केरल के धर्मांतरण मामलों में 47% लोग हिन्दू बने, बीजेपी क्यों खड़ा करती है हौव्वा?
बीजेपी, आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद ने उत्तर प्रदेश से लेकर दक्षिण में केरल तक धर्म परिवर्तन को बहुत बड़ा मुद्दा बनाया है और कथित 'लव जिहाद' को रोकने के लिए क़ानून बनाए हैं और कुछ जगहों पर बनाने की बात कह रहे हैं, पर सच उनके दावों के उलट है।
मुसलमान व ईसाई अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ एक हिन्दू विरोधी नैरेटिव तैयार करने की कोशिश में ये संस्थाएं भले ही यह साबित करने की कोशिश कर रही हों कि बड़े पैमाने पर हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन हो रहा है या इसकी कोशिश की जा रही है, केरल के आँकड़े ये बताते हैं कि धर्म परिवर्तन कर हिन्दू बनने वालों की तादाद दूसरे धर्म अपनाने वालों की तुलना में ज़्यादा है।
हिन्दू धर्म छोड़ कर इसलाम व ईसाइयत अपनाने वाले जितने हैं, उससे अधिक वे लोग हैं जिन्होंने इसलाम या ईसाइयत छोड़ कर हिन्दू धर्म स्वीकार किया है।
आँकड़ों का सच
'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, साल 2020 में जितने धर्म परिवर्तन हुए हैं, उनमें से 47 प्रतिशत मामलों में लोग हिन्दू बने हैं।
हम इसे ब्रेक अप कर समझते हैं। आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक़,
- केरल में 2020 में धर्म परिवर्तन के 506 मामले हुए।
- इनमें से 241 मामलों में लोग इसलाम या ईसाइयत छोड़ कर हिन्दू बने हैं।
- दूसरी ओर, 114 लोग मुसलमान व 119 लोग ईसाई बने हैं।
- जितने लोग मुसलमान और ईसाई बने हैं, उस संख्या को जोड़ने से भी ज़्यादा लोग हिन्दू बने हैं।
धर्म परिवर्तन क्यों?
हिन्दू धर्म स्वीकार करने वालों पर एक नज़र डालने से कई दिलचस्प बातें सामने आती हैं। इनमें से ज़्यादातर लोग दलित ईसाई से हिन्दू बने हैं। उनमें ईसाई चरामर, ईसाई समभाव और ईसाई पुलाया जातियों के लोग अधिक थे।
ऐसा लगता है कि ईसाइयों को जातिगत आरक्षण नहीं मिलने के कारण ये लोग हिन्दू बन गए ताकि नौकरी व शिक्षा में उन्हें आरक्षण का फ़ायदा मिले।
इससे साफ़ होता है कि इन मामलों में धर्म परिवर्तन का बड़ा कारण सामाजिक व शैक्षणिक रूप से आगे बढ़ने, अपनी आर्थिक स्थिति और समाज में अपनी हैसियत को आगे बढाने की इच्छा है।
मुसलमान से हिन्दू
जो लोग मुसलमान बने, उनमें से 77 प्रतिशत लोग पहले हिन्दू थे। इनमें इज़ावा, थिय्या और नैय्यर जातियों के लोग ज़्यादा थे। यानी जातीय भेदभाव से निकलने के लिए इन लोगों ने इसलाम स्वीकार किया।
इन आँकड़ों का राजनीतिक महत्व है।
बीजेपी और आरएसएस ने पूरे देश में यह वातावरण तैयार किया है कि दूसरे धर्मों के युवा हिन्दू लड़कियों से दोस्ती कर, उन्हें बरगला कर और अपने बारे में ग़लत जानकारी देकर उनसे शादी कर लेते हैं और उनका धर्म परिवर्तन करवा देते हैं।
'लव जिहाद'
बीजेपी और आरएसएस की शब्दावली में इसे 'लव जिहाद' कहा गया। इस कथित 'लव जिहाद' को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने विधानसभा से पारित करवा एक क़ानून बनवाया, जिसमें इस तरह की शादियों पर रोक लगाई गई है।
इसके अलावा शादी के जरिए धर्म परिवतर्न कराने या जबरन धर्म परिवर्त करने वालों को दंड देने के प्रावधान भी हैं।
दूसरे कई राज्यों ने भी कहा है कि वे इस तरह के क़ानून पर काम कर रहे हैं।
बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट समेत कई अदालतों ने कहा कि दो बालिग आपसी रज़ामंदी से विवाह करते हैं तो उसे ग़ैरक़ानूनी नहीं कहा जा सकता है, भले ही अलग-अलग धर्मों के हों।
'बेटी बचाओ- बहू लाओ'
आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद ने तो 'बेटी बचाओ- बहू लाओ' का नारा दिया, यानी हिन्दू लड़कियों को दूसरे धर्म के युवक से विवाह नहीं करने दिया जाए, लेकिन हिन्दू युवक दूसरे धर्म की लड़कियों से विवाह करें।
केरल की बीजेपी ने केंद्र सरकार से माँग की है कि कथित लव जिहाद को रोकने के लिए वह क़ानून बनाए और उसे पूरे देश में लागू करे।
लेकिन केरल के साल 2020 के धर्म परिवर्तन के आँकड़े तो इस झूठ की पोल खोल देते हैं।