अकाली दल का संसद परिसर में प्रदर्शन, कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग
शिरोमणि अकाली दल ने मंगलवार को संसद परिसर में कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया और सरकार से इन क़ानूनों को वापस लेने की मांग की। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने एएनआई से बातचीत में कहा कि किसान तूफ़ान, गर्मी, बरसात में धरने पर बैठे हैं लेकिन प्रधानमंत्री ने उनसे बात करने के बजाए उन्हें उनके हाल पर छोड़ा हुआ है।
उन्होंने कहा कि आज सबसे अहम मुद्दा किसानों का है, धरने में 500 से ज़्यादा किसानों की मौत हो चुकी है लेकिन अभी भी उनके मसले पर बात नहीं की जा रही है और यह बेहद अफ़सोस की बात है। सुखबीर के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर भी थीं जबकि सोमवार को बीएसपी के राज्यसभा सांसद सतीश चंद्र मिश्रा भी उनके साथ प्रदर्शन में शामिल हुए थे।
सुखबीर सिंह बादल और अकाली दल के बाक़ी सांसदों ने हाथों में प्लेकार्ड लिए हुए थे और इन्हें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को दिखाया। इनमें लिखा हुआ था कि कृषि क़ानूनों को तुरंत वापस लिया जाए।
तोड़ दिया था गठबंधन
अकाली दल ने सोमवार को भी इस मुद्दे को उठाया था और कहा था कि किसान लगातार अपनी आवाज़ उठा रहे हैं लेकिन उनकी आवाज़ को नहीं सुना जा रहा है। कृषि क़ानूनों के मसले पर ही अकाली दल ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ दिया था और हरसिमरत कौर ने मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया था।
पंजाब चुनाव में किसान अहम मुद्दा
पंजाब में सात महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं और दिल्ली के बॉर्डर्स पर चल रहे किसान आंदोलन का चुनाव नतीजों में बेहद अहम रोल रहेगा। किसानों की नाराज़गी मोल लेने के जोख़िम को देखते हुए ही अकाली दल और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने एनडीए से नाता तोड़ लिया था जबकि हरियाणा में बीजेपी सरकार के साथ रहने की वजह से दुष्यंत चौटाला लगातार किसानों के निशाने पर हैं।
सुखबीर पंजाब के उप मुख्यमंत्री रहे हैं और जानते हैं कि किसानों के बिना पंजाब की सत्ता में वापस लौटना मुमकिन नहीं है। इसलिए वह संसद सत्र में हर दिन इस मुद्दे को उठा रहे हैं।
बीएसपी संग किया गठबंधन
पंजाब कांग्रेस में चल रहे झगड़े के बीच सुखबीर सिंह बादल को उम्मीद है कि उनकी पार्टी पंजाब की सत्ता में वापसी करेगी। अकाली दल ने चुनाव के लिए बीएसपी के साथ गठबंधन किया है। 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में बीएसपी 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।
माना जा रहा है कि यह क़दम पंजाब में दलित समुदाय के वोटों को अपने पाले में लाने के लिए उठाया गया है। भारत में दलितों की सबसे ज़्यादा आबादी पंजाब में है और यह 32 फ़ीसदी के आसपास है।