अडानी हिंडनबर्ग मुद्दा शांत क्यों नहीं हो रहा? जानें अब सेबी जाँच में क्या आया
अडानी की कंपनियों में विदेशी निवेश को लेकर क्या नियमों की धज्जियाँ उड़ायी गई थीं? रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार सेबी की रिपोर्ट से ही इसके संकेत मिले हैं। रिपोर्ट के अनुसार बाजार नियामक सेबी को पता चला है कि अडानी की कंपनियों में निवेश करने वाले 12 विदेशी फंड ने डिस्क्लोजर नियमों का उल्लंघन किया था और निवेश की सीमा से ज़्यादा निवेश किया था।
रायटर्स ने ख़बर दी है कि मामले की सीधी जानकारी रखने वाले कम से कम दो लोगों ने इसकी पुष्टि की है। उन्होंने नाम बताने से इनकार कर दिया क्योंकि वे मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं थे। इस रिपोर्ट पर ईमेल से प्रतिक्रिया मांगने के बाद भी सेबी की तरफ़ से जवाब नहीं दिया गया है।
सेबी की ओर से यह उन विदेशी निवेश फंडों को लेकर की गई पड़ताल में सामने आया है जिसको लेकर पिछले साल सवाल उठे थे। तब रिपोर्ट आई थी कि सेबी को पता चला था कि सूचीबद्ध फर्मों द्वारा निवेश को लेकर पूरा खुलासा नहीं कर नियमों के उल्लंघन किया गया था। इसके अलावा सेबी यह पता लगाने के लिए अडानी समूह और एक फंड के बीच संबंधों की जांच कर रहा था कि क्या समूह के प्राथमिक शेयरधारकों के साथ संभावित समन्वय था। इस पर पहले ऐसा आरोप लगा था, लेकिन अडानी समूह ने पहले इन आरोपों को खारिज कर दिया था।
रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि इस साल की शुरुआत में सेबी ने अडानी समूह से जुड़े बारह विदेशी निवेशकों को नोटिस जारी किया था, जिसमें आरोपों की जानकारी दी गई थी। इसमें डिस्क्लोजर नियमों के उल्लंघन और तय सीमा से ज़्यादा निवेश पर सफाई देने को कहा गया था।
रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि इनमें से आठ ऑफशोर फंडों ने नियामक को एक लिखित अनुरोध दिया है, जिसमें अपराध कबूल किए बिना जुर्माना देकर आरोपों को निपटाने की मांग की गई है।
द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, अल्बुला इन्वेस्टमेंट फंड, क्रेस्टा फंड, एमजीसी फंड, एशिया इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन (मॉरीशस), एपीएमएस इन्वेस्टमेंट फंड, एलारा इंडिया अपॉर्चुनिटीज फंड, वेस्पेरा फंड और एलटीएस इन्वेस्टमेंट फंड का प्रतिनिधित्व करने वाली कानूनी टीमों ने सामूहिक रूप से सेबी को 16 आवेदन दिए कि इसका निपटारा कर दिया जाए।
नियामक ने जांच के लिए कुल 13 विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों पर ध्यान केंद्रित किया। फिर भी जांच में रुकावट आई क्योंकि सेबी को इन निवेशकों के अंतिम लाभकारी मालिकों और अडानी समूह के साथ उनके संभावित संबंधों की पहचान करने में मुश्किलें आईं।
बता दें कि अडानी समूह में निवेश को लेकर तब सवाल उठने लगे और कथित तौर पर नियम उल्लंघन की रिपोर्टें आने लगीं जब अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने पिछले साल 24 जनवरी की एक रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर स्टॉक में हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी का आरोप लगाया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि उसने अपनी रिसर्च में अडानी समूह के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों सहित दर्जनों व्यक्तियों से बात की, हजारों दस्तावेजों की जांच की और इसकी जांच के लिए लगभग आधा दर्जन देशों में जाकर साइट का दौरा किया।
