देश-दुनिया के मुशायरों और कवि सम्मेलन मंचों की बरसों-बरस शान और जान रहे ख्याति नाम शायर राहत इंदौरी (70 वर्ष) का मंगलवार को इंदौर में निधन हो गया। वे कोरोना वायरस से पीड़ित थे। तीन दिन पहले वे कोरोना से संक्रमित मिले थे। इसके बाद उन्हें इंदौर के अरबिंदो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मंगलवार शाम को उन्होंने अंतिम सांस ली। रात को उन्हें सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया।
राहत इंदौरी को सांस की बीमारी थी। इसके अलावा उन्हें हाई शुगर, हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट की भी समस्या थी। तमाम बीमारियों के बावजूद वे सक्रिय रहा करते थे उन्होंने कभी बीमारियों को अपने जुदा अंदाज के आड़े नहीं आने दिया।
मध्य प्रदेश व इंदौर में कोरोना संक्रमण फैलने के बाद से अलबत्ता उन्होंने स्वयं को घर में कैद कर लिया था। करीब चार महीने से वे घर से नहीं निकले थे। पिछले चार-पांच दिनों से उन्हें सांस से जुड़ी तकलीफ बढ़ गई थी और निमोनिया हुआ था।
तकलीफ बढ़ने के बाद राहत साहब ने कोरोना का टेस्ट भी कराया था। टेस्ट में वे पाॅजिटिव पाये गये थे। इसके बाद उन्होंने अस्पताल की शरण ली थी। कोरोना होने की ख़बर आने के बाद राहत इंदौरी के फैन्स बेहद मायूस हुए थे। राहत साहब ने अस्पताल से ट्वीट करते हुए प्रशंसकों से अपील की थी कि सब उनके जल्दी ठीक होने के लिए दुआ करें।
राहत इंदौरी को मंगलवार दोपहर को हार्ट अटैक आया। डाॅक्टरों ने उन्हें दवाएं दीं। कुछ देर के लिए वे ठीक हुए और उसके बाद शाम होते-होते एक के बाद एक करके दो और अटैक उन्हें आये। तीसरे अटैक के बाद वे जीवन से हार गये।
राहत साहब इंदौर के अनूप नगर में रहते थे। उनके दो बेटे हैं। एक शायर हैं और दूसरे बैंक में कार्यरत हैं। राहत साहब के निधन की सूचना आते ही देश और दुनिया के उनके प्रशंसकों में शोक की लहर दौड़ गई।
अहसास हो गया था राहत साहब को
राहत साहब का करीब 40 वर्षों से इलाज कर रहे डाॅक्टर विनोद भंडारी ने मीडिया को बताया कि राहत साहब के फेफड़े दो दिन पूर्व अस्पताल में भर्ती होने पर की गई जांच में 60 प्रतिशत निमोनियाग्रस्त मिले थे। बाद में उनकी कोविड-19 की रिपोर्ट पाॅजिटिव आयी थी।
डाॅक्टर भंडारी के अनुसार राहत इंदौरी को अहसास हो गया था कि शायद वे अब बच नहीं पायेंगे। वे बार-बार इस बात के संकेत उपचार के दौरान देते रहे थे।
...बाप का हिन्दुस्तान थोड़े ही है’
राहत साहब ने अनेक फिल्मों में गीत लिखे। भूमरो-भूमरो, श्याम रंग भूमरो जैसा गीत भी उन्होंने ही लिखा। अपने खास अंदाज की शायरी में उनकी ख्यातिनाम बंदों की फेहरिस्त बेहद लंबी है। ऐसे ही बंदों में से एक ‘सभी का खून शामिल है यहां की मिट्टी में किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़े ही है...।’ बेहद मशहूर है।
राहत इंदौरी के साथ सैकड़ों बार मंच शेयर करने वाले कवि कुमार विश्वास ने मंगलवार दोपहर को एक ट्वीट करते हुए कहा था, ‘कोरोना गलत शख्स से भिड़ गया है, अब कोरोना को मालूम पड़ेगा।’ कुमार विश्वास का ‘विश्वास’ सही साबित नहीं हो पाया और कोरोना ने राहत इंदौरी साहब को हरा दिया।
राहत इंदौरी का जन्म इंदौर में 1 जनवरी, 1950 को हुआ था। उनकी शुरुआती शिक्षा नूतन स्कूल, इंदौर में हुई थी और इसलामिया करीमिया कॉलेज, इंदौर से 1973 में स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी। इंदौरी साहब ने 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया था।
शायरी के अलावा राहत इंदौरी अपनी गजलों के लिए भी जाने जाते थे। डाॅ. राहत इंदौरी के शेर व्यवस्था को आइना भी दिखाते हैं। एक शेर में वह कहते हैं- तूफ़ानों से आंख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो, मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो। एक दूसरे शेर में वह कहते हैं- हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे, कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते।