अग्निपथ योजना: क्या कहते हैं सेना में बड़े पदों पर रहे अफ़सर
सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए केंद्र सरकार के द्वारा लाई गई अग्निपथ योजना को लेकर सेना में बड़े पदों पर रहे अफसरों ने आपत्ति दर्ज की है और सुझाव भी दिए हैं। अग्निपथ योजना के तहत चयन होने के बाद युवाओं को 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाएगी और फिर उन्हें 3.5 साल के लिए अलग-अलग जगहों पर तैनात किया जाएगा। 4 साल के बाद केवल 25 फीसद जवान ही आर्म्ड फोर्सेस में वापस आ सकेंगे जबकि बाकी लोग सेवाओं से बाहर हो जाएंगे।
मेजर जनरल यश मोर ने ट्वीट करके कहा कि सशस्त्र बलों को आर्थिक नजरिए से देखा जाना बंद होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सेना की जिंदगी और करियर की तुलना सरकारी खजाने में बचाए गए पैसे से नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि इस योजना को लागू किया जाना बेहद मुश्किल लग रहा है।मेजर जनरल (रिटायर्ड) बीएस धनोआ ने अग्निपथ योजना को लेकर दो सुझाव दिए हैं। पहला सुझाव यह है कि भर्ती होने वाले जवानों की नौकरी का पीरियड कम से कम 7 साल किया जाए। दूसरा सुझाव यह कि जो लोग आगे भी सेना में बने रहना चाहते हैं उनके प्रतिशत को बढ़ाकर 50 किया जाए।
लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर्ड) एसएस सोही ने कहा कि सेना में भर्ती हुए किसी नए जवान को सेना की बारीकियों को सीखने में 4 साल का वक्त लगता है। उन्होंने अग्निपथ योजना की आलोचना करते हुए कहा कि यह सभी सिंगल क्लास रेजिमेंटों के गौरव और उत्साह को खत्म कर देगी।
उन्होंने कहा कि संविदा पर रखे गए सैनिकों को जब 1971 के युद्ध के दौरान बुलाया गया तो उनका प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा। उन्होंने कहा कि वह अपने अनुभव से कह सकते हैं कि वे लोग किसी तरह का जोखिम लेने से हिचक रहे थे क्योंकि उन्हें इस बात का पता था कि वह सेना में एक छोटी सी अवधि के लिए ही हैं।
कर्नल सोही ने कहा कि अग्निपथ योजना में भी ऐसा ही कुछ फिर से हो सकता है जिसमें सैनिकों को सिर्फ 4 साल के लिए भर्ती किया जाएगा।
लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) पीआर शंकर ने अग्निपथ योजना की आलोचना करते हुए इसे किंडरगार्टन आर्मी करार दिया है।
भारत-नेपाल के रिश्तों पर असर
लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) तेज सप्रू ने कहा है कि इस कदम से भारत-नेपाल के रिश्ते बेहतर नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि नेपाली मूल के भारतीय सैनिक अपनी सैलरी और पेंशन के जरिए नेपाल की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका अदा करते हैं। इसके अलावा वह भारत-नेपाल की सीमा पर बसे गांवों में भारत के अहम दूत भी हैं और इस वजह से ही चीन अब तक नेपाल में अपनी पैठ नहीं बना पाया है।
उन्होंने कहा कि अग्निपथ योजना के जरिए जवानों की सेवा की अवधि को कम किया जाना और उन्हें मिलने वाले फायदों में कटौती करना भारत-नेपाल के रिश्तों में एक बड़ा बदलाव ला सकता है।
इस योजना के आलोचकों का कहना है कि 4 साल नौकरी करने के बाद जब युवक और युवतियां आर्म्ड फोर्सेस से बाहर निकलेंगे तो वह क्या करेंगे, इस बारे में सरकार ने कुछ नहीं कहा है। आलोचकों का कहना है कि 6 महीने की ट्रेनिंग बेहद कम है और आर्म्ड फोर्सेस में ट्रेनिंग के लिए काफी ज्यादा वक्त चाहिए।
बिहार में जोरदार विरोध
सेना में लंबे वक्त तक काम कर चुके इन सभी अफ़सरों की अग्निपथ योजना को लेकर तमाम तरह की आपत्तियां हैं। बिहार के बेगूसराय, मुजफ्फरनगर, बक्सर में इस योजना के विरोध में युवा सड़कों पर उतरे हैं। भारत में युवाओं की एक बड़ी तादाद है जो सेना में जाकर सरहद पर दुश्मन से मुकाबला करना चाहती है। ऐसे में इस योजना के आने के बाद और इसे लेकर तमाम गंभीर आपत्तियां सामने आने के बाद कि युवाओं के मन में भी शंकाएं हैं। देखना होगा कि केंद्र सरकार अग्निपथ योजना में क्या कोई बदलाव करती है।