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सैनिक स्कूल चलाने के ठेके RSS से जुड़े संगठनों और नेताओं को मिले

सैनिक स्कूल चलाने के ठेके RSS से जुड़े संगठनों और नेताओं को मिले

देश में नए सैनिक स्कूल चलाने के ठेके आरएसएस से संबद्ध संगठनों, पदाधिकारियों और नेताओं के परिवारों को दिए गए हैं। यानी जिस शान-ओ-शौकत से देश से चुनिंदा बच्चे सैनिक स्कूल आगरा, लखनऊ, कपूरथला समेत अनगिनत शहरों से निकलते थे। ऐसे बच्चे अब आरएसएस से जुड़े लोगों द्वारा संचालित सैनिक स्कूलों से निकलेंगे। लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसे नए सैनिक स्कूलों के पास कांग्रेस शासनकाल में स्थापित सैनिक स्कूलों जैसा इन्फ्रास्ट्रक्चर होगा, वो सुविधाएं होंगी? पढ़िए, रिपोर्ट्स क्लेक्टिव की खोजी रिपोर्ट का गंभीर खुलासा... 

देश में सैनिक स्कूल रक्षा मंत्रालय के नियंत्रण में आजादी से पहले से चल रहे हैं। आजादी के बाद से इनका और भी ज्यादा विस्तार हुआ। सैनिक स्कूलों से बच्चों को छात्र जीवन से देश की सेनाओं के लिए तैयार किया जाता है और बाद में तीनों सेना की विभिन्न परीक्षाओं के जरिए वे सेना में भर्ती हो जाते हैं। लेकिन आरएसएस संबद्ध संस्थानों, साध्वियों, नेताओं द्वारा संचालित सैनिक स्कूलों से छात्रों को विचारधारा के हिसाब से तैयार कर सेना में भेजने की तैयारी है।रिपोर्ट्स क्लेक्टिव ने इलेक्ट्रोरल बांड (चुनावी चंदा) पर खोज रिपोर्ट के बाद इस खोज रिपोर्ट के जरिए मोदी सरकार को एक बार फिर कटघरे में खड़ा कर दिया है। क्योंकि देश में 70 वर्षों तक कांग्रेस का शासन रहा, उसने सैनिक स्कूलों के स्टैंडर्ड को बनाए रखने के लिए किसी एनजीओ या नेताओं द्वारा संचालित सैनिक ट्रेनिंग स्कूलों को इसके जरिए तैयार होने का कोई मौका नहीं दिया। इसलिए यह रिपोर्ट चिन्ता पैदा कर रही है कि अब सेना में संघ की विचारधारा के हिसाब से सैनिकों, अधिकारियों को भर्ती किया जाएगा।

'कॉलेजों की लड़कियां संस्कारी नहीं'

रिपोर्ट्स क्लेक्टिव की रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी दिल्ली से चंद किलोमीटर कि दूरी पर वृंदावन में साध्वी ऋंतभरा संविद गुरुकुलम गर्ल्स सैनिक स्कूल चला रही हैं। ऋतंभरा किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की महिला शाखा, दुर्गा वाहिनी की संस्थापक, राम मंदिर आंदोलन से एक प्रमुख हस्ती हैं। पिछले साल जून में इसी स्कूल कार्यक्रम के दौरान, 60 साल की इस साध्वी ने छात्रों को संबोधित किया। स्कूल के फेसबुक पेज पर एक वीडियो साझा किया गया है। उस वीडियो में ऋतंभरा की नफरत को कॉलेजों, यूनिवर्सिटियों के प्रति नफरत को देखा और सुना जा सकता है। वो वीडियो में फरमा रही हैं कॉलेजों में लड़कियां कैसे "नियंत्रण से बाहर" हैं। वो कहती हैं-  “हमें कॉलेजों में क्या मिलता है? आधी रात को सिगरेट पीती लड़कियाँ। शिक्षा के इन केंद्रों में महिलाएं शराब की बोतलें तोड़ रही हैं और मोटरसाइकिल पर अपने बॉयफ्रेंड के साथ अभद्रता फैला रही हैं... हमने कभी नहीं सोचा था कि भारत की बेटियां इतनी बेकाबू हो जाएंगी. वे सोशल मीडिया पर गाली-गलौज वाली रीलें पोस्ट कर रहे हैं। वे न्यूड फोटोशूट करा रहे हैं। वे अंडरगारमेंट्स में अपने शरीर का प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि ये महिलाएं मानसिक रूप से बीमार हैं... इन लड़कियों में संस्कार नहीं हैं।''

रिपोर्ट के मुताबिक वृन्दावन में साध्वी ऋतंभरा का गर्ल्स स्कूल और हिमाचल प्रदेश के सोलन में राज लक्ष्मी संविद गुरुकुलम 40 ऐसे स्कूलों की सूची में शामिल हैं, जिन्होंने सैनिक स्कूल सोसाइटी (एसएसएस) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओए) साइन किया हैं। रक्षा मंत्रालय (MoD) ने ये एमओए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत सैनिक स्कूल चलाने के लिए किए हैं।

देश में मोदी सरकार ने सबसे पहले 2021 में सैनिक स्कूल चलाने के लिए निजी संस्थाओं और लोगों के लिए दरवाजे खोल दिए थे। मोदी सरकार ने उसी साल अपने वार्षिक बजट में, देश में 100 नए सैनिक स्कूल स्थापित करने की योजना की घोषणा की थी। पहली बार ऐसा हुआ जब प्रतिष्ठित सैनिक स्कूलों को चलाने के लिए आरएसएस की विचारधारा से जुड़े लोगों को मौका मिला। कांग्रेस ने ऐसी हिम्मत कभी नहीं दिखाई।


62% स्कूल संघ के कब्जे मेंः सरकार ने ठेके पर सैनिक स्कूल बनाने या संचालन करने के नियम इस तरह बनाए कि उसके जरिए आरएसएस से जुड़े लोगों को बुनियादी ढांचे की शर्तें पूरी करने पर मौका दिया जा सकता था। यानी संस्था की अपनी जमीन, आईटी (इन्फॉरमेशन टेक्नॉलजी) का बुनियादी ढांचा, वित्तीय संसाधन, कर्मचारी आदि होने पर नए सैनिक बनाने के लिए अनुमोदित किया जा सकता है। मात्र बुनियादी ढाँचे की शर्त ने ही इसके अनुमोदन को पात्र बना दिया। इसी शर्त के आधार पर ने संघ परिवार से जुड़े स्कूलों और समान विचारधारा वाले संगठनों ने कई आवेदन कर डाले। रिपोर्टर्स क्लेक्टिव ने अपनी पड़ताल के हवाले से बताया है कि अब तक हुए 40 सैनिक स्कूल समझौतों (एमओए) में से कम से कम 62% राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठनों, भाजपा नेताओं, उसके राजनीतिक सहयोगियों और दोस्तों, हिंदुत्व से जुड़े स्कूलों को संचालिन के लिए अनुमोदित किया गया। इनमें से काफी जानकारी आरटीआई के जरिए सरकार से ही निकलवाई गई।

ऐसा पहली बार

सैनिक स्कूल एजुकेशन सिस्टम के इतिहास में, यह पहली बार हुआ जब सरकार ने निजी लोगों या एसएसएस से संबद्ध संस्थाओं को "आंशिक वित्तीय सहायता" प्राप्त करने और अपनी शाखाएं चलाने की अनुमति दी। 12 अक्टूबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस कैबिनेट बैठक का नेतृत्व किया था, जिसमें ऐसे स्कूलों को "विशेष रूप से चलाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई, जो रक्षा मंत्रालय के मौजूदा सैनिक स्कूलों से अलग और अलग होगा।"

सैनिक स्कूल एजुकेशन सिस्टम के इतिहास में, यह पहली बार हुआ जब सरकार ने निजी लोगों या एसएसएस से संबद्ध संस्थाओं को "आंशिक वित्तीय सहायता" प्राप्त करने और अपनी शाखाएं चलाने की अनुमति दी। 12 अक्टूबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस कैबिनेट बैठक का नेतृत्व किया था, जिसमें ऐसे स्कूलों को "विशेष रूप से चलाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई, जो रक्षा मंत्रालय के मौजूदा सैनिक स्कूलों से अलग और अलग होगा।"

क्या महंगे हैं ऐसे प्राइवेट सैनिक स्कूल

पॉलिसी दस्तावेज़ के अनुसार, सरकार ऐसे स्कूलों में कक्षा 6 से लेकर कक्षा 12 तक, मेरिट-कम-मीन्स के आधार पर हर साल 50 छात्रों को अधिकतम 1.2 करोड़ रुपये की मदद देती है। इसमें से छात्रों को आंशिक वित्तीय सहायता मिलती है। स्कूलों को दिए जाने वाले अन्य प्रोत्साहनों में "12वीं कक्षा में छात्रों के शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर सालाना प्रशिक्षण अनुदान के रूप में 10 लाख रुपये की राशि दी जाती है।" सरकारी समर्थन और प्रोत्साहन के बावजूद, रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने पाया कि वरिष्ठ माध्यमिक के लिए वार्षिक शुल्क मामूली 13,800 रुपये प्रति वर्ष से लेकर 2,47,900 रुपये तक है, जो नए सैनिक स्कूलों की फीस में एक महत्वपूर्ण असमानता का संकेत देता है।

आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक कम से कम 40 स्कूलों ने 5 मई, 2022 और 27 दिसंबर, 2023 के बीच सैनिक स्कूल सोसायटी के साथ एमओए पर साइन किए हैं। द कलेक्टिव की समीक्षा से पता चलता है कि 40 स्कूलों में से 11 सीधे तौर पर भाजपा नेताओं के हैं। या उनकी अध्यक्षता वाले ट्रस्ट भाजपा के लोग और राजनीतिक सहयोगी चला रहे हैं। आठ का प्रबंधन सीधे तौर पर आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा किया जाता है। इसके अतिरिक्त, छह स्कूलों को दक्षिणपंथी कट्टर हिंदू धार्मिक संगठनों से सीधा संबंध है। ऐसा कोई भी सैनिक स्कूल ईसाई या मुस्लिम संगठनों या भारत के किसी भी धार्मिक अल्पसंख्यक द्वारा नहीं चलाया जा रहा है।

गुजरात से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक बड़ी संख्या में इन नए सैनिक स्कूलों में या तो भाजपा नेताओं की सीधी भागीदारी है या उन ट्रस्टों के वे मालिक हैं जिनके वे प्रमुख हैं। अरुणाचल के सीमावर्ती शहर तवांग में तवांग पब्लिक स्कूल राज्य में स्वीकृत एकमात्र सैनिक स्कूल है। इस स्कूल का स्वामित्व राज्य के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के पास है। हितेंद्र त्रिपाठी, पूर्व स्कूल प्रबंध समिति के अधिकारी सचिव, जो स्कूल के प्रिंसिपल के रूप में भी कार्य करते हैं, ने स्कूल समिति के अध्यक्ष के रूप में खांडू की भूमिका की पुष्टि की। खांडू के भाई त्सेरिंग ताशी, तवांग से भाजपा विधायक, स्कूल के प्रबंध निदेशक हैं।

उत्तर प्रदेश के इटावा में शकुंतलम इंटरनेशनल स्कूल मुन्ना स्मृति संस्थान द्वारा चलाया जाता है, जो एनजीओ है। इसकी अध्यक्ष भाजपा विधायक सरिता भदौरिया हैं। उनके बेटे, आशीष भदौरिया, जो स्कूल का कामकाज देखते हैं, ने कहा, “हमें सैनिक स्कूल चलाने का कोई अनुभव नहीं है। हम इसे आगामी सत्र से शुरू करेंगे।” उन्होंने दावा किया, ''चयन प्रक्रिया बहुत व्यापक थी.'' जब उनसे पूछा गया कि क्या पार्टी एसोसिएशन के लिए उनके आवेदन को मंजूरी दी गई है, तो उन्होंने कहा, 'आपको यह सरकार से पूछना चाहिए।'


गुजरात के मेहसाणा में मोतीभाई आर. चौधरी सागर सैनिक स्कूल दूधसागर डेयरी से संबद्ध है, जिसके अध्यक्ष मेहसाणा के पूर्व भाजपा महासचिव अशोककुमार भावसंगभाई चौधरी हैं। पिछले साल गृह मंत्री अमित शाह ने वर्चुअल तरीके से स्कूल का शिलान्यास किया था। गुजरात में एक और स्कूल, बनासकांठा में बनास सैनिक स्कूल, बनास डेयरी के तहत गल्बाभाई नानजीभाई पटेल चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रबंधित किया जाता है। इस संगठन का नेतृत्व थराद से भाजपा विधायक और गुजरात विधानसभा के वर्तमान अध्यक्ष शंकर चौधरी कर रहे हैं।

जांच में पाया गया कि नए पीपीपी मॉडल से लाभान्वित होने वाले लोगों में कई भाजपा राजनेता भी शामिल हैं। इस लंबी सूची में अलग-अलग राज्यों के बीजेपी नेता हैं। हरियाणा में, रोहतक का बाबा मस्तनाथ आवासीय पब्लिक स्कूल अब एक सैनिक स्कूल है। पूर्व भाजपा सांसद महंत चांदनाथ ने इसकी स्थापना की थी और वर्तमान में इसका संचालन उनके उत्तराधिकारी महंत बालकनाथ योगी द्वारा किया जाता है, जो राजस्थान के तिजारा से मौजूदा भाजपा विधायक हैं।

