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अजीबोगरीब! नफरती 'धर्म संसद' के लिए मुसलिमों की ही गिरफ़्तारी की मांग

अजीबोगरीब! नफरती 'धर्म संसद' के लिए मुसलिमों की ही गिरफ़्तारी की मांग

हरिद्वार धर्म संसद में कथित तौर पर मुसलिमों के नरसंहार की बात कहना नफरती भाषण नहीं है और यह गैर-हिंदुओं के हमले की सिर्फ़ एक प्रतिक्रिया है? जानिए, सुप्रीम कोर्ट में क्या अपील की गई है।

हरिद्वार में धर्म संसद और दिल्ली की धार्मिक सभा में नफ़रती भाषण के लिए क्या मुसलिम नेता ज़िम्मेदार हैं? क्या इसके लिए मुसलिम नेताओं की गिरफ़्तारी की जानी चाहिए? चौंकिए नहीं! दक्षिणपंथी समूहों ने ये आरोप लगाए हैं। उन्होंने ये आरोप भी किसी सोशल मीडिया पर पोस्ट से या किसी ऐसी-वैसी जगह नहीं लगाए हैं, बल्कि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है। उन्होंने अदालत से अपील की है कि नफ़रती भाषण के लिए मुसलिम नेताओं को गिरफ़्तार किया जाए।

जिस हरिद्वार धर्म संसद में कथित तौर पर मुसलिमों के नरसंहार के नफ़रती भाषण वाले मामले ने झकझोर दिया, उस मामले में दक्षिणपंथी समूहों के ये आरोप भी कम झकझोरने वाले नहीं लगते हैं। यह अजीबोगरीब मामला है। अजीबोगरीब इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट में नफ़रती भाषण के लिए मुसलिमों को ज़िम्मेदार ठहराने के लिए तर्क ही कुछ ऐसे दिए गए हैं।

दो दक्षिणपंथी समूहों ने हरिद्वार और दिल्ली में धार्मिक सभाओं में नफ़रती भाषणों के ख़िलाफ़ लगाई गई याचिका का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जवाबी अपील दायर की है। दोनों संगठनों ने अदालत से उन्हें मामले में पक्षकार बनाने की अपील की है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, अपील में हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने मांग की है कि मुसलिम नेताओं को उनके नफ़रती भाषणों के लिए गिरफ्तार किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट में दी गई अपील में कहा गया है कि धर्म संसद में धार्मिक नेताओं के बयान ग़ैर-हिंदुओं द्वारा हिंदू संस्कृति पर हमलों की प्रतिक्रिया में थे, और इसलिए इसकी व्याख्या नफ़रती भाषण के रूप में नहीं की जा सकती है।

अपील में कहा गया है, 'हिंदुओं के आध्यात्मिक नेताओं को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है... याचिकाकर्ता मुसलिम समुदाय से है और हिंदू धर्म संसद से संबंधित मामलों या गतिविधियों के ख़िलाफ़ आपत्तियाँ नहीं उठा सकता है।' 

पत्रकार कुर्बान अली और पटना उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रकाश ने हरिद्वार और दिल्ली में नफरत भरे भाषणों के ख़िलाफ़ अपील दायर की है।

वैसे, हरिद्वार धर्म संसद में इस्तेमाल की गई नफ़रती भाषण से पूरे देश में ग़ुस्सा है और इसके ख़िलाफ़ सभी धर्म के लोगों ने आवाज़ उठाई है। हरिद्वार 'धर्म संसद' में नफ़रती भाषण के ख़िलाफ़ सेना के पाँच पूर्व प्रमुखों, बड़े नौकरशाहों और एक्टिविस्टों ने तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के नाम खुला ख़त भी लिखा था। 

खुला ख़त लिखने वालों में पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल लक्ष्मीनारायण रामदास,  एडमिरल विष्णु भागवत, एडमिरल अरुण प्रकाश व एडमिरल आरके धवन, पूर्व सेना प्रमुख एयर चीफ़ मार्शल एसपी त्यागी और कई सेना के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी, पूर्व आईपीएस अधिकारी जूलियो रिबेरो, राजमोहन गांधी, नजीब जंग, अरुणा रॉय, कई पूर्व वरिष्ठ अधिकारी, लेखक, कार्यकर्ता, शोधकर्ता आदि शामिल थे।

नफ़रती बयानबाज़ी के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट के 76 ऐसे वकीलों ने भी सीजेआई एनवी रमना को चिट्ठी लिखी थी और उनसे धर्म संसद और दिल्ली में भी आयोजित हुए ऐसे ही कार्यक्रम का संज्ञान लेने को कहा था। यह चिट्ठी दुष्यंत दवे, प्रशांत भूषण, वृंदा ग्रोवर, सलमान खुर्शीद, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रकाश सहित कई नामी वकीलों ने लिखी।

बहरहाल, अब सुप्रीम कोर्ट में की गई अपील में हिंदू सेना के अध्यक्ष ने यह भी मांग की है कि एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और वारिस पठान जैसे अन्य मुसलिम नेताओं को नफ़रती भाषण देने का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार किया जाए।

एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, एक अन्य संगठन हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने तर्क दिया कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रती भाषणों की जांच करने के लिए सहमत हो गया है, इसलिए उसे हिंदुओं के ख़िलाफ़ नफ़रती भाषणों की भी जाँच करनी चाहिए। अपनी अपील में उसने हिंदुओं के ख़िलाफ़ कथित नफ़रती भाषणों के 25 उदाहरणों का हवाला दिया है।

बता दें कि हरिद्वार धर्म संसद के मामले में उत्तराखंड पुलिस ने यति नरसिंहानंद और जितेंद्र नारायण त्यागी (जो अपने धर्मांतरण से पहले वज़ीम रिज़वी थे) को गिरफ्तार किया है। ये दोनों न्यायिक हिरासत में हैं। उस नफ़रती 'धर्म संसद' के मामले में सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है।

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