एंग्री यंग मैन: सलीम-जावेद की जोड़ी टूटी क्यों?
“नींद और भूख का अगर आपको डिप्राइवेशन है तो कहीं न कहीं वो ऐसा मार्क आप पर छोड़ कर जाएगा कि आप भूल नहीं सकते। मैं जाता हूँ फ़ाइव स्टार होटेल्स में सुइट्स हैं बड़े-बड़े डबल बेड हैं, उनपे मैं लेटता हूँ कभी, तो मैं याद करता हूँ जब मैं थर्ड क्लास कंपार्टमेंट में आया था बॉंबे, और कोई दो दिन की तक़रीबन जर्नी थी, तो देयर वाज नो प्लेस टु सिट, मतलब कंधा टिकाने की जगह नहीं थी and how I was deprived of sleep and how tired I was. उस दिन यार इतनी सी जगह मिल जाती! सुबह ट्रॉली पे नाश्ता लेके आता है, ब्रेकफ़ास्ट पूरा, बटर, जैम, हाफ प्राइड एक्स, कॉफ़ी - मैं सोचता हूँ तेरी औक़ात है? अभी भी ये लगता है कि ये ब्रेकफ़ास्ट मेरा नहीं है। ये किसी और का है। I can’t get over this.”
अपने बीते दिनों के संघर्ष को याद करते हुए उस दौर में नींद , भूख, महरूमी के एहसास की आज की पांच सितारा होटलों में गुज़रने वाली ऐशोआराम की जिंदगी से तुलना करते हुए जावेद अख़्तर की आँखें डबडबा जाती हैं, आवाज़ भर्रा जाती है। इस दृश्य और उसके कथ्य की मार्मिकता, जावेद अख़्तर की टीस दर्शक को भी भावुक कर देती है।
उधर, सलीम खान अपने बारे में कहते हैं- मैं खुद को जेम्स डीन (मशहूर हॉलीवुड स्टार) समझता था।
उनसे जब पूछा जाता है कि उनको हेलेन से प्यार कैसे हुआ तो मुस्कुरा कर कहते हैं-आपने अगर किया हो तो पता लग जाएगा। जिसने नहीं किया, उसको पता नहीं होगा !
जिन दो लोगों ने सत्तर के दशक के हिंदी सिनेमा की तस्वीर बदल दी, एंग्री यंग मैन का किरदार गढ़ कर परदे पर एक नया हीरो पेश किया, अमिताभ बच्चन के सुपरस्टार बनने की बुनियाद रखी, उन पर कोई डॉक्यूमेंट्री बनाई जाए तो उसका नाम Angry Young Men ही सबसे सही हो सकता है।
सलीम-जावेद की जोड़ी ने 24 फिल्में साथ कीं जिसमें से 22 ब्लॉकबस्टर साबित हुईं। फिल्में उनके नाम से बिकती थीं, वो तमाम नामी सितारों से ज्यादा पैसे माँगने की ठसक और जिगर रखते थे और पाते भी थे।
हिंदी सिनेमा की सबसे कामयाब कथा-पटकथा-संवाद लेखक जोड़ी सलीम-जावेद पर अमेज़न प्राइम वीडियो पर तीन क़िस्तों की डॉक्यूमेंट्री 20 अगस्त को रिलीज़ हुई है। दोनों की अलग-अलग पृष्ठभूमि, शुरुआती संघर्ष, साथ आने, कामयाबी का सुनहरा इतिहास लिखने, निजी जिंदगी में जुड़ने-टूटने और जोड़ी के टूटने की कहानी खुद सलीम खान और जावेद अख़्तर की ज़ुबान से सुनना दिलचस्प है। हालाँकि इसमें ऐसा कुछ नहीं है जो फिल्मी हस्तियों के बारे में दिलचस्पी रखने वालों को पहले से मालूम न हो।
जो बात आम नहीं है वह यह कि दोनों की जोड़ी टूटी क्यों? यह डॉक्यूमेंट्री भी इस रहस्य पर से पर्दा नहीं उठाती। जावेद अख़्तर और सलीम खान अपनी जोड़ी टूटने के बारे में फलसफाना बातें तो करते हैं, लेकिन उन्हें कुरेदने वाले सवाल नहीं हैं।
हनी ईरानी, सलमान खान, अरबाज़ खान, फरहान अख़्तर, हेलन, रमेश सिप्पी, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन की टिप्पणियाँ अलग होने के बाद की परिस्थितियों की झलक तो देती हैं मगर वजहों का ख़ुलासा नहीं करतीं। दोनों इस डॉक्यूमेंट्री में भी बिल्कुल आखिर में साथ नजर आते हैं, सिर्फ तस्वीर खिंचवाने के लिए। बाकी पूरे वक्त सलीम और जावेद के बयान अलग अलग रिकॉर्ड किये गये हैं। यह भी अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है।
इस डॉक्यूमेंट्री में जज़्बाती बातें बहुत हैं। दोनों की जिंदगी में मां की कमी एक समानता है जो उनकी लिखी फिल्मों में माँ के किरदार की मज़बूत मौजूदगी की वजह भी रही होगी यक़ीनन। “मेरे पास मां है” जैसा संवाद इसी भावना से पैदा हुआ होगा।
सलीम-जावेद की कहानी में दोनों की निजी ज़िंदगियों के बारे में कुछ दिलचस्प पहलू उजागर होते हैं। शादी से बाहर प्रेम का पनपना और जिंदगी में, परिवार में “दूसरी औरत” का दाखिल होना और उस संबंध की स्वीकार्यता से जुड़ी पेचीदगियां यहाँ भी हैं। जावेद अख़्तर की हनी ईरानी से शादी टूटना, शबाना आज़मी का जिंदगी में आना, फरहान अख़्तर और ज़ोया अख़्तर पर इस सबके असर के छोटे-छोटे विवरण यहाँ दिखते हैं। सबसे बड़ा क़बूलनामा खुद जावेद अख़्तर की तरफ से आता है जब वह कहते हैं कि दुनिया में अगर किसी एक शख़्स के गुनहगार हैं तो वो हैं हनी ईरानी। रिश्ता टूटने का अपराध बोध उनके चेहरे पर और आवाज़ में साफ झलकता है। शबाना आज़मी भी हैं अपना पक्ष रखती हुई। इसके उलट सलीम खान की पत्नी सलमा खान कहीं नहीं दिखतीं हेलन और सलीम खान के रिश्ते के बारे में बात करते हुए।
सलीम-जावेद की तुलना करें तो जावेद अख़्तर के खाते में एक बडी साहित्यिक विरासत है। जाँनिसार अख़्तर और सफिया अख्तर के बेटे, मजाज़ लखनवी के भांजे, कैफी आज़मी के दामाद, खुद भी शायरी में दख़ल रखते हैं। उनकी बातों में बौद्धिक गहराई झलकती है। सलीम खान में सादगी है।
बेहतर होता अगर इस बेहद कामयाब जोड़ी की क्राफ़्ट के कुछ फ़ार्मूले दर्शकों के हाथ लगते। फिल्म इंडस्ट्री में लेखक की हालत सुधारने के लिए कोई सुझाव न तो सलीम खान की तरफ से आता है न जावेद अख़्तर की तरफ से। इस मुद्दे पर सबसे बढ़िया टिप्पणी है फिल्म निर्देशक दिबाकर बनर्जी की जो कहते हैं कि लेखक को ताक़त देने के लिए स्टार की ताक़त कम करनी पड़ेगी। जिन अमिताभ बच्चन को सलीम-जावेद ने एंग्री यंग मैन बनाया, उनकी नपी-तुली टिप्पणियाँ सबसे ज्यादा निराश करती हैं।
बहरहाल, डॉक्यूमेंट्री देखने लायक है। इसके निर्माताओं में सलीम खान और जावेद अख्तर दोनों के बच्चे यानी सलमान खान, फरहान अख्तर, जोया अख्तर शामिल हैं जबकि राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्म एडिटर नम्रता राव ने इसका निर्देशन किया है। उनका संपादन कौशल यहाँ भी दिखता है।
(अमिताभ के फ़ेसबुक वाल से साभार)