हिंडनबर्ग अमेरिका आधारित निवेश रिसर्च फर्म है जो एक्टिविस्ट शॉर्ट-सेलिंग में एक्सपर्ट है। रिसर्च फर्म ने कहा था कि उसकी दो साल की जांच में पता चला है कि अडानी समूह दशकों से 17.8 ट्रिलियन (218 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के स्टॉक के हेरफेर और अकाउंटिंग की धोखाधड़ी में शामिल था।
फर्म की रिपोर्ट के मुताबिक़ अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी ने पिछले तीन सालों के दौरान लगभग 120 अरब अमेरिकी डॉलर का लाभ अर्जित किया जिसमें से अडानी समूह की सात प्रमुख सूचीबद्ध कंपनियों के स्टॉक मूल्य की बढ़ोतरी से 100 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक कमाये। इसमें पिछले तीन साल की अवधि में 819 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में कैरेबियाई देशों, मॉरीशस और संयुक्त अरब अमीरात तक फैले टैक्स हैवन देशों में अडानी परिवार के नियंत्रण वाली मुखौटा कंपनियों का कथित नेक्सस बताया गया था।
इसके बारे में दावा किया गया कि इनका इस्तेमाल भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और करदाताओं की चोरी को सुविधाजनक बनाने के लिए किया गया। जबकि धन की हेराफेरी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों से की गई थी। हालाँकि अडानी समूह ने इन आरोपों का बार-बार खंडन किया है।
हिंडनबर्ग रिसर्च के इस आरोप पर अडानी समूह ने कहा था कि दुर्भावनापूर्ण, निराधार, एकतरफा और उनके शेयर बिक्री को बर्बाद करने के इरादे ऐसा आरोप लगाया गया। इसने कहा था कि अडानी समूह आईपीओ की तरह ही फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफ़र यानी एफ़पीओ ला रहा था और इस वजह से एक साज़िश के तहत कंपनी को बदनाम किया गया। यह रिपोर्ट अडानी समूह के प्रमुख अडानी एंटरप्राइजेज की 20,000 करोड़ रुपये की फॉलो-ऑन शेयर बिक्री से पहले आई थी। समूह ने फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर यानी एफपीओ को बाद में वापस ले लिया था।
हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद से अडानी कंपनियों के शेयरों की क़ीमतें धड़ाम गिरीं। एक समय तो अडानी की कंपनियों के शेयर के भाव तो आधे से भी कम हो गए थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया और जाँच आगे बढ़ती गई कंपनियों के शेयरों की स्थिति ठीक होती गयी।
पिछले साल मई महीने में अडानी समूह के आरोपों की जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ समिति ने कहा था कि यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है कि स्टॉक मूल्य हेरफेर के आरोपों पर नियामक विफल रहा है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पैनल ने प्रथम दृष्टया कोई गड़बड़ी नहीं पाई और एक तरह से 'क्लीन चिट' देते हुए कहा था कि अडानी समूह द्वारा कोई उल्लंघन नहीं किया गया है और यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं है कि बाजार नियामक सेबी की ओर से कोई नियामक विफलता थी।
हिंडनबर्ग के आरोपों की जाँच कर रहे विशेषज्ञों के पैनल ने कहा था कि पहली नज़र में ऐसा लगता है कि अडानी समूह की ओर से कीमतों में कोई हेरफेर नहीं किया गया है।
इस बीच द गार्जियन और तमाम विश्वसनीय मीडिया आउटलेट ने रिपोर्ट प्रकाशित की जिनमें आरोप लगाया गया कि अडानी समूह ने गंभीर वित्तीय धोखाधड़ी करते हुए अपना पैसा गुप्त रूप से अपने ही शेयरों में लगाया। यह रिपोर्ट नए दस्तावेजों के हवाले से आई थी। भारत के प्रमुख उद्योग समूह अडानी ने द गार्जियन और कुछ अन्य विदेशी मीडिया आउटलेट के उन आरोपों का खंडन किया, जिसमें उस पर घोटाले के आरोप लगाए गए।