रोहित वेमुला मामले में पुलिस रिपोर्ट पर उठे सवाल, डीजीपी ने कहा- फिर से जांच होगी
हैदराबाद विश्वविद्यालय के 26 वर्षीय छात्र रोहित वेमुला की 17 जनवरी, 2016 को मृत्यु हो गई थी। पिछली बीआरएस सरकार के समय इस मामले की जांच हुई थी, लेकिन उसकी जांच रिपोर्ट अब लोकसभा चुनाव के दौरान सार्वजनिककी गई है। तेलंगाना पुलिस ने रोहित वेमुला को दलित मानने से इनकार कर दिया है। अदालत में सौंपी अपनी रिपोर्ट में पुलिस ने दावा किया है कि वह दलित नहीं थे। अब खुद तेलंगाना के डीजीपी रवि गुप्ता ने इस रिपोर्ट पर शक जताते हुए कहा कि इस मामले की फिर से जांच कराई जाएगी।
तेलंगाना के डीजीपी रवि गुप्ता ने कहा कि "रिपोर्ट में कुछ संदेह हैं। कई विसंगतियां हैं। हम अदालत से मामले को देखने का अनुरोध करेंगे। पुलिस भी इस मामले की फिर से जांच करेंगी।" डीजीपी ने कहा, "इस मामले की जांच सहायक पुलिस आयुक्त माधापुर ने की थी। मामले में अंतिम क्लोजर रिपोर्ट पिछले साल नवंबर 2023 से पहले की गई जांच के आधार पर तैयार की गई थी। लेकिन रिपोर्ट को 21 मार्च 2024 को जांच अधिकारी ने कोर्ट में पेश किया। और अब चुनाव में इसे सार्वजनिक किया गया। इस रिपोर्ट के बारे में पुलिस के उच्चाधिकारियों को जानकारी नहीं दी गई। जबकि यह हाईप्रोफाइल केस था, रिपोर्ट की जानकारी उच्चाधिकारियों को दी जानी चाहिए थी। हम इसका पता लगाएंगे।" डीजीपी के बयान से कई बातें साफ हैंः
- 1. जांच रिपोर्ट पिछले साल यानी बीआरएस सरकार के कार्यकाल में तैयार हो गई थी। उसी के समय में यह जांच टीम भी बनी थी। लेकिन रिपोर्ट को रोका गया और अब लोकसभा चुनाव के दौरान सार्वजनिक किया गया। यहां सवाल यह बनता है कि ऐसा करने से फायदा किसे हुआ। किस को टारगेट करने के लिए इस रिपोर्ट को रोका गया।
- 2. जांच के दायरे में वो बातें थीं कि आखिर किन परिस्थितियों में हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला ने खुदकुशी की। जांच इस पर नहीं होनी थी कि रोहित वेमुला दलित थे या नहीं। किसी भी मजहब या जाति का कोई भी छात्र अपने अधिकारों को नहीं पाने पर आवाज उठाता है तो क्या पुलिस जांच उसके जाति पर होगी कि वो किस जाति का था।
- 3. रोहित वेमुला के खिलाफ मुख्य शिकायत आरएसएस से संबद्ध छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने की थी। उसके बाद रोहित के साथ यूनिवर्सिटी प्रशासन ने तमाम गलत कार्रवाईयां कीं। उनकी स्कॉलरपिशप बंद कर दी गई। उन्हें हॉस्टल से निकलने पर मजबूर किया गया। पुलिस ने इस मामले में एबीवीपी की भूमिका की जांच क्यों नहीं की। एबीवीपी से जुड़े छात्र नेताओं के वीडियो बयानों को पुलिस ने क्यों नहीं खंगाला, उनको अपनी जांच रिपोर्ट का हिस्सा क्यों नहीं बनाया।
- 4. पिछली केसीआर सरकार यानी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने 20218 में इसकी पुलिस जांच का आदेश दिया था। पांच वर्षों तक इस मामले की जांच की गई और नवंबर 2023 में इसी जांच रिपोर्ट पेश की गई। दिसंबर 2023 में तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार बन गई। लेकिन इस जांच रिपोर्ट को अब लोकसभा चुनाव के दौरान सार्वजनिक किया गया। तेलंगाना के आला पुलिस अफसरों को इस रिपोर्ट की भनक तक नहीं थी और न उन्हें जानकारी दी गई। इसका सीधा सा मतलब क्या यह नहीं है कि तेलंगाना पुलिस में बड़े पैमाने पर आरएसएस-भाजपा समर्थक लोग भर दिए गए हैं और वे तमाम मामलों को इस तरह प्रभावित कर रहे हैं। जिसका पहला नमूना सामने भी आ गया। क्या ऐसे पुलिस वालों की तेलंगाना सरकार छानबीन कराएगी।
इस केस में रोहित वेमुला के भाई राजा वेमुला ने जो बयान दिया है वो महत्वपूर्ण है। जिला कलेक्टर को परिवार की अनुसूचित जाति (एससी) स्थिति पर निर्णय लेना होता है। क्या पुलिस जांच अधिकारी ने जिला कलेक्टर का कोई बयान या दस्तावेज प्राप्त किया। बता दें कि भारत में यह सामान्य नियम है कि जाति प्रमाणपत्र जिला अधिकारी ही जारी करते हैं। अलग-अलग राज्यों में इस पद को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे पंजाब-हरियाणा में इस पद को डीसी कहा जाता है। जिसका अर्थ है डिप्टी कमिश्नर। यूपी में जिला अधिकारी कहा जाता है। जिन्हें मैजिस्ट्रेट पावर मिली होती है, इसलिए डीएम भी कहा जाता है।
