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किसी भी आंदोलन का लंबा चलना समाज के लिए ठीक नहीं: आरएसएस

किसी भी आंदोलन का लंबा चलना समाज के लिए ठीक नहीं: आरएसएस

दिल्ली के बॉर्डर्स पर चल रहे किसानों के आंदोलन को लेकर मोदी सरकार के अलावा बीजेपी के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के अंदर भी बेचैनी दिख रही है। 

दिल्ली के बॉर्डर्स पर चल रहे किसानों के आंदोलन को लेकर मोदी सरकार के अलावा बीजेपी के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के अंदर भी बेचैनी दिख रही है। मोदी सरकार के सामने चुनौती बन चुके किसान आंदोलन को लेकर संघ के सर कार्यवाह भैया जी जोशी ने कहा है कि किसी भी आंदोलन का लंबा चलना ठीक नहीं है। भैया जी जोशी आरएसएस में संघ प्रमुख मोहन भागवत के बाद दूसरे नंबर पर हैं। 

भैया जी जोशी ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए इंटरव्यू में किसानों के आंदोलन को लेकर कहा है कि यह संभव नहीं है कि किसी भी संगठन की सभी मांगों को मान लिया जाए। उन्होंने कहा कि किसी भी आंदोलन में सरकार और संगठन के बीच उस बिंदु की तलाश करनी चाहिए जहां पर दोनों सहमत हों और आंदोलन ख़त्म हो सकता हो। 

'हल निकालने की हो कोशिश'

जोशी ने कहा, ‘किसी भी आंदोलन का लंबा चलना अच्छा नहीं होता है और किसी आंदोलन से किसी को दिक्कत भी नहीं होनी चाहिए। कोई आंदोलन समाज पर अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालता है। इसलिए समाज के लिए भी यह ठीक नहीं है कि कोई भी आंदोलन ज़्यादा लंबा चले। इसलिए दोनों पक्षों को मुद्दे का हल निकालने की कोशिश करनी चाहिए।’

आरएसएस नेता ने कहा कि किसानों को क़ानूनों से जो परेशानी है, उस पर बात करनी चाहिए। 

अहम मसलों पर संघ की राय को सामने रखने वाले जोशी ने कहा, ‘किसान आंदोलन को लेकर सरकार लगातार कह रही है कि हम इस पर चर्चा के लिए तैयार हैं लेकिन आंदोलनकारियों का कहना है कि पहले आप क़ानून रद्द करो, तब चर्चा करेंगे। ऐसे में कैसे बातचीत होगी।’

किसान आंदोलन के दौरान बीजेपी नेताओं के किसानों को खालिस्तानी, माओवादी कहने के सवाल पर जोशी ने कहा, ‘कुछ लोग ऐसा कह सकते हैं लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं कहा है। मैं इतना कहूंगा कि ये मामला जो बेहद कठोर हो गया है, इसके पीछे कौन लोग हैं, क्या कोई ऐसे तत्व हैं, जो इसका समाधान नहीं होने देना चाहते, इसकी जांच होनी चाहिए।’

 - Satya Hindi

‘क़ानूनों को मिल रहा समर्थन’

यह पूछने पर कि किसानों के एक समूह में इन क़ानूनों को लेकर जो बेचैनी है, संघ उसका अंदाजा नहीं लगा सका, इस पर जोशी ने कहा, ‘यह हमारा नहीं सरकार का काम है। लेकिन हम देख रहे हैं कि आंदोलन को देश के बाक़ी हिस्सों से समर्थन नहीं मिल रहा है। गुजरात, मध्य प्रदेश और कई जगहों पर किसान इन क़ानूनों के समर्थन में आगे आए हैं। आंदोलन कर रहे किसानों में भी कुछ लोग कृषि क़ानूनों के समर्थन में हैं। इसलिए आंदोलन के भीतर ही दो तरह के विचार हैं।’ 

जोशी ने कहा कि सरकार को ही इसका हल निकालना होगा लेकिन मुझे नहीं लगता कि किसी भी देश में क़ानून को रद्द किया जाता होगा। उन्होंने कहा कि हम यह चाहते हैं कि आंदोलन जल्द ख़त्म हो।

बीजेपी को हो रहा राजनीतिक नुक़सान 

किसान आंदोलन के कारण हरियाणा और पंजाब में बीजेपी के नेताओं का जबरदस्त विरोध हो रहा है। शिरोमणि अकाली दल और हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी एनडीए का साथ छोड़कर जा चुकी हैं और हरियाणा में सरकार में शामिल जेजेपी पर बाहर निकलने को लेकर दबाव है। ऐसे में बीजेपी और मोदी सरकार भी चाहते हैं कि इस आंदोलन का हल जल्द निकले और इसीलिए सरकार ने इन क़ानूनों को डेढ़ साल तक लागू नहीं करने का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा है। 

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