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क़ानून मंत्री : पीएम केअर्स फंड पारदर्शी, कोरोना से लड़ाई को कमज़ोर कर रहे हैं राहुल

क़ानून मंत्री : पीएम केअर्स फंड पारदर्शी, कोरोना से लड़ाई को कमज़ोर कर रहे हैं राहुल

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि पीएम केअर्स फंड का पैसा वह नैशनल डिजास्टर रिलीफ़ फंड (एनडीआरएफ़) को नहीं दे सकता। 

क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने पीएम केअर्स फंड में पारदर्शिता का दावा करते हुए राहुल गांधी पर ज़बरदस्त हमला किया है और कोरोना से लड़ाई को कमज़ोर करने का आरोप उन पर लगाया है। 

प्रसाद ने कहा कि पीएम केअर्स फंड एक ट्रस्ट है और इसके सारे ट्रस्टी सार्वजनिक लोग हैं, इसका ऑडिट होता है और इससे जुड़ी पूरी जानकारी इसकी वेबसाइट पर है। 

क़ानून मंत्री ने यह भी जानकारी दी कि किस मद में कितने पैसे खर्च किए गए हैं। उन्होंने कहा कि पीएम केअर्स फंड में अब तक 3,100 करोड़ रुपए जमा हुए। इसमें से 2,000 करोड़ रुपए वेंटिलेटर, 1,000 करोड़ रुपए प्रवासी मज़दूरों और 100 करोड़ रुपए टीका बनाने पर खर्च हुए हैं। 

प्रसाद सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश के बाद बोल रहे थे जिसमें कहा गया है कि पीएम केअर्स फंड का पैसा वह नैशनल डिजास्टर रिलीफ़ फंड (एनडीआरएफ़) को नहीं दे सकता। अदालत ने इस अहम फ़ैसले में कहा है कि इस कोष का गठन एक ख़ास मक़सद से किया गया है और यह दातव्य कोष यानी चैरिटेबल फंड है।

सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही यह भी कहा कि सरकार चाहे तो पीएम केअर्स फंड का पैसा एनडीआरएफ़ को दे सकती है। 

सर्वोच्च न्यायालय के कहने का मतलब यह है कि यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह पीएम केअर्स फंड का पैसा एनडीआरएफ़ को दे या न दे, उसे इसके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।

कांग्रेस ने की आलोचना

कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की आलोचना की है। उन्होंने कहा, 'इससे जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही और पारदर्शिता को चोट पहुंची है। अदालत ने परंपरा से हट कर फैसला दिया है और पीएम केअर्स फंड के पैसे पर जवाब मांगने की बात पर ध्यान नहीं दिया है।'

क्या है मामला

इसके पहले सेंटर फ़ॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन नामक एक ग़ैरसरकारी संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इस याचिका में यह कहा गया था कि पीएम केअर्स फंड में जमा हुए सारे पैसे एनडीआरएफ़ को दे दिए जाएं। भविष्य में जमा होने वाले पैसे भी उसे ही दिए जाएं। याचिका में यह भी कहा गया था कि पीएम केअर्स फंड डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के प्रावधानों का उल्लंघन है।

पीएम केअर्स फंड की स्थापना 28 मार्च, 2020, को हुई थी, प्रधानमंत्री इसके पदेन प्रमुख हैं। इसमें रक्षा, गृह और वित्त मंत्री पदेन ट्रस्टी हैं।

शुरू से विवाद

याद दिला दें कि पीएम केअर्स फंड पर शुरू से ही विवाद रहा है और कई बार कई ग़ैरसरकारी संगठन इसके मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए हैं। सबसे बड़ा मामला इसकी गोपनीयता को लेकर है। सरकार का कहना है कि इस फंड का न तो ऑडिट होगा, नही इसे सीएजी के तहत रखा जाएगा और न ही इसके बारे में कोई सूचना किसी को दी जा सकती है। इस पर काफी विवाद हो चुका है।

कोष के गठन के कुछ दिन बाद ही कम्प्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल यानी सीएजी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एनडीटीवी से कहा, ‘यह कोष लोगों और संगठन से मिले चंदों से चलता है, दातव्य संस्थाओं की ऑडिट करने का अधिकार सीएजी को नहीं है।’

सीएजी के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक़, 'अगर सरकार ख़ुद पीएम केएर्स राहत कोष को आडिट करने के लिए कहेगी तभी सीएजी इसकी जाँच करेगा।'

गोपनीयता क्यों

प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की भी ऑडिट सीएजी नहीं करता है। पर सीएजी उससे पूछ सकता है कि उसने किस मद में मिले पैसे का कहाँ और कैसे उपयोग किया। उत्तराखंड में 2013 में आए भूकंप के नाम पर एकत्रित हुए पैसे के मामले में सीएजी ने यह सवाल पूछा था।

इतना ही नहीं, सरकार इस पर इतनी गोपनीयता बरतती है कि उसने आरटीआई आवेदन पर टका सा जवाब देते हुए कुछ भी कहना से इनकार कर दिया। 'द वायर' की एक ख़बर के अनुसार, पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत तोगड़ ने 21 अप्रैल 2020 को एक आरटीआई आवेदन दे कर पीएमओ से पीएम केअर्स से जुड़े कुछ सवाल पूछे थे।

उत्तर नहीं, बहाना

पीएमओ ने सिर्फ 6 दिन के अंदर यानी 27 अप्रैल 2020 को इसके जवाब में कहा कि पूछे गई सवाल अलग-अलग विषयों से जुड़े हुए हैं, इसलिए उनका उत्तर नहीं दिया जा सकता है।

पीएमओ ने कहा था, 'आरटीआई के तहत कई सवालों के जवाब एक साथ नहीं दिए जा सकते, जब तक उन्हें अलग-अलग नहीं पूछा जाता है।'

पीएमओ का यह जवाब ग़लत इसलिए है कि वह केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के नियमों का ख़िलाफ़ है। 'द वायर' के अनुसार, पीएमओ के सूचना अधिकारी प्रवीण कुमार ने सीआईसी के एक ऑर्डर और सुप्रीम कोर्ट के एक बयान की आड़ में इस अर्जी को खारिज कर दिया। पर उन्होंने जो कुछ कहा, वह ग़लत है।

मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने 2009 के एक मामले से जुड़े फ़ैसले में कहा था कि यदि आरटीआई में कई सवाल पूछ जाएं लेकिन वे एक ही विषय से जुड़े हुए हों तो उनका जवाब निश्चित रूप से दिया जाना चाहिए।

हबीबुल्ला के इस आदेश के परिप्रेक्ष्य में पीएम केअर्स से जुड़े सवालों के जवाब पीएमओ के देना चाहिए था। पर उसने ऐसा नहीं किया।इसी तरह प्रधानमंत्री कार्यालय ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने बयान को ढाल बना कर पीएम केअर्स से जुड़े आरटीआई का जवाब नहीं दिया।

सवाल यह है कि जब रक्षा मामलों तक का ऑडिट होता है, तो एक कोष का क्यों नहीं हो सकता

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