महाराष्ट्र के नए मंजूर स्कूलों में अहमदनगर का पद्मश्री डॉ. विट्ठलराव विखे पाटिल स्कूल शामिल है। इसके अध्यक्ष पूर्व कांग्रेस विधायक राधाकृष्ण विखे पाटिल हैं, जो 2019 में भाजपा में शामिल हुए थे। राजस्थान के सीकर जिले के पूर्व भाजपा अध्यक्ष, हरिराम रणवा उस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं, जो ऐसे स्कूल का प्रबंधन करता है। सांगली में एसके इंटरनेशनल स्कूल, जिसे सैनिक स्कूल से संबद्धता मिली है, की स्थापना भाजपा के सहयोगी सदाभाऊ खोत ने की थी, जो 2014 की देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार में मंत्री थे। मध्य प्रदेश के कटनी में जिस सिना इंटरनेशनल स्कूल को मंजूरी मिली है, उसकी प्रमुख मध्य प्रदेश में बीजेपी विधायक संजय पाठक की पत्नी निधि पाठक हैं।

 - Satya Hindi

सूची में अडानी का भी स्कूल है।

अडानी को भी मौका

कांग्रेस का आरोप है कि अडानी समूह मोदी सरकार के बहुत करीब है। एक तरह से अडानी समूह को मोदी सरकार और भाजपा का संरक्षण है। रिपोर्टर्स क्लेक्टिव की रिपोर्ट बता रही है कि अडानी ग्रुप के तहत एक फाउंडेशन द्वारा संचालित स्कूल को भी संबद्धता दी गई। आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में अडानी वर्ल्ड स्कूल भी संबद्ध है। स्कूल कृष्णापट्टनम बंदरगाह के पास स्थित है, जो पूर्वी तट पर अडानी समूह द्वारा संचालित बंदरगाह है। स्कूल का स्वामित्व अडानी कम्युनिटी एम्पावरमेंट फाउंडेशन के पास है। फाउंडेशन की अध्यक्ष प्रीति अडानी हैं।

सेंट्रल हिंदू मिलिट्री एजुकेशन सोसाइटी द्वारा संचालित भोंसाला मिलिट्री स्कूल, नागपुर को भी सैनिक स्कूल के रूप में चलाने की मंजूरी दी गई है। स्कूल की स्थापना 1937 में हिंदू दक्षिणपंथी विचारक बी.एस. मुंजे द्वारा की गई थी। 2006 के नांदेड़ बम विस्फोट और 2008 के मालेगांव विस्फोटों की जांच के दौरान, महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते ने भोंसाला मिलिट्री स्कूल की जांच की थी, जहां विस्फोट के आरोपियों को कथित तौर पर प्रशिक्षित किया गया था। अब यह देश के लिए सैनिक तैयार करेगा।

रिपोर्टर्स क्लेक्टिव का कहना है कि नए नीतिगत बदलावों से विचारधारा वाले सैनिक स्कूल चिन्ता का विषय हैं। पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मेनन का कहना है कि "यह स्पष्ट है, यह सब 'कैच देम यंग (उन्हें युवा अवस्था में जोड़ लो)' की अवधारणा पर है। यह सशस्त्र बलों के लिए अच्छा नहीं है। ऐसे संगठनों को अनुबंध देने से सशस्त्र बलों के चरित्र और लोकाचार पर असर पड़ेगा।” मेनन वर्तमान में तक्षशिला संस्थान में रणनीतिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक हैं।

इस सूची में सिर्फ भाजपा नेता ही शामिल नहीं हैं। निजी सैनिक स्कूलों को चलाने का अधिकार आरएसएस संस्थानों और उससे जुड़े कई हिंदू दक्षिणपंथी समूहों को भी दिया गया है। विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान (विद्या भारती) आरएसएस की शैक्षिक शाखा है। ऐसी सात संबद्धताएँ भारत में पहले से मौजूद विद्या भारती स्कूलों को मिलीं - उनमें से तीन बिहार में स्थित हैं, और एक-एक मध्य प्रदेश, पंजाब, केरल और दादरा और नगर हवेली में स्थित हैं। भाऊसाहब भुस्कुटे स्मृति लोक न्यास, आरएसएस की सामाजिक सेवा शाखा, राष्ट्रीय सेवा भारती से संबद्ध, भी स्कूलों को चलाने वाले समूह का हिस्सा है। होशंगाबाद में उनके स्कूल, सरस्वती ग्रामोदय हायर सेकेंडरी स्कूल को मंजूरी मिली। 

याद रहे विद्या भारती पर अक्सर इतिहास को फिर से लिखने, शिक्षा देने और मुस्लिम विरोधी पाठ्यक्रम का आरोप लगता रहा है। सैनिक स्कूलों के मामले में भी साफ हो गया है कि विद्या भारती अपने मिशन को कैसे परिभाषित कर रही है और कैसे चला रही है।

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