महँगाई बेतहाशा बढ़ी, आरबीआई की तय ऊपरी सीमा लाँघ 7.35% पर पहुँची
आर्थिक मोर्चे पर सरकार के साथ-साथ अब आम लोगों के लिए भी बुरी ख़बर है। गिरती विकास दर के बीच अब महँगाई बेतहाशा बढ़ गई है। यानी ख़ुदरा में सामान खरीदना आम लोगों के लिए पहुँच से बाहर होता जा रहा है। अब दिसंबर महीने की रिपोर्ट आई है कि रिटेल इन्फ़्लेशन यानी ख़ुदरा महँगाई दर 7.35 फ़ीसदी पहुँच गई है। यह आरबीआई द्वारा तय ऊपरी सीमा से ज़्यादा है। रिज़र्व बैंक ने 2-6 फ़ीसदी की सीमा तय कर रखी है कि महँगाई दर को इससे ज़्यादा नहीं बढ़ने देना है। इसका साफ़ मतलब है कि महँगाई दर ख़तरे के निशान को पार कर गई है। महँगाई को नियंत्रण में रखने का दंभ भरने वाली बीजेपी सरकार के लिए यह बड़ी चुनौती है।
जुलाई 2016 के बाद यह पहली बार है कि रिज़र्व बैंक द्वारा तय महँगाई दर की सीमा को यह पार कर गई है। कहा गया है कि महँगाई दर बढ़ने का मुख्य कारण खाने की क़ीमतों में बढ़ोतरी है। ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर महीने में खाने-पीने की जीचों की महँगाई 14.12 फ़ीसदी और सब्जियों की 60.5 फ़ीसदी बढ़ी है।
पिछले हफ़्ते ही आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि केंद्रीय बैंक का प्राथमिक उद्देश्य क़ीमतों को स्थिर रखने का है क्योंकि बढ़ी हुई क़ीमतों से सबसे ज़्यादा ग़रीब प्रभावित होते हैं।
बता दें कि हाल के महीनों में महँगाई लगातार बढ़ती रही है। नवंबर महीने में खुदरा महँगाई दर 5.54 फ़ीसदी रही थी। यह अक्टूबर महीने में 4.62 फ़ीसदी से काफ़ी ज़्यादा थी। दिसंबर महीने में ही रिज़र्व बैंक को शायद इन्फ़्लेशन बढ़ने का अंदेशा हो गया था और इसीलिए मौद्रिक समीक्षा के बाद भी बैंक की ब्याज दर में कोई बदलाव नहीं किया था।
हालाँकि कोर इन्फ़्लेशन नवंबर से थोड़ा ज़्यादा बढ़ी है और दिसंबर महीने में यह 3.7 फ़ीसदी पर है।
पिछले महीने ही रिपोर्ट आई थी कि खाने-पीने की चीजें काफ़ी महँगी थीं। 71 महीने में सबसे ज़्यादा। यह रिपोर्ट थी महँगाई को मापने वाले थोक मूल्य सूचकांक की। खाने-पीने की चीजों में यह सूचकांक नवंबर में 11.1 प्रतिशत बढ़ गया था। यह पिछले 71 महीने के उच्चतम स्तर पर था। इसका साफ़ मतलब यह था कि थोक भाव में बिकने वाली खाने-पीने की चीजों की क़ीमतों में भी बेतहाशा वृद्धि हुई थी। थोक में खाद्य मूल्य सूचकांक में ज़ोरदार बढ़ोतरी की मुख्य वजह प्याज के दाम का बढ़ना थी।
कई ऐसी रिपोर्टें आई हैं जिसमें कहा गया है कि लोगों के पास सामान ख़रीदने के पैसे नहीं हैं। हाल के दिनों में ऐसी रिपोर्टें भी आई हैं कि बेरोज़गारी रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ी है और लोगों की पैसे कमाने की क्षमता कम हुई है। जीडीपी वृद्धि दर दूसरी तिमाही में गिरकर 4.5 फ़ीसदी रह गई है। दूसरे आर्थिक संकेतक भी ख़राब स्थिति की ओर इशारा कर रहे हैं।
पिछले महीने ही रिपोर्ट आई थी कि औद्योगिक उत्पादन में लगातार तीसरे महीने गिरावट आई है। अक्टूबर महीने में यह 3.8 फ़ीसदी रहा। विनिर्माण, खनन और बिजली तीनों क्षेत्रों में यह गिरावट आई है। इसका मतलब साफ़ है कि इसकी माँग में गिरावट आई है। यह इस लिहाज़ से भी अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है कि लगातार गिरावट के बावजूद इसमें सुधार होता नहीं दिखाई दे रहा है। देश की पहले से ही आर्थिक स्थिति ख़राब है और ऐसे में औद्योगिक उत्पादन का गिरना सरकार के लिए चिंता की बड़ी वजह होगा। चिंता का कारण इसलिए भी है कि अर्थव्यवस्था के किसी भी मोर्चे पर सकारात्मक संकेत नहीं दिख रहे हैं।