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30 साल में सबसे पक्षपातपूर्ण 2019 का चुनाव, पूर्व नौकरशाहों ने कहा

30 साल में सबसे पक्षपातपूर्ण 2019 का चुनाव, पूर्व नौकरशाहों ने कहा

64 पूर्व वरिष्ठ नौकरशाहों ने आयोग को चिट्ठी लिख कर 2019 के लोकसभा चुनावों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इसे पिछले 30 साल में सबसे कम निष्पक्ष और विश्वसनीय चुनाव क़रार दिया है।

2019 के लोकसभा चुनाव की विश्वसनीयता पर मंगलवार को रिटायर्ड और वरिष्ठ नौकरशाहों ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इनका कहना है कि 2019 का लोकसभा चुनाव पिछले 30 साल में हुए चुनावों में सबसे कम निष्पक्ष और साफ़ सुथरा माना जा सकता है। इन लोगों का मानना है कि अतीत में अपराधियों, बाहुबलियोें और नेताओं की तमाम कोशिशों के बावजूद आयोग ने चुनाव कराने में अपने स्तर पर जितना मुमिकन था, चुनाव को निष्पक्ष और स्वतंत्र बनाने की कोशिश की। लेकिन इस चुनाव में यह धारणा बनी कि जिन संवैधानिक संस्थाओं पर निष्पक्ष चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी थी, उन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दरकिनार करने का काम किया है। अतीत में चुनाव आयोग की विश्वसनीयता, उनकी नीयत और योग्यता पर अपवाद स्वरूप ही सवाल खड़े किए गए। लेकिन मौजूदा चुनाव आयोग के बारे में यह बात नहीं कही जा सकती है। इन लोगों के मुताबिक़ यहाँ तक कि 2019 के चुनाव के दौरान आयोग की भूमिका पर पुराने चुनाव आयुक्तों ने भी दबी ज़ुबान में सवाल खड़े किए।

64 पूर्व वरिष्ठ नौकरशाहों ने आयोग को चिट्ठी लिख कर ये गंभीर आरोप लगाए हैं। चिट्ठी लिखने वालों में कई मुख्य सचिव, केंद्र सरकार में सचिव और अतिरिक्त और संयुक्त सचिव और राजदूत रह चुके हैं। इस चिट्ठी को 83 अन्य पूर्व नौकरशाहों, सेना के वरिष्ठ अधिकारियों और सिविल सोसाइटी के प्रबुद्ध लोगों, प्रोफेसरों ने समर्थन किया है। 12 पेज की इस चिट्ठी में सिलसिलेवार तरीके से घटनाओं का वर्णन किया गया है और गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं। इस चिट्ठी के पैराग्राफ़ 4 में साफ़ तौर पर कहा गया है कि आयोग, चुनाव की तारीख़ के एलान के साथ ही एक राजनीतिक दल विशेष के पक्ष में खड़ा हुआ दिखाई पड़ा। इस चिट्ठी में लिखा गया है -

इस चिट्ठी में चुनाव आयोग ने जिस दिन चुनाव का एलान किया, उस पर ही प्रश्न चिह्न लगाया गया है। 2004, 2009 और 2014 लोकसभा चुनावों का हवाला देते हुये पूछा गया है कि 10 मार्च 2019 को चुनाव का एलान क्यों किया गया? उनके मुताबिक़, 2004 में 29 फ़रवरी, 2009 में 1 मार्च, 2014 में 5 मार्च को चुनाव का एलान किया गया। लेकिन 2019 में यह घोषणा 10 मार्च को इसलिए की गई ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फ़रवरी 8 से मार्च 9 तक कुल 157 सरकारी योजनाओं के उद्घाटन का मौक़ा मिल जाए। ऐसा लग रहा था कि मानो चुनाव आयोग सरकार के अनुरूप चुनाव की तारीख़ों को एडजस्ट कर रहा था। इससे आयोग की तटस्थता पर सवाल खड़ा हो गया।

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  • इस चिट्ठी में यह आरोप भी लगाया गया है कि तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों में जहाँ बीजेपी कमज़ोर है और उसके जीतने की उम्मीद नहीं थी, वहाँ चुनाव एक चरण में कराया गया। लेकिन, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, जैसे राज्यों में जहाँ बीजेपी मजबूत थी, वहाँ कई चरणों में चुनाव कराए गए ताकि प्रधानमंत्री को प्रचार के लिए ज़्यादा वक़्त मिल सके। इस राज्यों में भी लगभग उतनी ही सीटों पर चुनाव हो रहे थे जहाँ 1 चरण में चुनाव कराए गए थे। 

  • चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन पर कार्रवाई करने पर भी चुनाव आयोग की भूमिका संदिग्ध रही। विशेष तौर पर बीजेपी के नेताओं पर आयोग ज़्यादा मेहरबान रहा। उदाहरण के तौर पर अमित शाह ने कहा “ ग़ैर क़ानूनी प्रवासियों को बंगाल की खाड़ी में फेंक देना चाहिए।” चिठ्ठी के मुताबिक़ यह भारतीय दंड संहिता और प्रतिनिधित्व क़ानून का सरासर उल्लंघन था, लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट ने खिंचाई की, तब चुनाव आयोग की नींद टूटी। फिर भी आयोग ने प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष के उल्लंघनों पर कोई कार्रवाई नहीं की। 

