सुनील मनोहर गावस्कर यानी भरोसे की एक बेमिसाल पहचान। भारतीय क्रिकेट में गावस्कर से पहले भी बल्लेबाज़ी की एक महान विरासत थी और गावस्कर के बाद की भी पीढ़ी ने महानता के नये मानदंड तय किये हैं। लेकिन, सुनील गावस्कर तो वाकई में बल्लेबाज़ी के अदभुत मास्टर थे।
6 मार्च 1971 यानी आज से ठीक 50 साल पहले वेस्टइंडीज़ के दौरे पर गावस्कर ने टीम इंडिया के लिए पहला टेस्ट खेला। अगर 'पूत के पाँव पालने में नज़र आते हैं' वाली कहावत को टेस्ट इतिहास में सिर्फ एक बल्लेबाज़ ने अपनी पहली सीरीज़ के धमाल से सच साबित किया तो वो गावस्कर ही थे। आखिर ना तो उनसे पहले किसी ने अपनी पहली सीरीज़ 774 रन बनाये थे और ना उनके बाद अब तक कोई इसके करीब भी पहुँचा हैं।
वह तो ऊंगली की चोट थी जिसके चलते गावस्कर उस सीरीज़ का पहला मैच नहीं खेले, वर्ना उस सीरीज़ के औसत (154.80) के हिसाब से वे रन बनाते तो शायद 1,000 रन भी बन सकते थे।
पहली सिरीज़ में 774 रन
टेस्ट क्रिकेट में जहाँ एक साल में 1,000 रन बनाने को पारंपरिक तौर पर एक बड़ी उपलब्धि माना जाता है वहाँ गावस्कर अपनी पहली ही सीरीज़ में हासिल करने के बेहद करीब पहुँच गये थे।
आँकड़े आपको यह ज़रूर बतायेंगे कि भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट में गावस्कर से ज़्यादा शतक सचिन तेंदुलकर (51) और राहुल द्रविड़ (36) ने जमाये हैं, लेकिन जब गावस्कर की महानता को किसी कसौटी पर आँकने की ज़रुरत मुझे आती है तो तेंदुलकर और द्रविड़ से जुड़े दो वाक्ये अचानक ज़ेहन में आ जाते हैं।
सचिन तेंदुलकर
गावस्कर से तुलना
पहली घटना तेंदुलकर से ज़ुड़ी साल 2004 दिसंबर महीने की है। बांग्लादेश की राजधानी ढाका में तेंदुलकर करीब 45 मिनट की मैराथन प्रेस कांफ्रेस करके टीम बस की तरफ बढ़ रहे थे तो मैने एक युवा पत्रकार के तौर पर उनसे अपने चैनल के लिए एक्सक्लूसिव बातचीत करने की गुज़ारिश की। उस दौरे में तेंदुलकर अलग से बात नहीं करते थे, लेकिन कुछ ही मिनटों वाले उस इटंरव्यू में मैनें उनसे गावस्कर के 34 टेस्ट शतक के बराबरी करने वाले रिकॉर्ड के बारे में सवाल पूछा तो उन्होंने बेहद विनम्रता से कहा,
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“गावस्कर सर की भारतीय क्रिकेट में कौन बराबरी कर सकता है? मुझे तो इस बात पर गर्व हो रहा है कि मेरे इस रिकॉर्ड पर मुझसे ज्यादा खुश वे हैं।”
सचिन तेंदुलकर, भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी
क्या कहा राहुल द्रविड़ ने?
लगभग 7 साल बाद 2011 के इंग्लैंड दौरे पर मैं भी टीम इंडिया के साथ-साथ मौजूद था। इस बार द्रविड़ ने गावस्कर के 34 टेस्ट शतक की बराबरी की और जब प्रेस कांफ्रेस में यही सवाल मैनें उनसे पूछा तो उनका जवाब भी क़रीब- क़रीब सचिन जैसा ही था। उन्होंने कहा,
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“मैं खुद की तुलना गावस्कर से कभी नहीं कर सकता जो इस खेल के लेजेंड हैं। मैं बचपन से गावस्कर और (गुंडप्पा) विश्वनाथ बनने की हसरत लेते हुए अपने घर के आँगन में खेलता था और ऐसे में एक ऐसी चीज़ पर उनके साथ बराबरी करना मेरे लिए बेहद फख़्र की बात है।”
राहुल द्रविड़, भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी
महानतम के ख़िलाफ़ महान थे गावस्कर
