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संघ-मुस्लिम नेताओं की फिर बैठक, पर रवैया क्यों नहीं बदलता

संघ-मुस्लिम नेताओं की फिर बैठक, पर रवैया क्यों नहीं बदलता

आरएसएस के तीन प्रमुख नेताओं ने मुस्लिम लीडरशिप के साथ फिर बैठक की है। संघ मुसलमान नेताओं से संपर्क की कोशिश में रहता है लेकिन अगले दिन डीएनए को लेकर बहस छेड़ देता है। कौन लोग हैं जो बातचीत कर रहे हैं और क्या उससे दोनों समुदायों के बीच कोई पुल बनेगा।

आरएसएस का मुस्लिम प्रेम रह-रह कर जाग उठता है। आरएसएस के तीन नेताओं ने एक दिन पहले मुस्लिम लीडरशिप से तीन घंटे तक बंद कमरे में बात की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाल के भाषण और आरएसएस की इन तमाम कोशिशों के बीच में कोई कड़ी जरूर जुड़ती है।

द हिन्दू अखबार की 26 जनवरी को प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं इंद्रेश कुमार, राम लाल और कृष्ण गोपाल ने हाल ही में दिल्ली के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग के आवास पर मुस्लिम नेतृत्व के साथ तीन घंटे की बंद कमरे में बैठक की।

इस बैठक में कुछ मुस्लिम संगठनों जमात-ए-इस्लामी हिंद, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अलावा अजमेर दरगाह के सलमान चिश्ती के प्रतिनिधि शामिल थे। यह बैठक पिछले साल अगस्त में पिछली बातचीत की अगली कड़ी थी। उस बैठक में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने जंग के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी, होटल व्यवसायी सईद शेरवानी, पत्रकार और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी से मुलाकात की थी। ये सभी लोग इस बार की बैठक में भी मौजूद थे।

द हिन्दू की रिपोर्ट में कहा गया कि आरएसएस महसूस करता है कि "लगातार संवाद" से देश में "एक बड़ा पॉजिटिव संदेश" जाता है और इसे समय-समय पर भेजा जाना चाहिए। आरएसएस के तीनों नेताओं ने भागवत के हालिया इंटरव्यू के बारे में मुस्लिम डर को दूर करने की भी कोशिश की। जिसमें उन्होंने मुस्लिम समुदाय की "सर्वोच्चता की उग्र बयानबाजी" के बारे में टिप्पणी की थी।

इससे पहले शाहिद सिद्दीकी के घर पर हुई बैठक में मुस्लिम लीडरशिप ने अरशद मदनी, महमूद मदनी और सदातुल्लाह हुसैनी सहित मुस्लिम संगठनों के शीर्ष नेताओं को बातचीत के लिए आरएसएस नेताओं के पास भेजने का प्रस्ताव रखा गया था लेकिन उस प्रस्ताव को अनौपचारिक बैठक में खारिज कर दिया गया।

उस बैठक में शामिल एक नेता ने द हिन्दू से कहा- ऐसा महसूस किया गया कि अभी इस स्तर पर उलेमा और मौलाना नहीं, बल्कि मुस्लिम संगठनों के अध्यक्ष ही आरएसएस के प्रतिनिधियों से मिलें। नतीजतन, मलिक मोहतसिम खान ने जमात का प्रतिनिधित्व किया, जबकि जमीयत के दो गुटों का प्रतिनिधित्व आरएसएस की बातचीत में नियाज फारुकी और फजलुर रहमान ने किया।

ताजा बैठक के बारे में उस नेता ने कहा- बातचीत जारी रखने की जरूर महसूस की गई। दोनों पक्षों की ओर से इस पर आम सहमति थी। अब ऐसा लगता है कि मुस्लिम संगठनों के नेता आरएसएस और मुस्लिम समुदाय के बीच की गलतफहमियों को दूर करने के लिए पुल का काम करेंगे। बैठक के बारे में पत्रकार शाहिद सिद्दीकी ने कहा- 

हां, हम कुछ महीने पहले मोहन भागवत से मिले थे और हाल ही में उनके तीन शीर्ष नेताओं से मिले। मुसलमानों के मुद्दों और नफरत फैलाने वालों पर बातचीत हुई। हम उन लोगों के साथ जुड़ने में विश्वास रखते हैं, जिनसे हम असहमत हैं। लेकिन हम मुस्लिम समुदाय और आरएसएस के बीच पुल बना सकते हैं या नहीं, इसे लेकर आश्वस्त नहीं हैं।


