रूसी हमले के लिए यूक्रेन सिर्फ़ एक बहाना है? वास्तविक वजह क्या...
रूस ने गुरुवार को आखिरकार यूक्रेन पर हमला कर दिया। यूक्रेन संकट पर पूरी दुनिया चिंतित है। यह चिंता युद्ध से तो है ही, इससे भी है कि आख़िर रूस का मक़सद क्या है? पश्चिमी नेता पहले से ही चेतावनी दे रहे थे कि रूस अपने पड़ोसी यूक्रेन पर हमला करने के लिए तैयार है और यूक्रेन तीन तरफ से रूसी सैनिकों, युद्धक विमानों और उपकरणों से घिरा हुआ है। ब्रिटेन ने तीन दिन पहले ही कह दिया था कि यूरोप में 1945 के बाद सबसे बड़े युद्ध की रूस की तैयारी है। तो सवाल है कि आख़िर यह सब क्यों हो रहा है? यूक्रेन संकट की क्या वजह है और इस हमले की वजह क्या है?
पहले तो कुछ रिपोर्टों में इस हमले के पीछे एक वजह नाटो को बताया गया। रूस कहता रहा है कि नाटो इसकी गारंटी दे कि यूक्रेन सहित पूर्व सोवियत के देशों को नाटो का सदस्य नहीं बनाया जाएगा। लेकिन नाटो ने यह गारंटी नहीं दी लेकिन इतना ज़रूर कहा कि ये देश मौजूदा स्थिति में नाटो के सदस्य नहीं हैं और हाल में ऐसी कोई योजना भी नहीं है। बता दें कि नाटो का गठन पहले के सोवियत यूनियन से निपटने के लिए किया गया था। बाद में सोवियत यूनियन तो बिखर गया, लेकिन नाटो बना रहा और इसका विस्तार होता रहा। तो एक सवाल यह भी है कि क्या रूस पहले के सोवियत यूनियन को जुटा रहा है?
हाल में ब्रिटेन के विदेश सचिव ने कहा था कि रूस यूक्रेन पर हमला कर पूर्व के सोवियत संघ के देशों को फिर से एक करने की फिराक में है। लेकिन कुछ रिपोर्टों में कहा गया कि इसकी सबसे बड़ी वजहों में से एक और तात्कालिक वजह यूक्रेन का विद्रोही समूह है? यह विद्रोही समूह रूस समर्थित है और यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र को स्वायत्त राज्य के तौर पर घोषित करना चाहता है। यूक्रेन का यह क्षेत्र डोनबास है। डोनबास दो क्षेत्रों- दोनेत्स्क और लुहान्स्क में बँटा हुआ है।
यूक्रेन संकट की यह कितनी बड़ी वजह है इसका अंदाज़ा रूसी सैनिकों के मूवमेंट से तो पता चलता ही है, पश्चिमी नेताओं के बयानों से भी पता चलता है। इस वजह को दोनेत्स्क और लुहान्स्क में पहले घटी घटनाओं में भी ढूंढा जा सकता है।
यही वह क्षेत्र है जहाँ यूक्रेन के सैनिकों और रूस समर्थित अलगाववादियों के बीच पिछले कई दिनों से गोलीबारी की ख़बरें हैं। हजारों लोगों ने पूर्वी यूक्रेन को खाली कर दिया है और कर रहे हैं। रूस की न्यूज़ एजेंसी तास ने तीन दिन पहले ख़बर दी थी कि स्व-घोषित दोनेत्स्क और लुहान्स्क पीपुल्स रिपब्लिक (डीपीआर और एलपीआर) ने पिछले शुक्रवार को घोषणा की कि वे डोनबास से निकालकर लोगों को रूस जाने में मदद करेंगे। डीपीआर और एलपीआर यूक्रेन के अलगाववादी विद्रोही समूह हैं।
रूस की संसद दूमा ने मंगलवार को पूर्वी यूक्रेन के रूस समर्थित विद्रोहियों के 'डोनबास पीपुल्स रिपब्लिक' की राजनयिक मान्यता के लिए एक प्रस्ताव का समर्थन किया था। बाद में रूस के राष्ट्रपति ने भी इन दोनों क्षेत्रों को मान्यता देने की घोषणा कर दी। इससे रूस और यूक्रेन के बीच तनाव और ज़्यादा बढ़ गया था।
दोनेत्स्क और लुहान्स्क ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ रूसी भाषी लोग रहते हैं। ये वही क्षेत्र हैं जिसको लेकर रूस और यूक्रेन के बीच डोनबास युद्ध भी हुआ था। दोनों देशों के बीच 2014 से इस तरह का संघर्ष चलता रहा है।
2014 के बाद से ही यूक्रेन के दोनेत्स्क और लुहान्स्क क्षेत्र में रूस समर्थित विद्रोही पनपे और बढ़ते रहे। उस वक़्त यूक्रेन के अधिकारियों और पश्चिमी देशों ने आरोप लगाया था कि इन क्षेत्रों में रूसी सैनिकों ने हमले किये थे और यूक्रेन के अलगाववादी विद्रोहियों का साथ दिया था। हालाँकि, डोनबास में रूसी सैनिकों की मौजूदगी को लेकर रूस की आधिकारिक स्थिति अस्पष्ट रही है। आधिकारिक तौर पर तो रूसी सैनिकों की मौजूदगी से इनकार किया गया था, लेकिन कई मौकों पर यह दलील दी गई कि रूसी भाषा बोलने वालों की सुरक्षा के लिए रूस 'मिलिट्री विशेषज्ञों' को तैनात करने के लिए मजबूर हुआ। दोनों देशों के बीच संघर्ष को रोकने को लेकर मिंस्क में समझौता भी हुआ था कि वे एक-दूसरे के मामले में दखल नहीं देंगे। इसे मिंस्क समझौता के तौर पर जाना जाता है।
उस क्षेत्र में 2014 में संघर्ष शुरू होने के बाद से 2021 तक क़रीब साढ़े चार हज़ार यूक्रेन के सैनिक मारे गए। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2021 तक 5700 अलगाववादी विद्रोही मारे गए। इसके अलावा संघर्ष में हजारों लोगों के लापता होने की रिपोर्ट है।
जब से संघर्ष शुरू हुआ है तब से अलगाववादी विद्रोही दोनेत्स्क और लुहान्स्क को एक अलग स्वतंत्र राष्ट्र की मांग करते रहे हैं। हालाँकि, रूस को छोड़कर किसी भी देश ने इनको अब तक मान्यता नहीं दी है।
तो सवाल वही है। यूक्रेन में रूस के हमले की वजह क्या हो सकती है? क्या वह वजह यूक्रेन का दोनेत्स्क और लुहान्स्क क्षेत्र है? या फिर नाटो? फिर ब्रिटेन के विदेश मंत्री की इस बात में कितना दम है कि वह यूक्रेन के बहाने से पूर्व के सोवियत यूनियन के देशों को एकजुट करना चाहता है? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या यह दुनिया की महाशक्ति बनने की लड़ाई है जिससे अपनी धौंस जमाई जा सके? फ़िलहाल अमेरिका और नाटो वैश्विक महाशक्ति के रूप में हैं तो क्या यह ऐसी ताक़त हासिल करने की लड़ाई है?