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रुश्दी की किताबों में जिन्दगी के हर लम्हे

रुश्दी की किताबों में जिन्दगी के हर लम्हे

लेखक सलमान रुश्दी की मशहूर किताबों का जिक्र जब होता है तो समीक्षक बताते हैं कि उनमें जिन्दगी के हर लम्हे को बहुत बारीकी से पेश किया गया है। महत्वपूर्ण यह है कि लेखक खुद को उन लम्हों से जोड़कर अपनी बात कहता है। रुश्दी की लेखन शैली अद्भुत है। 

सलमान रुश्दी अपनी किताबों के जरिए पहचाने जाते हैं। 33 वर्षों से जिस शख्स पर फतवे की तलवार लटक रही हो, उसका लेखन कभी रुका नहीं। उसकी आवाज कभी रुकी नहीं। इस दौरान भारत सहित तमाम देशों के साहित्यिक कार्यक्रमों में उनके आने का विरोध भी होता रहा लेकिन रुश्दी बेधड़क रहे। इन दिनों यूक्रेन में चल रहे युद्ध के दौरान वहां के जो लेखक खतरे में हैं, उन्हें वो अमेरिका लाना चाहते थे। शुक्रवार 12 अगस्त को उन्होंने इस संबंध में एक ईमेल पेन नामक संस्था को लिखा था।

सलमान रुश्दी की मशहूर किताबों के बारे में जब बात होती है तो उसमें कई किताबों को शामिल किया जाता है। उनकी तमाम किताबों में जिन्दगी के विभिन्न रूपों के दर्शन होते हैं। आइए जानते हैं उनकी मशहूर किताबों के बारे मेंः

'मिडनाइट्स चिल्ड्रन' (1981)

रुश्दी के इस दूसरे उपन्यास को बुकर पुरस्कार मिला, और यह उनकी एक अंतरराष्ट्रीय सफलता बन गई। भारत की आजादी के दौरान पैदा हुए सलीम सिनाई की जिन्दगी की कहानी के जरिए बताया गया है कि आधुनिक भारत कैसा होगा। एक समीक्षक ने लिखा था, भारत से जुड़े इस उपन्यास में लेखक की खुद की आपबीती है। जिसमें शिष्टता, मजाक, नाजुकपन और हैरान कर देने वाली कल्पनाशीलता है। इसमें पूरे भारत को आत्मसात करने और इससे बाहर निकालने की भूख भी है।

'द सैटेनिक वर्सेज' (1988)

यदि मिडनाइट्स चिल्ड्रन ने रुश्दी को ग्लोबल साहित्यिक मंच पर पहचान दी, तो उनके चौथे उपन्यास, "द सैटेनिक वर्सेज" ने उन्हें स्थापित करने में मदद दी। पुस्तक में विशेष रूप से पैगंबर मुहम्मद जीवन के जरिए उनका ही एक व्यंग्य चित्रण है। जिसने हंगामा खड़ा कर दिया। 1979 की ईरानी क्रांति के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी ने पुस्तक में ईशनिंदा पाई और रुश्दी के खिलाफ एक फतवा जारी किया। जिसमें लेखक को मारने का आग्रह किया गया था। इस वजह से रुश्दी वर्षों तक छिपे रहे। 

'द मूर्स लास्ट साइ' (1995)

मिचिको काकुटानी ने द टाइम्स में लिखा था, "द सैटेनिक वर्सेज" के बाद रुश्दी का पहला उपन्यास, भारत द्वारा अनुभव की गई उम्मीदों को नाकामी की ओर ले जाता है, क्योंकि स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र की उम्मीदें 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकालीन शासन के दौरान ढह गईं। इसके बाद बहुलवाद (बहुसंख्यकवाद) के शुरुआती सपनों ने सांप्रदायिक हिंसा और राजनीतिक भ्रष्टाचार को रास्ता दिया। उन्होंने इसे "एक विशाल उपन्यास" और "एक काला ऐतिहासिक दृष्टांत कहा। यह किताब रुश्दी की 1981 की उत्कृष्ट कृति, 'मिडनाइट्स चिल्ड्रन' के दायरे और महत्वाकांक्षा को टक्कर देती है।

'फूरी' (2001)

रुश्दी के न्यूयॉर्क चले जाने के बाद प्रकाशित, यह उपन्यास मलिक नाम की एक गुड़िया निर्माता पर है जो हाल ही में अपनी पत्नी और बच्चे को लंदन में छोड़कर शहर आया है। एक समीक्षक ने इस किताब के बारे में लिखा, रुश्दी अपने उपन्यासों में हर तरह की आड़ लेते हैं और बदलाव करते रहते हैं, लेकिन वो खुद कभी भी इस तरह से शाब्दिक रूप से मौजूद नहीं रहते।   

'जोसेफ एंटोन' (2012)

रुश्दी ने फतवे के बाद अपने अनुभवों के बारे में एक संस्मरण लिखा। इस किताब के बारे में उन्होंने कहा कि वह लंबे समय से भयभीत थे। उन्हीं संस्मरणों को इस किताब में डाला गया है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, मैंने महसूस किया कि मुझे भावनात्मक रूप से फिर से लेखन की दुनिया में प्रवेश करना और उसमें खुद को विसर्जित करना होगा।"लेकिन मुझे हमेशा से यह पता था कि मुझे यही करना होगा।

इस पुस्तक का नाम रुश्दी के उपनाम से लिया गया है, जब वो अंडरग्राउंड थे। उन दिनों वो अपना परिचय बाहरी दुनिया में जोसेफ एंटोन के नाम से देते थे। दरअसल यह नाम उनके दो पसंदीदा लेखकों के नामों को जोड़कर बनाया गया था - जोसेफ कॉनराड और एंटोन चेखव। इस किताब में फतवे के पहले दिनों के खुद की जिन्दगी के मनोरंजक अनुभवों का चित्रण भी है। जिसमें रुश्दी के बचपन (और विशेष रूप से, उनके शराबी पिता), उनके विवाह पर भी चर्चा की गई है।

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