आप काम कर सकते हैं।’ इंद्रेश ने कहा, ‘आप काम कर सकते हैं। सुनील को लेकर आप काम कर सकते हैं। पर हम लोग नहीं रहेंगे। आप हैं तो हम लोग आपके साथ हैं, यह आप मान लेना। आप जो करेंगे ग़लत नहीं होगा। दिशा ठीक रहेगी।’
यही बात मैंने भरत से कही और भरत ने सीबीआई को बता दी। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि सीबीआई को यह सबकुछ कैसे पता चला कि मैं, सुनील, भागवत जी और इंद्रेश शबरी धाम के एक शिविर में मिले थे, (वहाँ) यह-यह बात हुई थी।
लीना : यह शबरी कुंभ से पहले की बात है ना
असीमानंद : उससे पहले।
लीना : उस समय संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक चल रही थी ना
असीमानंद : हाँ, उस समय।
लीना : 2006
असीमानंद : हाँ, 2006 सूरत से 2005 में - दिवाली के आसपास।
लीना : दिवाली के आसपास
असीमानंद : मुझे बहुत आश्चर्य हो रहा था। उस समय मुझे नहीं मालूम था कि सीबीआई वाले (भरत के) घर पर जमे हुए हैं। मैंने सोचा, ठीक है। मैं कोशिश करूँगा कि इंद्रेश जी को इन सबसे जितना हो सके, दूर रखा जाए। इंद्रेश जी ने बोला, करेंगे-करेंगे। पर मैंने कहा कि इंद्रेश जी ने हमको रोका। वे सबकुछ जानते थे लेकिन मुझसे जितना हो सका, मैंने अपनी तरफ़ से किया। इंद्रेश जी ने बोला करने के लिए पर हम नाम क्यों लें। अपने पर नाम ले लेते हैं। पुलिस ने मुझसे पूछा कि जब इंद्रेश जी ने आपको मना किया तो आपने यह सब क्यों किया। तो मैंने कहा कि वह तो संघ से हैं और मैं संघ से नहीं हूँ, मैं वनवासी कल्याण आश्रम से हूँ। कभी कल्याण आश्रम के प्रमुख मुझे कुछ करने को बोलते हैं तो मैं नहीं करता। मैं अपनी इच्छा से सब करता हूँ। (कुछ हिस्सा अस्पष्ट)
सीबीआई जानती थी कि सुनील ने मौत से पहले शबरी धाम छोड़ दिया था। उनको पता था कि सुनील ने बम से उड़ाया था। मालूम था। भरतभाई ने सब बता दिया था।
तब उन्होंने मुझसे कहा कि चूँकि सुनील, इंद्रेश के बारे में जानता था तो आपने सुनील को बोला कि उसकी जान को इंद्रेश से ख़तरा है। मैंने कहा, नहीं। आप यह क्या कह रहे हो यह ग़लत है।
यह सही में ग़लत बात है। मैंने सुनील से पूछा। हुआ यह था कि जब अजमेर ब्लास्ट हुआ तो मैंने सुनील से पूछा कि उसके साथ कौन-कौन लोग थे। उसने कहा कि दो मुसलमान लड़के थे। यह मेरे कन्फ़ेशन में भी है।
लीना : हाँ, है।
असीमानंद : दो मुसलमान लड़के। मैंने पूछा कि ये मुसलमान लड़के कहाँ से आए और उसने बोला कि इंद्रेश एक संगठन चला रहे हैं और उन्होंने ही मुसलमान लड़के दिए थे। देखिए, आपने मुसलमान से काम करवाया है। और मुसलमान कभी सही नहीं होते। जब वे आपके बारे में जान जाएँगे तो वे आपको ख़त्म करने की कोशिश करेंगे। मैंने सुनील से कहा था कि उसे मुसलमानों से सावधान रहना चाहिए। तुमने उनकी मदद ली है और यह ग़लत है। वे तुम्हारी जान लेने की कोशिश करेंगे। और ऐसा ही हुआ। मारा ना मुसलमान ने ही मारा होगा।
यही बात थी जो मैंने उससे कही थी। मैंने कभी नहीं कहा कि उसको इंद्रेश से कोई ख़तरा था। मैंने बस इतना कहा कि चूँकि इंद्रेश ने ही उसको मुसलमान लड़के दिए थे, उसको मुसलमानों से ख़तरा है। इस तरह इंद्रेश जी के बारे में यह बात मेरे बयान में आई। मैंने तो उनको बचाने की हर तरह से कोशिश की। लेकिन भरतभाई ने पहले ही सबकुछ उगल दिया था। इसलिए मैं ज़्यादा कुछ करने की हालत में नहीं था।
ऊपर के संवाद से आपको आभास मिल गया होगा कि मुसलमानों के बारे में असीमानंद क्या सोचते थे। यदि वे 'उनके अपने काम' में मदद कर रहे हों तो भी वह उनका विश्वास करने के लिए तैयार नहीं थे। मुसलमानों और ईसाइयों के ख़िलाफ़ उनकी यह घृणा और अविश्वास इस बातचीत में और भी कई मौक़ों पर नज़र आया।
यह घृणा इतनी तीव्र थी कि एक बार जब अंडमान में उन्होंने राहत शिविर लगाया था तो तीन दिन से भूखे एक मरणासन्न ईसाई बच्चे को दूध देने से उन्होंने अपने लोगों को मना कर दिया था क्योंकि उसकी माँ यह कहने को तैयार नहीं थी कि आज से वह हिंदू है। और आश्चर्य की बात यह कि मुसलमानों और ईसाइयों के प्रति इस घृणा के लिए असीमानंद विवेकानंद की शिक्षा को श्रेय देते हैं।
असीमानंद का कहना है कि विवेकानंद की कही ‘एक बात’ ने उनको यह शिक्षा दी कि मुसलमानों और ईसाइयों को हमेशा अपना दुश्मन समझो। क्या थी वह बात, यह हम अगली कड़ी में जानेंगे और यह भी जानेंगे कि असीमानंद के अनुसार किसने की थी सुनील जोशी की हत्या।