टीएमसी: शुभेंदु को मनाने की कोशिश जारी, टूट का ‘ख़तरा’ टला!
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बग़ावत का झंडा उठाने वाले तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेता शुभेंदु अधिकारी के अगले क़दम को लेकर स्थिति साफ नहीं हो रही है। दो दिनों के अंदर दो अहम पदों से इस्तीफ़ा देने वाले अधिकारी का बंगाल के कुछ इलाक़ों में जबरदस्त राजनीतिक असर देखते हुए टीएमसी तो उन्हें मना ही रही है, बीजेपी भी उन्हें पार्टी में आने का न्यौता दे चुकी है। लेकिन शुभेंदु दादा साइलेंट हैं।
शुभेंदु ने पिछले हफ़्ते हुगली रिवर ब्रिज कमिश्नर (एचआरबीसी) के अध्यक्ष पद से और उसके अगले दिन परिवहन मंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया था। इसके बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सांसद कल्याण बनर्जी को एचआरबीसी का अध्यक्ष नियुक्त किया था।
शुभेंदु की बग़ावत के चलते डरीं ममता बनर्जी ने कुछ दिन पहले उन्हें मनाने की कोशिश शुरू की थी। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ख़ुद उनसे मिलने पहुंचे थे लेकिन शुभेंदु उनसे नहीं मिले थे। पार्टी के कुछ और वरिष्ठ नेताओं की कोशिश भी रंग नहीं ला पाई थी।
बहरहाल, आगे बढ़ते हुए टीएमसी ने मंगलवार को अपने वरिष्ठ नेताओं को फिर से शुभेंदु को मनाने के लिए भेजा। इनमें लोकसभा सांसद सौगुता रॉय, सुदीप बंदोपाध्याय, ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी और प्रशांत किशोर शामिल थे। सभी की शुभेंदु के साथ बैठक हुई।
बैठक के बाद सौगुता रॉय ने कहा कि सभी मसलों को सुलझा लिया गया है और शुभेंदु जल्द ही बयान जारी कर अपना पक्ष रखेंगे। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, सौगुता के बयान पर शुभेंदु के पिता और टीएमसी के सांसद शिशिर अधिकारी ने कहा कि अगर ये बात सच है तो वह ख़ुश हैं।
रॉय ने कहा, ‘बैठक दो घंटे तक चली और इस दौरान माहौल बहुत अच्छा रहा। शुभेंदु के कुछ मसले थे लेकिन वह हमारे साथ हैं।’ शुभेंदु के पिता के अलावा भाई भी टीएमसी के सांसद हैं। कहा जा रहा है कि शुभेंदु परिवार में इस मसले पर बातचीत करेंगे और उसके बाद ही कोई फ़ैसला लेंगे।
शुभेंदु की बग़ावत के बीच ही बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा था कि शुभेंदु के साथ ही जो कोई भी पार्टी में आना चाहता है, उसका स्वागत है।
शुभेंदु ने बनाई दूरी
दिग्गज नेता शुभेंदु बीते तीन महीनों से न तो कैबिनेट की किसी बैठक में हिस्सा ले रहे थे और न ही अपने जिले में तृणमूल की ओर से आयोजित किसी कार्यक्रम में। इसके उलट वे दादार अनुगामी यानी दादा के समर्थक नामक एक संगठन के बैनर तले लगातार रैलियां और सभाएं कर रहे थे।
कभी ममता के सबसे करीबी नेताओं में गिने जाने वाले शुभेंदु अधिकारी मेदिनीपुर जिले की उस नंदीग्राम सीट से विधायक हैं जिसने वर्ष 2007 में जमीन अधिग्रहण के ख़िलाफ़ हिंसक आंदोलन के जरिए सुर्खियां बटोरी थीं और टीएमसी के सत्ता में पहुंचने का रास्ता साफ किया था।
ममता जानती हैं कि लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को बड़ी जीत मिली थी और इस बार वह जबरदस्त ध्रुवीकरण करने की कोशिश में है। इसलिए दीदी बंगाल के हर शख़्स तक अपनी पहुंच बढ़ाने में जुट गई हैं।
देखिए, बंगाल चुनाव पर चर्चा-
ममता के एलान से नाख़ुश!
शुभेंदु मालदा, मुर्शिदाबाद, पुरूलिया और बांकुरा में टीएमसी के प्रभारी रहे हैं। इन जिलों में उन्होंने पार्टी को मजबूत करने के लिए काफी काम भी किया है। ऐसे में उनके नाराज़ होने का सीधा मतलब यही है कि इन इलाक़ों में टीएमसी को नुक़सान हो सकता है। पिछले सप्ताह ममता ने बांकुड़ा में एक जनसभा में जब ये एलान किया था कि राज्य के सभी जिलों में वे खुद ही पार्टी की अकेली पर्यवेक्षक होंगी तो इससे शुभेंदु की नाराजगी बढ़ गई थी।
बीजेपी किसी क़ीमत पर बंगाल में अपना सियासी परचम लहराना चाहती है। बंगाल से सांसद सौमित्र ख़ान ने कुछ दिन पहले जब यह दावा किया कि टीएमसी के 62 विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं और 15 दिसंबर तक ममता सरकार गिर जाएगी, तो साफ हुआ कि राजनीतिक हालात बेहद गंभीर हैं।
प्रशांत किशोर, अभिषेक से नाराज़गी!
बंगाल में चर्चा है कि शुभेंदु चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर और ममता के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी से नाराज़ हैं। नाराज़गी की वजह ये बताई जाती है कि ममता बनर्जी पुराने नेताओं को दरकिनार कर अपने भतीजे को मुख्यमंत्री पद के उत्तराधिकारी के तौर पर बढ़ावा दे रही हैं। टीएमसी नेताओं का कहना है कि शुभेंदु अगले विधानसभा चुनावों में अपने पचास से ज्यादा उम्मीदवारों को टिकट देने के लिए दबाव बना रहे थे और यह संभव नहीं था।
अभिषेक का पलटवार
अभिषेक बनर्जी ने हाल ही में शुभेंदु का नाम लिए बिना कहा था, ‘मैं पैराशूट या लिफ़्ट से यहां नहीं पहुंचा हूं। अगर मैंने पैराशूट या सीढ़ी का इस्तेमाल किया होता तो मैं इतनी जटिल सीट डायमंड हॉर्बर से नहीं लड़ता।’
टीएमसी की तमाम कोशिशों के बाद देखना होगा कि शुभेंदु क्या फ़ैसला लेते हैं। इससे पहले मुकुल रॉय सहित कई नेता टीएमसी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। लेकिन साधारण चप्पल और साड़ी पहनकर राजनीति करने वालीं ममता बनर्जी भी चुनाव में बीजेपी को नाकों चने चबवाने के लिए तैयार हैं।