+
सेना, रॉ, बीएसएफ के अफ़सरों पर भी थी पेगासस की नज़र

सेना, रॉ, बीएसएफ के अफ़सरों पर भी थी पेगासस की नज़र

पेगासस सॉफ़्टवेअर के ज़रिए जिन लोगों की जासूसी की गई या जो लोग उसके निशाने पर थे, उनमें सीमा सुरक्षा बल, भारतीय सेना और खु़फ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनलिसिस विंग यानी रॉ के लोग भी हैं। 

पेगासस सॉफ़्टवेअर के ज़रिए जिन लोगों की जासूसी की गई या जो लोग उसके निशाने पर थे, उनमें सीमा सुरक्षा बल, भारतीय सेना और खु़फ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनलिसिस विंग यानी रॉ के लोग भी हैं। यानी सुरक्षा से जुड़े इन अहम संगठनों के लोगों को भी पेगासस सॉफ़्टवेअर के निशाने पर रखा गया था। 

बता दें कि फ्रांसीसी मीडिया ग़ैर-सरकारी संगठन फोरबिडेन स्टोरीज़ ने स्पाइवेअर पेगासस बनाने वाली इज़रायली कंपनी एनएसओ के लीक हुए डेटाबेस को हासिल किया तो पाया कि उसमें 10 देशों के 50 हज़ार से ज़्यादा लोगों के फ़ोन नंबर हैं।

इनमें से 300 भारतीय हैं। इस संगठन ने 16 मीडिया कंपनियों के साथ मिल कर इस पर अध्ययन किया। इसमें भारतीय मीडिया कंपनी 'द वायर' भी शामिल है। 

बीएसएफ़ अफ़सर पर नज़र!

'द वायर' के अनुसार बीएसएफ़ के के. के. शर्मा, भारतीय सेना के कर्नल मुकुल देव और रिसर्च एंड एनलिसिसि विंग यानी रॉ के जीतेंद्र कुमार ओझा और उनकी पत्नी भी एनएसओ के निशाने पर थे। 

के. के. शर्मा उस समय सुर्खियों में आए थे जब वे पद पर रहते हुए कोलकाता में हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे। वे आरएसएस के राष्ट्रीय संयोजक कृष्ण गोपाल और संघ के बौद्धिक प्रकोष्ठ के प्रमुख मोहित राय के साथ थे। 

इस कार्यक्रम के एक महीने बाद मार्च 2018 में ही वे एनएसओ के निशान पर आ गए। 

उसके कुछ दिनों बाद ही शर्मा रिटायर हो गए।

रिटायर होने के बाद 2019 में चुनाव आयोग ने उन्हें केंद्रीय पुलिस ऑब्जर्वर नियुक्त कर दिया और आम चुनावों की देखरेख के लिए पश्चिम बंगाल व झारखंड में तैनात कर दिया।

यह बता दें कि ये दोनों ही राज्य बीजेपी के निशाने पर थे और वह वहाँ अधिक से अधिक सीटें जीतना चाहती थी। बीजेपी को पश्चिम बंगाल में आशातीत कामयाबी मिली थी जब उसने वहाँ 18 लोकसभा सीटें जीत ली थीं। 

जगदीश मैथानी

एक दूसरे बीएसएफ कमान्डेंट जगदीश मैथानी भी एनएसओ के भारतीय ग्राहक के निशाने पर थे। उन पर 2017 से 2019 तक नज़र रखी गई थी। 

वे बांग्लादेश से सटी सीमा पर लगने वाले इंटीग्रेटेड बॉर्डर मैनेजमेंट सिस्टम के प्रमुख थे। दोनों देशों की सीमा पर कई नदियों के बहने और हर साल इन नदियों के रास्ता बदलने की वजह से जहाँ बाड़ नहीं लगाई जा सकती है, वहाँ यह प्रणाली लगाई गई है। इसे 'स्मार्ट वॉल' भी कहते हैं। 

 - Satya Hindi

रॉ अफ़सर भी निशाने पर

रॉ के अधिकारी जीतेंद्र कुमार ओझा को भी नहीं बख़्शा गया। वे 2013 से 2015 तक नई दिल्ली स्थित खुफ़िया प्रशिक्षण केंद्र के प्रमुख थे। उन्हें 2018 में समय से पहले ज़बरन रिटायर कर दिया गया।

ओझा ने केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट यानी सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राब्यूनल में ज़बरन रिटायर किए जाने के ख़िलाफ़ शिकायत की। 

पत्रकार व रक्षा मामलों के विशेषज्ञ प्रवीण स्वामी ने 'फ़र्स्टपोस्ट' में छपे एक लेख में दावा किया है कि पंजाब काडर के आईपीएस अधिकारी सामंत गोयल इसके पीछे थे। गोयल मौजूदा रॉ प्रमुख हैं। 

ओझा ने द वायर से कहा, "मुझ पर निगरानी रखने के लिए मेरी पत्नी को निशाना बनाया गया, यह एकदम मनमर्जी और आपत्तिजनक है।" 

 - Satya Hindi

सेना के अफ़सर पर नज़र

एनएसओ के डेटाबेस में कर्नल मुकुल देव का नाम भी है। वे वही अफ़सर हैं जिन्होंने शांति के समय अफ़सरों को राशन देने की प्रथा ख़त्म करने के सेना के फ़ैसले को चुनौती दी थी। 

सेना की लीगल सेल के कर्नल अमित कुमार भी जासूरी के निशाने पर थे। 

आर्म्ड फ़ोर्सेज स्पेशल फ़ोर्सेज (अफ़्सपा) को कथित तौर पर कमज़ोर करने के ख़िलाफ़ सेना के 356 अफ़सरों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। कर्नल अमित कुमार ने उन अफ़सरों की ओर से यह याचिका दायर की थी। 

उन्होंने 'द वायर' से कहा, "मैं कोई राष्ट्रविरोधी तो हूं नहीं, उन्हें मेरी जासूसी कर क्या मिलेगा?"

मामला सुप्रीम कोर्ट में

पेगासस स्पाइवेयर मामले की जाँच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराए जाने को लेकर सीपीएम के एक सांसद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इससे पहले एक वकील ने भी अदालत में याचिका दायर कर ऐसी ही मांग की थी।

प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया सहित पत्रकारों के कई संगठन भी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच कराए जाने की मांग कर चुके हैं। विपक्षी दल के नेता भी संयुक्त संसदीय कमेटी यानी जेपीसी या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जाँच की मांग लगातार कर रहे हैं। 

याचिका में कहा गया है कि सरकार ने न तो स्वीकार किया है और न ही इनकार किया है कि स्पाइवेयर उसकी एजेंसियों द्वारा खरीदा और इस्तेमाल किया गया था।बता दें कि सरकार ने एक बयान में कहा है कि उसकी एजेंसियों द्वारा कोई अनधिकृत रूप से इन्टरसेप्ट नहीं किया गया है और विशिष्ट लोगों पर सरकारी निगरानी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है।

पेगासस जासूसी के राजनीतिक नतीजे क्या होंगे, बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें