मध्य पूर्व युद्ध के कारण हथियारों के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बिक्री बढ़ी
मध्य पूर्व में इजरायल - हमास के बीच ताजा संघर्षों ने हथियारों के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में नया उछाल ला दिया है। हथियारों की बिक्री बढ़ी है। माना जा रहा है कि इस युद्ध के कारण हथियारों की डिमांड और बढ़ेगी।
द न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर के मुताबिक हमास के साथ इजरायल का संघर्ष, यूक्रेन पर रूस का आक्रमण और चीन के सैन्य शक्ति बनकर उभरने ने हथियार निर्माताओं के लिए तेजी ला दी है। इन सब घटनाओं से वाशिंगटन को अन्य देशों के साथ घनिष्ठ सैन्य संबंध बनाने का मौका मिला है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हमास के हमले के कुछ ही दिनों बाद मध्य पूर्व में एक नया युद्ध छिड़ गया, अमेरिकी हथियारों की खेप इज़राइल में पहुंचनी शुरू हो गई। आयरन डोम मिसाइल-रक्षा प्रणाली के लिए स्मार्ट बम, गोला-बारूद और इंटरसेप्टर का जमकर इस्तेमाल हो रहा है।
माना जा रहा है कि बुधवार को इजरायल में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की होने वाली बैठक में, इजरायल अमेरिका से और अधिक सैन्य सहायता मांग सकता है।
इजरायल और हमास के बीच का ताजा संघर्ष अंतरराष्ट्रीय हथियारों की बिक्री में उछाल के पीछे का नया कारण है। यह संघर्ष अमेरिकी आपूर्तिकर्ताओं के बीच मुनाफे और हथियार बनाने की क्षमता को बढ़ा रहा है।
द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि हथियारों की बिक्री में यह ताजा वृद्धि बाइडेन प्रशासन को अन्य देशों की सेनाओं को दुनिया के सबसे बड़े हथियार निर्यातक संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ और अधिक निकटता से जोड़ने के नए अवसर प्रदान कर रही है। लेकिन इसके साथ ही यह चिंता भी बढ़ा रही है कि अधिक भारी हथियारों से लैस दुनिया आगे के युद्धों में उलझ जाएगी।
इससे पहले ही यूक्रेन पर रूस के आक्रमण और चीन से बढ़ती ताकत का मुकाबला करने के लिए विभिन्न देशों में लड़ाकू विमानों, मिसाइलों, टैंकों, तोपखाने, युद्ध सामग्री और अन्य घातक उपकरणों को खरीदने के लिए वैश्विक भीड़ बढ़ रही थी।
युद्ध शैली में तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल के कारण बढ़ी मांग
हथियारों की बिक्री में यह वृद्धि युद्ध शैली में तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल के कारण हो रही है। तकनीकी परिवर्तन की तीव्र गति के कारण विभिन्न देश प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए अच्छी तरह से सशस्त्र देशों पर भी नई पीढ़ी के उपकरण खरीदने का दबाव पड़ रहा है। यही कारण है कि जिन देशों के पास आधुनिक हथियार हैं वे अब इसे लगातार अपडेट करने में लगे हैं।द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि इजरायल को और अधिक हथियारों की आपूर्ति करने का दबाव तब आया है जब अमेरिकी सैन्य ठेकेदार पहले से ही रूस के खिलाफ युद्ध में यूक्रेन को फिर से आपूर्ति करने में लगे हैं। इसके साथ ही पोलैंड जैसे यूरोप में अन्य अमेरिकी सहयोगियों की ओर से भी हथियारों की मांग बढ़ती जा रही है।
दूसरी ओर चीन से बढ़ते खतरे की धारणा के कारण एशिया में कई देशों में हथियारों की मांग बढ़ती जा रही है। रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका के पास उसके सहयोगियों से अरबों डॉलर के ऑर्डर लंबित हैं।
सैन्य खर्च 2.2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया है
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, पिछले साल दुनिया भर में सैन्य खर्च हथियारों, कर्मियों और अन्य लागतों पर 2.2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद यह उच्चतम स्तर पर है।संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और रूस में बिक्री को छोड़कर, सैन्य खरीद पर दुनिया भर में खर्च अगले साल 241 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
यह लगभग दो दशकों से सैन्य खर्च पर नज़र रखने वाली कंपनी जेन्स द्वारा बनाए गए डेटाबेस में दो वर्ष में अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि है।
आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल तक, संयुक्त राज्य अमेरिका ने दुनिया के हथियारों के निर्यात का अनुमानित 45 प्रतिशत तक नियंत्रित किया था, जो किसी भी अन्य देश की तुलना में लगभग पांच गुना अधिक था। यह सोवियत संघ के पतन के तुरंत बाद के वर्षों के बाद से इसका उच्चतम स्तर था।
अधिक सैन्य मारक क्षमता की तीव्र मांग ने तुर्की और दक्षिण कोरिया जैसे अन्य हथियार उत्पादक देशों को भी अपना निर्यात बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया है। इससे खरीदारों को ऐसे समय में अधिक विकल्प मिले हैं जब संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पादन की कमी का मतलब है कि ऑर्डर मिलने में कई साल लग सकते हैं।
हम एक बहुत ही नाजुक दुनिया में रहते हैं
द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि हथियारों के कुछ बड़े खरीदार जैसे नाटो का सहयोगी पौलेंड रूसी आक्रामकता से डरता है। वह अपने उपर के संभावित खतरों का सामना करने के लिए खुद को और अधिक हथियारों से लैस कर रहा है।इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इंडोनेशिया, जो हथियारों के लिए कभी रूस का ग्राहक था, अब पश्चिम से अधिक खरीदारी करने की ओर बढ़ रहा है। वह भी तेजी से सैन्यीकरण की इस दौड़ में अपने पड़ोसियों से पीछे नहीं रहना चाहता है। वहीं मध्य पूर्व के देश, इज़राइल से लेकर सऊदी अरब तक, अमेरिकी हथियारों के प्रमुख खरीदार बने हुए हैं। इन देशों में हथियारों के ऑर्डर अब इस नए युद्ध के साथ फिर से बढ़ेंगे।
हथियारों की खरीद में बढ़ोतरी के कारण आशंका व्यक्त की जा रही है कि यूरोप और मध्य पूर्व में चल रहा संघर्ष और बढ़ेगा। साथ ही दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में इस तरह के संघर्ष बढ़ने की संभावना है।
द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के बोर्ड सदस्य माइकल क्लेयर कहते हैं कि "हम एक बहुत ही नाजुक दुनिया में रहते हैं, जहां कई अनसुलझे संघर्ष हैं।" वह पाकिस्तान और भारत, या अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच तनाव की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि इनके बीच तनाव बढ़ने के कारण हाल ही में सैन्य उपकरणों की खरीद में वृद्धि हुई है। वह कहते हैं कि हथियारों की बिक्री क्षेत्रीय संघर्ष को बढ़ा देगी और अंततः बड़ी शक्तियों के बीच युद्ध छिड़ जायेगा।