  • इस चिट्ठी में लिखा गया है कि चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री ने पुलवामा और बालाकोट की घटनाओं पर राष्ट्रवादी उभार बीजेपी के पक्ष में पैदा करने की कोशिश की जो आचार संहिता का सरासर उल्लंघन था। लेकिन आयोग ने प्रधानमंत्री को कोई नोटिस जारी नहीं किया, जबकि प्रदेश चुनाव आयुक्त इस बारे में चुनाव आयुक्त को लगातार सूचित कर रहे थे, ख़ुद आयोग में इस पर गंभीर मतभेद देखे गए। आयोग से अलग अपनी राय रखने वाले चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की राय को सार्वजनिक करने से मना कर दिया। 

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  • इसी तरीके से ओड़िशा के विशेष चुनाव पर्यवेक्षक मुहम्मद मोहसिन को इस वजह से सस्पेंड कर दिया गया कि उसने प्रधानमंत्री के हेलीकॉप्टर की जाँच पड़ताल की। तर्क यह दिया गया कि अधिकारी ने एसपीजी की सुरक्षा में रहने वाले व्यक्ति की जाँच पड़ताल करते समय आयोग के दिशा निर्देशों का ख्याल नहीं रखा। उस समय भी यह बात उठाई गई थी कि ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के हेलीकॉप्टरों की जाँच की गई थी। और उन्हे कोई एतराज़ नही था।

  • चिट्ठी में यह भी लिखा गया है कि नीति आयोग ने ऐसे ज़िलों की सूचनाएँ वहाँ के अधिकारियों से मँगवाई थीं, जहाँ प्रधानमंत्री को जाना था। इन सूचनाओं का इस्तेमाल प्रधानमंत्री के चुनाव प्रचार में होना था, लेकिन आयोग ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। 
  • इस चिट्ठी में नमो टीवी का भी ज़िक्र है, जिस पर चुनाव के दौरान काफ़ी विवाद हुआ था। पूर्व नौकरशाहों ने लिखा कि हैरानी की बात यह है कि नमो टीवी को चुनाव आयोग ने बंद करने का आदेश तो दिया, लेकिन नमो टीवी का प्रसारण अंत तक चलता रहा।
  • इसके साथ-साथ अक्षय कुमार द्वारा प्रधानमंत्री के लिए इंटरव्यू और प्रधानमंत्री के केदारनाथ यात्रा का भी जिक्र है। और उस पर आयोग के कुछ न करने पर आपत्ति जतायी गयी है।

  • चिट्ठी में कहा गया है कि चुनाव के दौरान 30,456 करोड़ की अवैध धनराशि पकड़ी गई। चुनाव आयोग ने तमिलनाडु में नकद पकड़े जाने पर तो कड़ी कार्रवाई की, पर उसने दूसरे जगहों पर वह तेज़ी नहीं दिखाई। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के कारवाँ से 1.80 करोड़ रुपए नकद पकड़ा गया, पर इस बारे में आयोग ने क्या किया, इसकी जानकारी नहीं है। 

  • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का भी ज़िक्र इस चिट्ठी में है। चुनाव आयोग ने बार बार कहा है कि ईवीएम में धाँधली नहीं की जा सकती। पर चुनाव के दौरान ऐसी ख़बरें आईं कि दो कंपनियों की बनाई ईवीएम की संख्या और चुनाव आयोग के रिकार्ड में बड़ा अंतर था। मीडिया की ख़बरों के मुताबिक़, आरटीआई से ऐसी जानकारी मिली कि तक़रबीन 20 लाख ईवीएम इन कंपनियों ने बनाई थीं, लेकिन आयोग के रिकार्ड में वह दर्ज नहीं था। इस मामले में चुनाव आयोग का बर्ताव समझ के परे था। क़ायदे से तो इस बारे में पूरी जानकारी और आँकड़े लोगों के सामने रखे जाने चाहिये थे। 

  • इस चिट्ठी में वीवीपैट के मिलान का भी सवाल खड़ा किया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि आख़िरी चरण के मतदान और मतगणना के बीच ऐसी रिपोर्टें मीडिया में आई थी, जिनमें ईवीएम को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया गया, आयोग ने कभी इसका संतोषजनक जवाब नहीं दिया। 

20 पैराग्राफ़ की इस चिट्ठी में अंत में इस बात पर निराशा जताई गई है कि जहाँ एक समय विदेशों में इस बात को लेकर भारतीय चुनाव आयोग की तारीफ होती थी कि वह इतने बड़े पैमाने पर बेहद कुशलता और निष्पक्षता के साथ चुनाव कराते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि यह विरासत अब धाराशायी हो गई है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो संविधान की अंतरात्मा को गहरी चोट लगेगी और लोकतांत्रिक मूल्य कमज़ोर पड़ेंगे जो हमारे देश की बुनियाद है। 

पूर्व नौकरशाहों ने अंत में कहा है कि 2019 के जनादेश पर गंभीर सवाल हैं। जो चिंताएँ जताई गई हैं, उस पर चुनाव आयोग का चुप रहना ठीक नहीं है। ऐसा भविष्य में न हो, इसलिए इन तमाम अनियमितताओं के आरोपों पर चुनाव आयोग अपनी तरफ से सार्वजनिक सफ़ाई दे और ऐसे कदम उठाए कि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो। यह कदम चुनावी प्रक्रिया में लोगों की आस्था बनाए रखेगा। 

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