नागरिकता क़ानून: यूपी में दंगों की एफ़आईआर लंबी-चौड़ी, हत्या की सिर्फ़ एक पैरे की
नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस पर कार्रवाई के नाम पर बर्बरता करने, मुसलिम समुदाय के घरों में घुसकर उन्हें बेरहमी से पीटने के आरोप लगे हैं। अंग्रेजी अख़बार ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के मुताबिक़, फिरोज़ाबाद में तो पुलिसकर्मी आगजनी करने वाली, तोड़फोड़ करने वाली और इस क़ानून के विरोध में प्रदर्शन करने वाले लोगों पर पत्थर फेंकने वाली भीड़ के साथ खड़े दिखे हैं।
उत्तर प्रदेश पुलिस के कामकाज के 'ढंग' को दिखाने वाली एक और ख़बर अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने छापी है। इस ख़बर से पता चलता है कि पुलिस ने नागरिकता संशोधन क़ानून के बाद दंगों से संबंधित एफ़आईआर को ख़ूब बढ़ा-चढ़ाकर लिखा है, ख़ुद को क्लीन चिट भी दी है लेकिन एक युवक की हत्या की एफ़आईआर को सिर्फ़ एक पैरे में समेट दिया है।
ये दोनों एफ़आईआर संभल जिले में दर्ज की गई हैं। अख़बार के मुताबिक़, पहली एफ़आईआर में पुलिस ने हिंसा कैसे हुई, किस समय कौन सी घटना हुई, इसे पूरे विस्तार के साथ लिखा है और आईपीसी की अलग-अलग धाराओं के साथ 17 लोगों के ख़िलाफ़ नामजद मुक़दमा दर्ज किया है। जबकि दूसरी एफ़आईआर में कोई ज़्यादा जानकारी नहीं है। यह दूसरी एफ़आईआर 23 साल के युवक मुहम्मद शिरोज़ की हत्या को लेकर दर्ज की गई है। अख़बार के मुताबिक़, एफ़आईआर शिरोज़ की हत्या को लेकर पूरी तरह ख़ामोश है और इसमें आईपीसी की सिर्फ़ एक धारा जोड़ी गई है। जबकि दंगा और शिरोज की हत्या होने की घटनाएँ 24 घंटे के भीतर हुई हैं और संभल के एक ही इलाक़े में हुई हैं। इन घटनाओं की एफ़आईआर भी एक ही कोतवाली संभल पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई है।
लेकिन इन दोनों एफ़आईआर को लेकर पुलिस की दोषपूर्ण कार्यशैली का नमूना सिर्फ़ यहीं तक सीमित नहीं है। 17 लोगों के ख़िलाफ़ दंगे को लेकर जो एफ़आईआर दर्ज की गई है, उसमें पुलिस ने ख़ुद स्वीकार किया है कि उसने गोली चलाई है। पुलिस ने गोली चलाने वाले पुलिसकर्मियों को क्लीन चिट भी दे दी है और इसके लिए यह आधार बनाया गया है कि पुलिस को भीड़ को नियंत्रित करने के लिए आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी।
शिरोज़ की हत्या को लेकर दर्ज हुई एफ़आईआर में सिर्फ़ धारा 304 (ग़ैर इरादतन हत्या के लिए दंड) लगाई गई है जबकि हत्या की धारा 302 तक को नहीं जोड़ा गया है। शिरोज़ को गोलियां लगी थीं और 20 दिसंबर को उसकी मौत होने की घोषणा की गई थी। लेकिन यह वास्तव में बेहद हैरान करने वाली घटना है कि हत्या की एफ़आईआर को सिर्फ़ एक पैराग्राफ़ में समेट दिया गया। शिरोज़ की हत्या की शिकायत उसके चाचा मुहम्मद तसलीम ने दर्ज कराई थी।
एफ़आईआर से अहम तथ्य ग़ायब
एफ़आईआर में शिरोज़ के चाचा के हवाले से कहा गया है, ‘मेरा भतीजा शिरोज़ ट्रक चलाता था। वह काम के लिए बाहर गया हुआ था। चंदौसी चौराहे पर वह घायल हालत में मिला था। उसे हसीना बेगम हास्पिटल में ले जाया गया जहाँ से उसे सरकारी अस्पताल के लिए रेफ़र कर दिया गया। सरकारी अस्पताल में उसे मृत घोषित कर दिया गया।’ लेकिन यहां पर सवाल यह खड़ा होता है कि एफ़आईआर में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि शिरोज़ की मेडिकल जाँच किसने की, उसकी मौत किस समय पर हुई और उसकी मौत के प्राथमिक कारण क्या हैं। जबकि हत्या की किसी भी एफ़आईआर में ये बातें आमतौर पर होती ही हैं।
अहम बात यह है कि पुलिस ने एफ़आईआर में सिर्फ़ वही लिखा है जो शिरोज़ के चाचा ने अपनी शिकायत में पुलिस को लिखकर दिया था।
अख़बार के मुताबिक़, एफ़आईआर में चंदौसी चौराहे के पास पुलिस फ़ोर्स के होने, इस घटना का कोई गवाह होने का भी कोई जिक्र नहीं किया गया है। जबकि चंदौसी चौराहे पर बड़ी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया गया था। निश्चित रूप से एफ़आईआर में इन तथ्यों के न होने से यह केस कमजोर हो जाएगा क्योंकि शिरोज़ की हत्या हुई, यह साबित करने के लिए कुछ अहम तथ्यों का होना ज़रूरी होगा। अभी तक शिरोज़ के परिवार को उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी नहीं मिली है।
अब दूसरी एफ़आईआर पर नज़र डालते हैं। इस एफ़आईआर में लिखा है कि पुलिस चौधरी सराय इलाक़े में तैनात थी और यहां पर हिंसा और फ़ायरिंग हुई थी। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, इस एफ़आईआर में लिखा गया है कि सुबह 11:30 बजे, नगर पालिका के नजदीक संभल मैदान में सांसद डॉ. शफ़ीक़ुर रहमान, फिरोज़ ख़ान, मुशिर ख़ान, मौज़म ख़ान सहित कई लोग धारा 144 लागू होने के बावजूद नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने के लिए जुटे और इन लोगों ने नारेबाज़ी की।
इसके अलावा इस एफ़आईआर में प्रदर्शन के कारण ट्रैफ़िक जाम हो जाने, पत्थरबाज़ी होने, सरकारी वाहनों में तोड़फोड़ करने, लोगों में दहशत होने, दुकानदारों के अपनी दुकानें बंद करने, पुलिस के समझाने पर भी प्रदर्शनकारियों के न समझने सहित हर बात का ब्यौरा दिया गया है।
अब आप ज़रा फिरोज़ाबाद की घटना देखिए, जिसमें पुलिस ने एक मुसलिम लकड़ी वाले की दुकान में तोड़फोड़ करने वालों को एक तरह से संरक्षण दिया। उसके बाद इस एफ़आईआर को लेकर पुलिस की कार्यशैली देखिए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित पूरे प्रदेश में पुलिस ने इस क़ानून के विरोध में प्रदर्शन करने वाले हज़ारों लोगों के ख़िलाफ़ अंधाधुंध एफ़आईआर दर्ज की हैं। सैकड़ों बुद्धिजीवियों, छात्रों, सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं को पुलिस ने कार्रवाई के नाम पर जेलों मे ठूंस दिया है। लेकिन उपद्रवियों से ‘बदला’ लेने का बयान देने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पुलिस की इस गुंडागर्दी को देखकर भी क्यों चुप हैं, इसका जवाब प्रदेश की जनता उनसे ज़रूर माँग रही है।