- शाहिद सिद्दीकी, पत्रकार, 26 जनवरी 2023, सोर्सः द हिन्दू

नजीब जंग ने इस बैठक के बारे में बताया कि पिछले साल सरसंघचालक (आरएसएस प्रमुख) के साथ शुरू हुई बातचीत को जारी रखने की जरूरत थी। यह एक स्वागत योग्य अभियान है। अगर भारत को तरक्की करनी है तो 20% आबादी (मुस्लिम) को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता है।

मोहतमिम खान के मुताबिक मुस्लिम लीडरशिप ने "सरकारी एजेंसियों द्वारा छापे" के मामलों के अलावा "कानून व्यवस्था के मुद्दे भी उठाए।" हमने बुलडोजर राजनीति की बात की। हमने हाल ही में असम, इलाहाबाद, खरगोन और हल्द्वानी में जो हुआ उसका जिक्र किया, जहां मुस्लिम घरों पर बुलडोज़र चला दिया गया था। इस बैठक में आरएसएस नेताओं ने कहा कि कार्रवाई देश के कानून के अनुसार थी। 

बैठक में मुस्लिम प्रतिनिधियों ने संघ के नेताओं से कहा कि बुलडोजर कार्रवाई से पहले अदालत जाने की सामान्य प्रक्रिया का पालन तक नहीं किया गया। अखलाक, पहलू खान और जुनैद के लंबे समय से लंबित लिंचिंग मामलों में कार्रवाई की मांग की गई जो केस 2015 की शुरुआत से ही चल रहे हैं। आरएसएस नेताओं ने लिंचिंग को "गलत" माना, लेकिन कहा, "गाय के साथ हिंदू भावनाएं जुड़ी हुई हैं।" काशी और मथुरा की मस्जिदों का भी जिक्र हुआ। मुस्लिम प्रतिनिधियों ने एक भी मस्जिद देने में असमर्थता व्यक्त की और न्यायिक प्रक्रिया में अपना विश्वास दोहराया।

आरएसएस और मोदी

हाल ही में हुई बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पीएम मोदी ने बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को मुसलमानों और फिल्मों के खिलाफ गैरजरूरी बयानबाजी बंद करने को कहा था। मोदी ने कहा था कि बीजेपी कार्यकर्ता पसमांदा, बोहरा और पढ़े-लिखे मुसलमानों से संवाद करें। भले ही समुदाय के सदस्य बीजेपी को वोट न दें। पीएम मोदी ने मुसलमानों के प्रति घृणास्पद भाषण देने या किसी भी फिल्म को टारगेट करने से रोकने के लिए भी कहा। मोदी ने यह बयान फिल्म पठान के संदर्भ दिया था, जिसे बीजेपी और आरएसएस के संगठन टारगेट कर रहे थे। भोपाल से बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सहित दक्षिणपंथी लोग पठान की अक्सर आलोचना करते पाए गए।

 - Satya Hindi

आरएसएस का रवैया

मुसलमानों को लेकर आरएसएस का रवैया कभी बहुत स्पष्ट सामने नहीं आ पाया। संघ प्रमुख एक दिन किसी मस्जिद में जाते हैं और अगले दिन हमारा-तुम्हारा डीएनए एक जैसा बयान देते हैं। फिर वो मुस्लिम नेताओं से संवाद करने के इरादे से मिलते हैं लेकिन फिर भागवत का बयान आता है कि मुस्लिम खुद को बढ़ाचढ़ा कर पेश करने की उग्र भाषा से बचें। यहां तक कि ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष उमैर इलियासी ने भागवत को राष्ट्रपिता जैसे तमगे से भी नवाजा लेकिन संघ का रवैया नहीं बदला।  आरएसएस के अन्य नेताओं के बयानों और विचारों में यह विरोधाभास देखा जा सकता है। आरएसएस समर्थक टीवी चैनल लव जिहाद, जमीन जिहाद, कोरोना जिहाद, आईएएस जिहाद जैसे उग्र कार्यक्रम दिखाते हैं। जिनका तथ्यों से कुछ भी लेना देना नहीं होता है। 

मुस्लिम लीडरशिप इस मामूली सी बात को नहीं समझ पा रही है कि आरएसएस और बीजेपी विशुद्ध रूप से हिन्दुत्व की राजनीति करते हैं। 20 फीसदी आबादी से कभी भी 80 फीसदी आबादी को खतरा नहीं होता, लेकिन इसके बावजूद हिन्दू धर्म को खतरे में बताया जाता है। इसलिए संघ मुस्लिम लीडरशिप से चाहे जितना संवाद करे, नतीजा शून्य ही रहना है।

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