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अयोध्या फ़ैसले पर न जीत का जश्न मनाएँ, न हार का हाहाकार मचाएँ : बीजेपी

अयोध्या फ़ैसले पर न जीत का जश्न मनाएँ, न हार का हाहाकार मचाएँ : बीजेपी

हिन्दुओं के पक्ष में निर्णय आने पर ही सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को मानने की बात कहने वाली बीजेपी, आरएसएस और विहिप अब कह रही हैं कि हर कोई फ़ैसला स्वीकार कर ले, चाहे वह कुछ भी हो। 

राम मंदिर-बाबरी मसजिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दू परिषद परिपक्वता और संयम दिखा रहे हैं। वे अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों से बार-बार अपील कर रहे हैं कि फ़ैसला कुछ भी हो, इसे स्वीकार कर लेना है और उसके बाद किसी तरह की भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं देनी है।

इन संगठनों ने अपने कार्यकर्ताओं को भड़काऊ बयान देने से बचने की सलाह दी है और अपील की है कि वे किसी तरह के उकसावे में न आएँ। इसकी वजह यह है कि फ़ैसला जल्द ही होने वाला है और निर्णय कुछ भी हो, कुछ लोग इससे नाराज़ होंगे तो कुछ खुश। 

संघ-विहिप का रवैया बदला!

आरएसएस  के प्रमुख मोहन भागवत ने खुले आम कहा था कि 'लोगों की भावना दुनिया की किसी भी अदालत से ऊपर है' और 'सुप्रीम कोर्ट को ऐसा फ़ैसला नहीं देना चाहिए जिसे लागू करना मुश्किल हो।' लेकिन इन दोनों संगठनों ने बीते दिनों अपने समर्थकों से कहा है कि अदालत का फ़ैसला चाहे जो हो, स्वीकार कर लें। 

यह संघ-बीजेपी के पहले के रवैये और बयान से उलट है। पहले विश्व हिन्दू परिषद कहती थी कि वह अदालत का फ़ैसला तभी स्वीकार करेगी जब वह हिन्दुओं के पक्ष में हो।

आरएसएस  के प्रमुख मोहन भागवत ने खुले आम कहा था कि 'लोगों की भावना दुनिया की किसी भी अदालत से ऊपर है' और 'सुप्रीम कोर्ट को ऐसा फ़ैसला नहीं देना चाहिए जिसे लागू करना मुश्किल हो।' लेकिन इन दोनों संगठनों ने बीते दिनों अपने समर्थकों से कहा है कि अदालत का फ़ैसला चाहे जो हो, स्वीकार कर लें। 

क्या कहा नक़वी ने

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुख़्तार अब्बास नक़वी ने मंगलवार को हिन्दू और मुसलिम पक्ष के कई वरिष्ठ लोगों को अपने यहाँ बुलाया और इस मुद्दे पर संयम बरतने की अपील की। उन्होंने ख़ुद अपील करते हुए कहा : 

कहीं पर भी जीत का जुनूनी जश्न और हार का हाहाकारी हंगामा नहीं होना चाहिए, उससे बचना चाहिए।


मुख़्तार अब्बास नक़वी, केंद्रीय मंत्री, अल्पसंख्यक मामले

इस बैठक में आरएसएस के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल, बीजेपी के प्रवक्ता शहनवाज़ हुसैन, जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के महासचिव महमूद मदनी और फ़िल्मकार मुज़फ्फ़र अली भी मौजूद थे। इसके अलावा ऑल इंडिया मुसलिम पर्सल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फ़ारूक़ी, सांसद शाहिद सिद्दिक़ी और शिया धर्मगुरु कल्बे जव्वाद ने भी इस बैठक में शिरकत की थी। 

इस बैठक के पहले अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सैयद गयरुल हसन रिज़वी ने इकनॉमिक टाइम्स से कहा था : 

यह हिन्दू-बहुल देश है और राम मंदिर आस्था का प्रतीक है, मुसलमानों को इस मामले को मंदिर-मसजिद के मामले से आगे निकल कर सोचना होगा।


सैयद गयरुल हसन रिज़वी, अध्यक्ष, अल्पसंख्यक आयोग

मिलाद-उन-नबी का इंतजार

आरएसएस के वरिष्ठ नेता पैगंबर मुहम्मद के जन्मदिन मिलाद-उन-नबी के पहले इस मुद्दे पर एक बार फिर मुसलमान नेताओं से मिलेंगे। मिलाद का त्योहार 10 नवंबर को है और उस दिन इमाम और दूसरे इसलामी धर्मगुरु आम मुसलमानों को सम्बोधित करते हैं। समझा जाता है कि इन धर्मगुरुओं से यह आग्रह किया जाएगा कि वे मिलाद के मौके पर आम मुलमानों से कहें कि संयम बरतें, किसी तरह के उकसावे में न आएँ और किसी तरह की भड़काऊ बातें न करें, अदालत का फ़ैसला चाहे जो हो। 

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला 15 नवंबर के आसापास आ सकता है। 

यह महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि इसके पहले खबर आयी थी यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ज़ुफ़र अहमद फ़ारुक़ी ने सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता पैनल को अयोध्या मामले पर बने एक फ़ार्मूले को स्वीकार कर लिया है। इस फ़ार्मूले के हिसाब से मुसलिम पक्ष बाबरी मसजिद से जुड़ी विवादास्पद ज़मीन पर अपना दावा छोड देंगे। इसके बदले में कही और मसजिद बनाने के लिये ज़मीन दी जायेगी। इसके साथ ही अयोध्या  स्थित 22 दूसरी मसजिदों को सुरक्षा दी जायेगी। और 1991 के अधिग्रहण कानून के हिसाब से राम मंदिर के लिये ज़मीन का अधिग्रहण किया जायेगा।

लेकिन, सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील ज़फ़रयाब जिलानी ने सत्य हिन्दी के साथ ख़ास बातचीत में कहा कि अब किसी प्रस्ताव का कोई अर्थ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवायी पूरी हो गयी है और अब फ़ैसले का इंतज़ार है।

दूसरे मुसलिम पक्षकार एम सिद्दीक़ी के वकील एजाज़ मक़बूल ने भी सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के दावे को सिरे से खारिज कर दिया था। उन्होंने एनडीटीवी से कहा है कि सुप्रीम कोर्ट गठित मध्यस्थता समिति को दिए गए वक़्फ़ बोर्ड के प्रस्ताव को बोर्ड के अलावा सभी मुसलिम दावेदार खारिज करते हैं। जमिअत-ए-उलेमा-ए-हिंद के मदनी घटक ने भी बोर्ड के दावे पर नाराज़गी जताई थी। 

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