जब जब इतिहास में वेस्टइंडीज़ की ख़तरनाक तेज़ गेंदबाज़ों की चौकड़ी का जिक्र होगा तब तब लोगों को गावस्कर का नाम लेना ही पड़ेगा। मैल्कम मार्शल, माइकल होल्डिंग, एंडी रॉबर्ट्स और कोलिन क्राफ्ट की चौकड़ी के ख़िलाफ़ जिस दौरे में इक्के-दुक्के शतक लगाना महानता का तमगा दिलाने के लिए काफी हुआ करता था, उस विश्वविजयी आक्रमण के खिलाफ़ गावस्कर ने अपने करियर के 13 शतक लगाये। औसत 65.45। एक मुल्क़ के खिलाफ़ सिर्फ डॉन ब्रैडमैन का ही दबदबा ऐसा रहा है। हालांकि, इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 19 शतक के लिए ब्रैडमैन को 37 मैच खेलने पड़े थे, जबकि वेस्टइंडीज़ के खिलाफ सिर्फ 27 मैच में गावस्कर के 13 शतक बने।
क्रिकेट का आभूषण
वैसे, तेंदुलकर में अपने खेल की शैली देखने से पहले ब्रैडमैन ने गावस्कर को ही क्रिकेट का आभूषण बताया था। वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ पोर्ट ऑफ स्पेन टेस्ट की चौथी पारी में 406 रनों के लक्ष्य का पीछा करता हुए शतकीय पारी अगर आभूषण नहीं तो और क्या।
संभवत: इतिहास के सबसे संपूर्ण गेंदबाज़ मार्शल के खिलाफ़ धुआंधार बल्लेबाज़ी करते दिल्ली में 1983 में सिर्फ 94 गेंदों पर शतक अगर आभूषण नहीं तो और क्या। उसी साल मद्रास में अपने करियर की सबसे बड़ी पारी 236 उसी महान वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ आभूषण नहीं तो और क्या।
स्पिन भी खेला
लेकिन, ऐसा नहीं था कि गावस्कर सिर्फ तेज़ गेंदबाज़ी के ख़िलाफ़ महानता की सबसे बड़ी मूर्ति हैं। स्पिन के ख़िलाफ़ उन्हें क्रिकेट का एक बेहद कुशल खिलाड़ी माना गया। अपने आखिरी टेस्ट की आखिरी पारी में 1987 में बैंगलोर के चिन्नास्वामी स्टेडियम में 96 रनों की पारी के बारे में इतना ज़्यादा लिखा गया है कि अच्छे-अच्छे बल्लेबाज़ों के दोहरे-तिहरे शतकों को तारीफ में अब तक इतने शब्द नहीं मिले।
1971 से 1987 गावस्कर का जलवा अपने परवान पर था। जैसी धुआँधार शुरुआत उन्होंने अपने करियर में की, उसका अंत भी उतने ही शानदार अंदाज़ में किया। अगर लगातार 106 टेस्ट खेलने का रिकॉर्ड उन्होंने बनाया तो पहली बार 10,000 रनों के माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले भी वही थे।
एक टेस्ट की दोनों पारियों में शतक लगाना आसान नहीं है, क्योंकि तेंदुलकर 200 टेस्ट के दौरान कभी ऐसा नहीं कर पाये। कोहली सिर्फ 1 मौके पर ये कमाल दिखा पाये हैं जबकि द्रविड़ ने ऐसा 2 बार अपने करियर में किया। लेकिन, गावस्कर ने ये मिसाल 3 बार दी।
महानतम की अल्टीमेट कसौटी
1975 से 1980 के दौरे को आप गावस्कर के करियर का सर्वोत्तम दौर कह सकतें हैं जहाँ लगभग 60 की औसत उन्होंने 45 मैचों में बरकरार रखी और 18 शतक जमाये। लेकिन, अपने आखिरी 2 सालों के दौरान भी उनका औसत करीब 60 का ही रहा (58.27)। इस दौरान 16 टेस्ट में उनके बल्ले से 4 शतक निकले।
आखिर में चलते-चलते एक बार फिर से गावस्कर के सही मूल्यांकन के लिए मैं द्रविड़ और तेंदुलकर के ही दो ब्यानों पर जाना चाहता हूँ। क्योंकि नई पीढ़ी को टेस्ट क्रिकेट में शायद इन दोनों से बेहतर टेस्ट बल्लेबाज़ हो सकने की बात पर यकीन करना भी अजीब लगे। “गावस्कर तो हमेशा से ही हर पीढ़ी के लिए महानता को परखने की कसौटी रहे हैं। उन्होंने एक पूरी पीढ़ी को प्रेरित किया,” ये फरवरी 2009 में द्रविड़ ने गावस्कर पर लिखी एक किताब 'एसएमजी' के लाँन्च के दौरान कही थी।
अपने 40वें जन्म दिन पर तेंदुलकर ने एक बेहद दिलचस्प बात कही थी-
“हर शख्स अपनी एक ख़ास पहचान चाहता है और वो ज़रूरी है। लेकिन, हमेशा आपके सामने हीरो भी होने चाहिए। मैं जब बड़ा हो रहा था तो सुनील गावस्कर और विवियन रिचर्ड्स मेरे हीरो थे और मैं उन दोनों का मेल अपने में देखना चाहता था।” यानी रिचर्ड्स जैसी आक्रामकता और गावस्कर जैसा अभेद किले वाला डिफेंस, बेमिसाल एकाग्रता। अब आप खुद सोच लें कि क्या गावस्कर की महानता और अहमियत को सिर्फ कुछ शब्दों में बयान किया जा सकता है क्या?