क्या साध्वी प्रज्ञा को उतारने का दाँव उल्टा पड़ा बीजेपी को?
क्या मालेगाँव बम विस्फोट कांड की अभियुक्त साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को चुनावी मैदान में उतार कर भारतीय जनता पार्टी भोपाल से कांग्रेस उम्मीदवार को हिन्दू आतंकवाद के मुद्दे पर घेरने की कोशिश में थी लेकिन क्या उसका यह दाँव उल्टा पड़ गया और वह खुद सफ़ाई देती फिर रही है। दरअसल, हेमंत करकरे पर बयान देकर प्रज्ञा सिंह ने बीजेपी की पूरी योजना पर पानी फेर दिया। उनकी उपयोगिता तो ख़त्म हो ही गई, बीजेपी भी बुरी तरह घिर गई।
मुद्दों की तलाश में बीजेपी चुनाव जीतने के लिए हिंदुत्व को मुद्दा बनाने की रणनीति पर काम कर रही है। इसी कोशिश में भोपाल से कांग्रेस के उम्मीदवार और 'संघी आतंकवाद' के प्रबल विरोधी, दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ प्रज्ञा ठाकुर को बीजेपी का उम्मीदवार बनाया गया है। प्रज्ञा ठाकुर अभी ज़मानत पर हैं, उनके ऊपर आतंकवाद विरोधी क़ानून मकोका के तहत मुक़दमा चल रहा है। वह मध्यप्रदेश के बीजेपी नेता सुनील जोशी की हत्या के मामले में भी अभियुक्त थीं। २०१४ में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद कुछ मामलों में उनके केस बंद कर दिए गए थे। वह अभी मालेगांव धमाके में अभियुक्त हैं।
आक्रामक प्रज्ञा
प्रज्ञा ठाकुर ने बीजेपी की सदस्यता लेने के साथ ही आक्रामकता दिखानी शुरू कर दी। उन्होंने अपने ऊपर हुए कथित अत्याचार के लिए भोपाल से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह की सोच को परोक्ष रूप से ज़िम्मेदार बताया। वह बहुत बढ़-चढ़ कर बोलने लगीं और उसी रौ में उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के आतंकवाद विरोधी दस्ते के तात्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे के बारे में बहुत ही आपत्तिजनक और अपमानजनक बातें बोल गईं। उन्होंने उनको कुटिल कहा, पापी कहा और देशद्रोही तक कह डाला। उन्होंने यह भी कहा कि शहीद करकरे की मृत्यु इसलिए हुयी कि इन मोहतरमा ने उनको बद्दुआ दे दी थी। यह कहना था कि पूरा देश उनके ख़िलाफ़ टूट पड़ा।
जो बहादुर पुलिस अफ़सर मुंबई को आतंकवादी हमले से बचाने के लिए शहीद हुआ था, जिसने पाकिस्तान से आये आतंकवादियों को सामने से चुनौती दी थी, जिसके सीने पर अंधेरे में छुपे हुए आतंकवादियों ने गोली मारी थी, उसका आपमान सहन करने के लिए देश तैयार नहीं था।
कुछ वक़्त के लिए तो ऐसा लगा कि सोशल मीडिया पर पूरा देश उतर आया है और शहीद करकरे को अपमानित करने वाली बीजेपी उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर की निंदा कर रहा है। कांग्रेस ने भी मौक़ा देख, मोर्चा संभाल लिया और शहीद का अपमान करने वाली पार्टी के रूप में बीजेपी को पेश करने में कोई समय नहीं गंवाया।
सहानुभूति लेने की कोशिश
बीजेपी को भी लगा कि ग़लती हो गयी, लेकिन प्रज्ञा ठाकुर अपने को पीड़ित बताकर सहानुभूति लेने के चक्कर में डटी रहीं। जब बीजेपी ने शहीद हेमंत करकरे के बारे में दिए गए उनके बयान को उनका निजी बयान बताकर पल्ला झाड लिया, तब भी वह अपना राग अलापती रहीं। लेकिन कुछ टीवी चैनलों और अखबारों ने प्रज्ञा ठाकुर के असंतुलित बयान को जिस तरह से उठाया, उससे बीजेपी को लगा कि बात बिगड़ गयी है।
साध्वी को भोपाल से उम्मीदवार बना कर कांग्रेस को 'हिन्दू आतंकवाद' के घेरे में लेने का प्रयास उल्टा पड़ गया। जो बीजेपी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और सैनिकों की शहादत को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ रही है, उसकी एक प्रत्याशी पाकिस्तानी आतंकवाद के ख़िलाफ़ मोर्चा लेने वाले सबसे बहादुर योद्धा को अपमानित कर रही थी।
मोहरा पिटा
