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केजरीवाल के सहयोगी, ईडी अधिकारी भी थे पेगासस के निशाने पर

केजरीवाल के सहयोगी, ईडी अधिकारी भी थे पेगासस के निशाने पर

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सहयोगी, ईडी के अधिकारी भी उन लोगों में शामिल हैं जो पेगासस स्पाइवेयर के निशाने पर थे। 'द वायर' ने 'पेगासस प्रोजेक्ट' की अपनी ताज़ा रिपोर्ट में इनके नामों के खुलासे किए हैं। 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सहयोगी रहे वी के जैन और ईडी के अधिकारी भी उन लोगों में शामिल हैं जो पेगासस स्पाइवेयर के निशाने पर थे। 'द वायर' ने 'पेगासस प्रोजेक्ट' की अपनी ताज़ा रिपोर्ट में इनके नामों के खुलासे किए हैं। वी के जैन उस मामले से जुड़े रहे थे जिसमें आम आदमी पार्टी के दो विधायकों द्वारा दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश पर कथित हमला किया गया था। इस सिलसिले में दिल्ली पुलिस द्वारा जैन से पूछताछ भी की गई थी। वह उस मामले में गवाह थे। वह केजरीवाल के क़रीबी भी थे। 

कई हाई-प्रोफाइल जांच का नेतृत्व करने वाले प्रवर्तन निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी राजेश्वर सिंह को एनएसओ ग्रुप के एक भारतीय ग्राहक द्वारा निगरानी के लिए चुना गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि न केवल सिंह के दो नंबर शामिल थे, बल्कि उनके परिवार की तीन महिलाओं से संबंधित चार नंबर भी शामिल थे। इसमें उनकी पत्नी और बहन भी थीं। 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निजी सहायक के रूप में पहले काम कर चुके पूर्व भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी वी.के. जैन व ईडी अफ़सर के अलावा दूसरे सरकारी अधिकारी भी पेगासस के निशाने पर थे। लीक हुए रिकॉर्ड में प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ और नीति आयोग के कम से कम एक-एक अधिकारी के नंबर भी हैं।

आरोप लगाए जा रहे हैं कि पेगासस स्पाइवेयर के माध्यम से दुनिया भर में लोगों पर जासूसी कराई गई। 'द गार्डियन', 'वाशिंगटन पोस्ट', 'द वायर' सहित दुनिया भर के 17 मीडिया संस्थानों ने पेगासस स्पाइवेयर के बारे में खुलासा किया है।

एक लीक हुए डेटाबेस के अनुसार इजरायली निगरानी प्रौद्योगिकी फर्म एनएसओ के कई सरकारी ग्राहकों द्वारा हज़ारों टेलीफोन नंबरों को सूचीबद्ध किया गया था। द वायर के अनुसार इसमें 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल टेलीफोन नंबर शामिल हैं। ये नंबर मंत्री, विपक्ष के नेता, पत्रकार, क़ानूनी पेशे से जुड़े, व्यवसायी, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, अधिकार कार्यकर्ता और अन्य से जुड़े हैं।

पेगासस परियोजना सूची में वी.के. जैन का फोन नंबर 2018 में लीक हुए रिकॉर्ड में आता है। समझा जाता है कि तब वह राज्य सरकार की सबसे महत्वपूर्ण फाइलों को संभाल रहे थे।

अपने पहले कार्यकाल के दौरान केजरीवाल के मुख्य सहयोगी के रूप में जैन स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में सुधार जैसे मुख्यमंत्री के सबसे बेशकीमती कल्याणकारी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन से जुड़े हुए थे।

'द वायर' की रिपोर्ट के अनुसार उनका फ़ोन नंबर उस घटना के तुरंत बाद रिकॉर्ड में आता है जब फ़रवरी 2018 में आम आदमी पार्टी के दो विधायकों द्वारा दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश पर कथित हमले के सिलसिले में दिल्ली पुलिस द्वारा उनसे पूछताछ की गई थी। यह घटना आप नेताओं और अंशु प्रकाश के बीच एक बैठक के दौरान हुई थी। उस बैठक में 'राशन की डोर स्टेप डिलीवरी' और फाइलों की धीमी प्रगति के मुद्दे पर चर्चा हो रही थी। अंशु प्रकाश ने जहाँ कथित हमले को लेकर एफ़आईआर दर्ज कराई थी, वहीं आप विधायकों ने आरोपों से इनकार किया था। 

बता दें कि मुख्य सचिव से कथित मारपीट के उस मामले में वी के जैन पर कोई आरोप नहीं था। इस मामले में आप विधायकों पर आरोप लगे थे और इससे केजरीवाल सरकार के लिए मुश्किल पैदा होती। इस मामले में सबसे अहम बात यह थी कि वी के जैन मुख्य सचिव वाले उस मामले में गवाह थे। एक गवाह के रूप में जैन ने अपने शुरुआती बयान में उस दिन घटनाक्रम में कुछ भी देखने से इनकार किया था क्योंकि उन्होंने दावा किया था कि जब कथित हमला हुआ था तब वह "वॉशरूम" में थे। हालाँकि, कुछ दिनों बाद उन्होंने एक मजिस्ट्रेट के सामने एक बयान दर्ज कराया जिसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने आप विधायकों को प्रकाश को शारीरिक रूप से डराते हुए देखा था। 

उस घटना के बाद जैन ने मार्च 2018 में व्यक्तिगत कारणों और परिवार के प्रति प्रतिबद्धता का हवाला देते हुए इस्तीफ़ा दे दिया था। इससे पहले सितंबर 2017 में केजरीवाल ने उन्हें अपने कार्यालय में सलाहकार के साथ-साथ कंसल्टेंट के रूप में नियुक्त किया था। 

बता दें कि इस मामले ने अब देश में तूल पकड़ लिया है। पेगासस स्पाइवेयर मामले की जाँच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराए जाने को लेकर सीपीएम के एक सांसद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इससे पहले एक वकील ने भी अदालत में याचिका दायर कर ऐसी ही मांग की थी। प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया सहित पत्रकारों के कई संगठन भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच कराए जाने की मांग कर चुके हैं। विपक्षी दल के नेता भी संयुक्त संसदीय कमेटी यानी जेपीसी या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच की मांग लगातार कर रहे हैं। 

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