राजा वेमुला ने कहा- “क्लोजर रिपोर्ट से परिवार सदमे में है। तेलंगाना पुलिस की ज़िम्मेदारी यह जांच करना थी कि क्या मेरे भाई को इस हद तक परेशान किया गया कि उसने अपनी जान दे दी। इसके बजाय, वे फिर से उसकी जाति पर चले गए। हम इस मामले में चुप नहीं बैठेंगे, हम लड़ने जा रहे हैं।”
पुलिस ने 2016 में आत्महत्या के लिए उकसाने और एससी और एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था। आरोपियों में सिकंदराबाद के तत्कालीन सांसद और अब हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, एमएलसी एन. रामचंदर राव और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी- सभी भाजपा नेता थे। इनके साथ ही हैदराबाद विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति पी अप्पा राव को भी आरोपी बनाया गया था। एबीवीपी ने कुलपति से लिखित शिकायत की थी। इसके बाद रोहित वेमुला के साथ चार अन्य छात्रों को यूनिवर्सिटी से निलंबित कर दिया गया। एबीवीपी की शिकायत पर कार्रवाई के लिए बंडारू दत्तात्रेय, स्मृति ईरानी और रामचंदर राव पर यूनिवर्सिटी प्रशासन पर दबाव बनाने का आरोप है। इन लोगों ने एबीवीपी के समर्थन में दबाव बनाते हुए यूनिवर्सिटी के वीसी को चिट्ठियां लिखी थीं। पुलिस जांच रिपोर्ट में इन लोगों की भूमिका पर कुछ नहीं कहा गया है। पुलिस जांच इस पूरे मुद्दे पर ही मौन है।
रोहित वेमुला और उनके साथी आंबेडकर छात्र संघ के बैनर तले यूनिवर्सिटी में आंदोलन चला रहे थे। एबीवीपी, बंडारू दत्तात्रेय, स्मृति ईरानी और राव के दबाव पर इन लोगों को न सिर्फ यूनिवर्सिटी से निलंबित किया गया, बल्कि इन्हें हॉस्टल से भी निकाल दिया गया। इसके बाद ये लोग भूख हड़ताल पर बैठ गए। रोहित वेमुला ने खुदकुशी करते हुए जो स्यूसाइड नोट छोड़ा था, उसी से सारी बातें साफ हो जाती हैं। इसमें उन्होंने एक दलित छात्र के संघर्ष का वर्णन किया था, और एक दलित के रूप में अपने जन्म को एक घातक दुर्घटना बताया था। रोहित वेमुला की मां और भाई ने पिछले दिनों बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। इसी आधार पर पुलिस जांच अधिकारियों ने यह मान लिया कि रोहित वेमुला का परिवार दलित नहीं था और बाद में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। लेकिन इन लोगों को शायद यह नहीं मालूम है कि डॉ अंबेडकर ने भी बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। इसी तरह कांशीराम और मायावती ने भी बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। क्यों इन लोगों के बौद्ध धर्म स्वीकार करने से ये लोग दलित नहीं रहे। ज्यादातर दलित बौद्ध धर्म को ही स्वीकार करते हैं। दरअसल, यह साफ हो गया है कि तेलंगाना के कुछ पुलिस अफसरों ने पूरे मामले में खेल किया है। यह दलितों के खिलाफ कुत्सित मानसिकता का नतीजा है।
छात्रों का प्रदर्शन
हैदराबाद में कई छात्र संगठन इस पुलिस जांच रिपोर्ट का विरोध कर रहे हैं। अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एएसए) के अध्यक्ष एस नरेश ने कहा, “छात्र इस रिपोर्ट से उत्तेजित हैं, और मौजूदा विरोध प्रदर्शन का मकसद देश के अन्य विश्वविद्यालयों से इस बारे में समर्थन जुटाना है। इससे पहले हमें जेएनयू से समर्थन मिला था और अब फिर से आंदोलन में शामिल होने की संभावना है।''स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के उपाध्यक्ष पीके ऋषिकेश ने कहा, “साइबराबाद पुलिस द्वारा जारी की गई क्लोजर रिपोर्ट से हम निराश और परेशान हैं। हम पुलिस रिपोर्ट की निंदा करते हैं और मामले की गहन जांच की मांग करते हैं क्योंकि 2016 में मामला दर्ज होने के बावजूद इंसाफ नहीं मिला है। हमारी मांग है कि रोहित की मौत के लिए उन तमाम लोगों को जिम्मेदार ठहराया जाए जो इसमें आरोपी थे।''
हैदराबाद में विरोध प्रदर्शन, नॉर्थ शॉपिंग कॉम्प्लेक्स से शुरू होकर, मुख्य प्रवेश द्वार तक पहुंचा, जिसमें छात्र समूह बैनर लिए हुए थे और इंसाफ की मांग करते हुए रोहित वेमुला के लिए नारे लगा रहे थे। हैदराबाद विश्वविद्यालय (यूओएच) परिसर में शुक्रवार देर शाम लगभग 200 छात्रों के एकत्र होने के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ था। छात्र संघों ने पक्षपातपूर्ण जांच के लिए साइबराबाद पुलिस की आलोचना करते हुए मामले को फिर से खोलने की मांग की।