ज़ाहिर है, बीजेपी जिस मोहरे को अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहती थी, वही उसके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन चुका है। पार्टी के नेताओं की समझ में आ गया कि प्रज्ञा ठाकुर की बदज़ुबानी को सही ठहराने की कोशिश में उनका भारी नुक़सान होने वाला है। शायद इसीलिये प्रज्ञा ठाकुर को पार्टी ने फटकारा और उन्होंने शहीद करकरे की शान में की गयी बदतमीज़ी के लिए माफ़ी मांग ली। लेकिन माफ़ी भी ऐसी माँगी, जिससे पार्टी को नुक़सान होने का ख़तरा बना हुआ है। माफ़ी की भाषा ऐसी है, जिसको पढने पर लग जाता है कि वह माफ़ी तो मांग रही हैं, लेकिन अभी भी शहीद हेमंत करकरे को गुनहगार साबित करने से बाज़ नहीं आ रही हैं।
क्या कहा प्रज्ञा ने
उन्होंने लिख कर माफ़ी नहीं माँगी है। संवाददाताओं से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि, 'जो मैंने कहा था वह मेरी व्यक्तिगत पीड़ा थी, जो मैंने सुनाई थी। मेरे बयान से किसी को ठेस पहुंची है तो मैं अपना बयान वापस लेती हूं, और माफी मांगती हूं। देश के दुश्मन इससे खुश हो रहे हैं, इसलिए मैं अपने बयान को वापस ले रही हूं और माफ़ी भी माँगती हूँ।'
बताते हैं इसके बाद बीजेपी के बड़े नताओं ने उन्हें डाँटा और शहीद हेमंत करकरे की तारीफ़ करने का निर्देश दिया। उसके बाद उन्होंने कहा कि, 'हेमंत करकरे आतंकवादियों की गोली से शहीद हुए थे। जो बात मैंने उनके बारे में कही, वह नहीं कहनी चाहिए थी। मैं खेद प्रकट करती हूँ।' लेकिन लगता है कि बात अभी बनी नहीं है। महाराष्ट्र के कुछ संगठनों ने माँग की है कि प्रज्ञा ठाकुर और बीजेपी ने शहीद करकरे के बच्चों को जो पीड़ा पँहुचाई है, उसके लिए भी माफ़ी माँगें।
सवाल होंगे बीजेपी से
अब लगता है कि प्रज्ञा ठाकुर बीजेपी के चुनाव अभियान में दिग्विजय सिंह और उनकी पार्टी पर कालिख पोतने के लिए काम नहीं आने वाली हैं। भोपाल में तीन हफ़्ते बाद चुनाव होना है। तब तक उनकी लानत-मलानत का सिलसिला चलता रहेगा और उनकी पार्टी उस पर सफ़ाई देने के लिए मजबूर होती रहेगी। तब तक चुनाव हो जाएगा।
अब तो साफ़ लगने लगा है कि साध्वी प्रज्ञा दिग्विजय सिंह को भी चुनौती नहीं दे पाएँगीं, क्योंकि वह जहाँ भी जाएँगी, उनसे शहीद हेमंत करकरे के बारे में सवाल पूछे जाएँगे।
बीजेपी की योजना तो यह थी कि दिग्विजय सिंह पर यह आरोप चस्पा किया जाए कि वह सभी हिन्दुओं को आतंकवादी मानते हैं। बीजेपी का चुनाव प्रचार उसी पर केन्द्रित किया जाए। अब इस बात पर सवाल उठना शुरू हो गए हैं। मामला उल्टा पड़ गया।
दिग्विजय सिंह को हिन्दू विरोधी साबित करने की कोशिश तो उसी दिन दफ़न हो गयी थी, जब उन्होंने हिन्दू धर्म की सबसे कठिन तीर्थयात्रा, नर्मदा परिक्रमा को विधि विधान से पूरी की थी।
साध्वी की ज़रूरत ख़त्म
टीवी की बहसों में जो विश्लेषक एंकरों द्वारा की जा रही दिग्विजय सिंह की निंदा के बीच चुप बैठे रहते थे, वे अब कहने लगे हैं कि दिग्विजय सिंह ने कभी भी हिन्दू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया है। उनके मुताबिक़, दिग्विजय हमेशा 'संघी आतंकवाद' शब्द का प्रयोग करते हैं। मीडिया के सहयोग से आरएसएस और बीजेपी के नेता उनको हिन्दू विरोधी साबित करने के लिए दिन रात लगे रहते हैं। प्रज्ञा ठाकुर को उनके ख़िलाफ़ उम्मीदवार बनाकर इसी बात को रेखांकित किया जाना था। प्रज्ञा ठाकुर उसी प्रोजेक्ट का हिस्सा थीं।
लेकिन अब शहीद को अपमानित करके वह बीजेपी के राष्टवाद वाले प्रोजेक्ट को भी नुक़सान पँहुचा रही हैं। अब साफ़ नज़र आने लगा है कि उनकी उपयोगिता समाप्त हो चुकी है। बीजेपी की उम्मीदवार के रूप में तो शायद वह बनी रहें, लेकिन दिग्विजय सिंह और कांग्रेस को हिन्दू विरोधी साबित करने में अब उनकी उपयोगिता नहीं रही। अभी चुनाव के पाँच चरण बाकी हैं, हो सकता है कि बीजेपी कोई और तरीका निकाले, क्योंकि शुरू के दो चरणों में बीजेपी को उत्तर प्रदेश और बिहार में बड़ा नुक़सान हो चुका है।