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रिपब्लिक टीवी के प्रदीप भंडारी को लंबी पूछताछ के बाद पुलिस ने रिहा किया

रिपब्लिक टीवी के प्रदीप भंडारी को लंबी पूछताछ के बाद पुलिस ने रिहा किया

टीआरपी में घपला करने का आरोप झेल रही रिपब्लिक टीवी के सलाहकार संपादक प्रदीप भंडारी को पुलिस ने शनिवार को हिरासत में लेने और लंबी पूछताछ के बाद रिहा कर दिया है। 

टीआरपी में घपला करने का आरोप झेल रही रिपब्लिक टीवी के सलाहकार संपादक प्रदीप भंडारी को पुलिस ने शनिवार को हिरासत में लेने और लंबी पूछताछ के बाद रिहा कर दिया है। 

रिपब्लिक टीवी के अनुसार, मुंबई पुलिस ने प्रदीप भंडारी को हिरासत में लिया, उनसे लगभग 10 घंटे तक पूछताछ की और उसके बाद उन्हें जाने दिया। चैनल का कहना है कि भंडारी ने अग्रिम ज़मानत ले रखी थी। 

प्रदीप भंडारी ने कहा, 'उन लोगों ने मुझे कुछ फ़ेक वीडियो दिखाए, जिसे वे ख़ुद साबित नहीं कर सके। जब मैंने कहा कि मुझे अग्रिम ज़मानत मिली हुई है, पुलिस ने मुझे पंचनामा नहीं दिया।'

आरोप क्या है

भंडारी पर आरोप है कि उन्होंने अभिनेत्री कंगना रनौत के घर का एक हिस्सा गिराए जाते समय रिपोर्टिंग करते हुए पुलिस वालों को धक्का दिया था। 

पुलिस ने यह आरोप भी लगया कि भंडारी ने रनौत के घर के बाहर लोगों को नारे लगाने के लिए उन्हें पैसे दिए थे। भंडारी के ख़िलाफ़ धारा 188 और धारा 353 लगाई गई हैं, जिसमें सरकारी कर्मचारियों को अपना काम करने से रोकने पर दंड का प्रावधान है।

मुंबई पुलिस ने प्रदीप भंडारी को पहले 9 अक्टूबर को ही तलब किया था। 

क्या कहना है भंडारी का

बता दें कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आर. एम. सदरानी ने प्रदीप भंडारी को अग्रिम जमानत दी थी। भंडारी ने अपनी याचिका में कहा था कि इस मामले में उन पर धारा 353 लागू नहीं होती, क्योंकि उन्होंने किसी लोक सेवक पर हमला नहीं किया। अदालत ने अपने आदेश में इस बात का संज्ञान लिया कि अभियोजक ने भीड़ के विरुद्ध आरोप लगाया है।

अदालत ने कहा है कि प्राथमिकी में जो दर्ज है, उससे यह उजागर नहीं होता कि किसी सरकारी कर्मचारी को उसकी ड्यूटी करने से रोकने के लिए उस पर हमला किया गया। अदालत ने यह भी कहा कि प्राथमिकी दर्ज करने के एक सप्ताह बाद उसमें धारा 353 जोड़ी गई।

अदालत ने कहा कि इसलिए यह स्पष्ट है कि जब प्राथमिकी दर्ज की गई तब सरकारी कर्मचारियों को यह पता नहीं था कि उसे सार्वजनिक दायित्व का निर्वहन करने से रोका गया। भंडारी की ओर से भीड़ को पैसा दिए जाने के आरोप के संबंध में अदालत ने कहा कि जनता को नारे लगाने के लिए पैसा देना यहां अपराध नहीं है।

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